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जाति आधारित राजनीति की राह पर भाजपा, विधानसभा चुनावों से पहले इन राज्यों में भी बदल सकते हैं मुख्यमंत्री!

उत्तराखंड : भारतीय जनता पार्टी ने कई राज्यों में गैर-प्रमुख जातियों के नेताओं को मुख्यमंत्री का पद सौंपा लेकिन हाल में हुए बदलावों को देखकर लगता है कि बीजेपी का हृदय परिवर्तन हो गया है. पिछले कुछ वर्षों में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पार्टी द्वारा मुख्यमंत्री को बदला जाना यह बताता है कि पार्टी ने जाति प्रमुख को महत्व देते हुए रणनीति में बदलाव किया है और इसी का कारण है कि विधानसभा चुनाव वाले राज्यों में चुनाव से पहले वहां की प्रमुख जाति के चेहरों को सीएम की कुर्सी पर बैठाया.

उत्तराखंड और कर्नाटक के बाद सबसे ताजा उहादरण गुजरात का है, जहां भाजपा ने बहुसंख्यक और प्रभुत्वशाली पाटीदार समाज की मांग के आगे झुकते हुए मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को पद से हटा दिया और भूपेंद्र पटेल को नया मुख्यमंत्री बनाया.

2016 में पाटीदारों के खिलाफ जाकर चुना था मुख्यमंत्री

साल 2016 में, पाटीदार आंदोलन के चरम पर था, इसके बावजूद भाजपा ने रूपाणी जो कि एक जैन हैं, को चुनकर एक कड़ा संदेश दिया था. यह पहली बार था जब इस समुदाय का कोई सदस्य मुख्यमंत्री बना था. वहीं, 2017 के चुनावों में पटेल नेताओं सहित कई दावेदारों के दावों के बावजूद, भाजपा ने गैर जाति से आने वाले रूपाणी को ही मुख्यमंत्री बनाया. ये वो समय था जब विधानसभा में भाजपा के सदस्यों की संख्या में भी कमी आई थी. 2012 के विधानसभा चुनाव में 115 सीट पर जीत हासिल करने वाली बीजेपी को 2017 में 16 सीटों के नुकसान के साथ 99 सीटों पर ही जीत मिल सकी थी. हालांकि, अब 2022 में होने वाले चुनावों से ठीक पहले भाजपा ने रूपाणी की जगह भूपेंद्र पटेल को सीएम चुन लिया है.

चुनावी मजबूरियों को टाल नहीं सकती भाजपा

इस बदलाव के साथ ही भाजपा नेताओं ने स्वीकार किया कि भूपेंद्र पटेल का चुना जाना इस बात की ओर संकेत करता है कि मोदी का शीर्ष पर होने के बावजूद भाजपा भी चुनावी मजबूरियों को टाल नहीं सकती. हालांकि, नए सीएम के चुनाव में भी पीएम मोदी ने अपनी शैली की छाप छोड़ दी है, उन्होंने एक बार फिर सबको चौंकाते हुए अन्य बड़े और अनुभवी पटेल नेताओं के नामों को दरकिनार कर पहली बार विधायक बनने वाले चेहरे को सीएम के तौर पर चुना है.

उत्तराखंड में रावत की विदाई भी उदाहरण

इससे पहले, उत्तराखंड में, भाजपा ने राज्य में पार्टी के दोनों गुटों और आरएसएस के दबाव में आकर त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया था, बताया गया था कि 4 महीने में मुख्यमंत्री का काम और प्रदर्शन बेहतर नहीं था. रावत की जगह एक और ठाकुर, पुष्कर सिंह धामी को लाया गया, जो पार्टी के गढ़ से ताल्लुक रखते हैं.

ऐसा ही कुछ कर्नाटक की राजनीति में भी देखने को मिला. वहां चार बार सीएम रह चुके बी एस येदियुरप्पा को दिल्ली के दबाव में अपने पद से हटना पड़ा. हालांकि, यहां भाजपा ने उनके समुदाय का विरोध करने की हिम्मत नहीं की, तमाम अटकलों के बावजूद, भाजपा ने येदियुरप्पा के स्थान पर लिंगायत समुदाय से ही आने वाले बसवराज बोम्मई को चुना. उनके पिता एस.आर. बोम्मई भी कर्नाटक के मुख्यमंत्री रह चुके हैं.

2014 में पार्टी ने किए थे कई प्रयोग, अब बदलने की जरूरत!

2014 में सत्ता में आने के बाद, मोदी-शाह के नेतृत्व वाली भाजपा ने प्रभावशाली जातियों के बाहर से मुख्यमंत्रियों को चुनने के निर्णय को एक ‘प्रयोग’ के रूप में अपनाया था. ये वो समय था जब मोदी अपनी लोकप्रियता के शिखर पर थे और यहां तक ​​कि उन्हें अजेय भी माना जाता था. पार्टी ने गैर प्रभावशाली जातियों के नेताओं को चुनकर स्पष्ट संदेश दिया था कि पार्टी को प्रभुत्वशाली जातियों के साथ पुराने संबंधों में बंधने की आवश्यकता नहीं महसूस हुई. यही कारण रहा कि महाराष्ट्र में एक ब्राह्मण और गैर-मराठा होने के बावजूद फडणवीस महाराष्ट्र में सीएम बने, खट्टर एक गैर-जाट होने के बाद भी हरियाणा में मुख्यमंत्री का पदभार संभाला, जबकि गैर-आदिवासी रघुबर दास को झारखंड में मुंख्यमंत्री बनाया गया.

महाराष्ट्र और झारखंड में विफल हुआ प्रयोग, हरियाणा में भी खतरा!

हालांकि, तब से भाजपा को महाराष्ट्र और झारखंड में चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है और हरियाणा में भी नवगठित जननायक जनता पार्टी की मदद से सरकार बचाने में कामयाब रही है. विधानसभा चुनावों के बाद से ही खट्टर दबाव में हैं और अब किसान आंदोलन ने उनकी चिंताओं को और बढ़ा दिया है. यही कारण है कि हरियाणा में मुख्यमंत्री के बदलाव के कयास भी तेज हो गए हैं.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक भाजपा के दो वरिष्ठ नेताओं ने स्वीकार किया कि पार्टी पर इस बात का दबाव है कि वो उन बड़ी जातियों और समुदायों की उपेक्षा न करें जिससे बड़ी संख्या में समर्थन मिलता है. पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व अन्य राज्यों में भी राज्य इकाइयों के दबाव में आ सकता है. हाल के दिनों में मुख्यमंत्रियों के बदलने के घटनाक्रम से अन्य राज्यों में भी असंतुष्ट नेताओं का हौसला बढ़ेगा.

राजनीति पर करीब से नजर रखने वाले बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को मुख्यमंत्री बनाने की मांग जोर पकड़ सकती है. वो ओबीसी से आते हैं और पार्टी इस ओबीसी को लुभाने के लिए चौंकाने वाला फैसला ले सकती है. हालांकि, मंगलवार को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में दिए अपने संबोधन में पीएम मोदी ने योगी आदित्यनाथ की सीएम के तौर पर जमकर तारीफों के पुल बांधे. ऐसे में ये सिर्फ कयास भर है. इसके अलावा मध्य प्रदेश में भी पार्टी का एक प्रभावशाली गुट शिवराज सिंह चौहान के प्रतिस्थापन पर जोर दे रहा है. हालांकि, पार्टी यहां बदलाव करेगी या नहीं, ये आने वाला वक्त बताएगा.

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