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तिरछी नजर 👀: माननीय के लिए आयोजित डिनर में बिगड़ा कांग्रेसियों का हाजमा

छत्तीसगढ़ के खाद्य मंत्री अमरजीत भगत पिछले कुछ दिनों से सुर्खियों में हैं। अपने विधानसभा क्षेत्र के साथ सरगुजा संभाग में भी उनकी जरूरत से ज्यादा सक्रियता के सियासी मायने तलाशे जा रहे हैं। हाल ही उनके राजनांदगांव दौरे ने राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरी। जहां उन्होंने शराबबंदी से जुड़े सवाल को अनसुना कर दिया था। राजनांदगांव में वे एक और कारण से चर्चा में रहे हैं। प्रभारी मंत्री के रूप में पहली बार पहुंचे मंत्रीजी के स्वागत-सत्कार में कांग्रेसियों ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी, लेकिन कुछ कांग्रेसियों को यह उस समय रास नहीं आया और उनकी भौंहे तन गई, जब उन्होंने देखा कि बहुचर्चित गोला कांड के आरोपी ने मंत्री के स्वागत के लिए जगह-जगह बैनर-पोस्टर लगवाएं हैंl इतना ही नहीं कुख्यात आरोपी पूरे समय मंत्रीजी के ईर्द-गिर्द नजर आया। तमाम तस्वीरों में भी वे मंत्रीजी से चिपके दिखाए दिए। ऐसे में निष्ठावान कांग्रेसियों को तकलीफ होना जायज ही लगता है। स्वागत के बाद मंत्रीजी के सम्मान में शहर के एक बड़े होटल में डिनर भी रखा गया थाl चर्चा है कि यह डिनर भी कुख्यात आरोपी की तरफ से प्रायोजित था, चूंकि मंत्रीजी डिनर में शामिल हुए, तो बाकी नेता भी इसमें शरीक हुए। यहीं से कांग्रेसियों का हाजमा बिगड़ गया और उन्होंने डिनर के बाद इसकी शिकायत ऊपर तक कर दी। स्थानीय कांग्रेसियों का हाजमा खाने के कारण बिगड़ा या फिर कुख्ताय आरोपी के मंत्रीजी से नजदीकी के कारण। इसका फैसला तो पार्टी के बड़े नेताओं को करना है, लेकिन मंत्रीजी की छवि का स्वाद तो जरूर बिगड़ा है।

रेरा सदस्य की गैरहाजिरी चर्चा में

छत्तीसगढ़ में रेरा के गठन को करीब ढाई साल हो चुके हैं । इसके अस्तित्व में आने के बाद से बिल्डरों पर लगाम भी लगा है, और उपभोक्ता राहत महसूस कर रहे हैं। पूरे कोरोना काल में आनलाइन सुनवाई के माध्यम से सुनवाई चलती रही है। चेयरमैन विवेक ढांड, सदस्य और पूर्व पीसीसीएफ आर के टम्टा, तथा पूर्व एसीएस एनके असवाल मिलकर सुनवाई की प्रक्रिया को चलाते रहे हैं। वहीं पिछले साल भर से असवाल की गैरहाजिरी में सुनवाई हो रही हैl हालांकि ऑनलाइन सुनवाई के लिए ऑफिस आना आवश्यक नहीं हैं। दरअसल, असवाल साल भर पहले गृह प्रदेश राजस्थान गए थे तब से नहीं लौटे हैं। वे लॉकडाउन में फंसे रहे l अब जब सब कुछ सामान्य हो गया है और दूसरे प्रदेशों से लोगों का आना-जाना शुरू हो गया है, फिर भी नहीं आए हैं। वे अब क्यों नहीं लौटे हैं,यह चर्चा का विषय बना हुआ है। छत्तीसगढ़ में कई आईएएस रिटायर्डमेंट के बाद खाली बैठे हुए हैं और कई रिटायरमेंट के बाद पुर्नवास की कोशिश में लगे हुए हैं। अफसरों के मुकाबले खाली पदों की संख्या कम हैं। ऐसे में असवाल साहब का गैरहाजिर रहना उनकी कुर्सी के लिए खतरा बन सकता है।

सियासत का सूर्य


पुरानी परम्परा है उगते हुए सूरज को प्रणाम करने की। सियासत में तो उगते हुए सूर्य को हर कोई प्रणाम करना चाहता है। ऐसे ही महासमुंद के एक युवा नेता जो राजनीतिक प्रबंधन के माहिर खिलाड़ी के रूप में पिछले एक दशक से सूर्य की तरह सत्ता के गलियारे में प्रकाशमान हैं। कम उम्र में वास्तविक राजनीतिक चुनौती को समझने वाले सूर्य की तरह नाम वाले इस युवा नेता की दखल दिग्गज राजनेता विद्याचरण शुक्ल, अजित जोगी के बैडरूम तक थी। भाजपा दिगज नेताओ के संपर्क में रहकर युवा नेता ने राजनीतिक उठापटक की बारीक समझ भी हासिल कर ली है। इस युवा नेता की ताकत और पहुंच का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि हाल में एक अफसर की पदस्थापना पर एक घंटे के भीतर एक दर्जन विधायकों ने प्रेस में बयान देकर विरोध जताया। दस जनपथ तक शिकायत पहुंचने पर मंत्री को अपना आदेश वापस लेना पड़ा।

एकला चलने वाले हम साथ-साथ की तान पर…

 

छत्तीसगढ़ कांग्रेस के मीडिया विभाग के दो दिग्गज बुरी तरह फंस गए हैं। हालांकि दोनों नेताओं के बीच आपसी खटपट की शिकायत पुरानी है, लेकिन वे इस बार आपसी खटपट के कारण नहीं फंसे हैं, बल्कि अखबार की एक खबर के चलते उनसे जवाब-तलब किया गया है। पार्टी के बड़े नेता ने खबर को काफी गंभीरता से लिया है और दोनों नेताओं पर जमकर नाराजगी भी जताई गई है। अक्सर एक दूसरे कि खिलाफ रहने वाले ये दोनों नेता बड़े नेता की नाराजगी को दूर करने के लिए साथ-साथ जवाब तलाश रहे हैं। दूसरे कांग्रेसी इस घटना के बाद से चटखारे ले रहे हैं कि एकला चलने वाले हम साथ-साथ हैं तो कह सकेंगे।

शिक्षा अधिकारी भी कतार में

छत्तीसगढ़ में अफसरशाही से हर कोई चकित है। 15 साल के बीजेपी शासनकाल के बाद कांग्रेस की सरकार बनीं तो लोगों को उम्मीद थी कि अफसरशाही पर लगाम लगेगा। सरकार के शुरुआती तेवर देखकर ऐसा लगा कि नौकरशाह सही ढंग से अपना काम करेंगे, लेकिन यहां तो मामला ठीक उलटा हो गया है। कांग्रेस छोटे कर्मचारियों के साथ धमकी-चमकी तो कर रहे हैं, लेकिन बड़े अफसर तो उनकी एक नहीं सुन रहे हैं। चर्चा यह है कि बड़े अफसर ऊंची पहुंच या बोली लगाकर पोस्टिंग पा रहे हैं। ऐसे में वे आम लोगों की सुनेंगे, इसकी उम्मीद करना बेइमानी है। आईएएस अफसर तो फोन उठाना या जवाब देना तक जरुरी नहीं समझते। जिला स्तर के अधिकारियों की हिम्मत भी इतनी बढ़ गई है कि वे कांग्रेस के बड़े पदाधिकारियों को टका सा जवाब देने में संकोच नहीं करते। राजधानी के जिला शिक्षा अधिकारी को ही लीजिए। वे भी रसूख के दम पर पोस्टिंग पा गए हैं, जाहिर सी बात कि उनका रौब भी कम नहीं होगा। वे भी बड़े-बड़ों का फोन नहीं उठाते और अपने अधीनस्थ अधिकारियों-कर्मचारियों से ऐसे पेश आते हैं, मानों वे उनके नौकर-चाकर हों। खैर समय-समय की बात है कब कहां किसकी कैसी स्थिति होगी, कहना मुश्किल है। डीईओ साहब की ही तरह व्यवहार करने वाले कुछ एसडीएम और तहसीलदारों की शिकायत हुई थी कि वे आम लोगों से दुर्व्यवहार और वसूली करते हैं। सोशल मीडिया में वायरल और अखबारों में खबर बनने के बाद उन पर कार्रवाई की गई। ये अलग बात है कि इससे सरकार की काफी किरकरी हुई थी। इन मामलों से सबक लेते हुए सरकार ने भी तय किया है कि अफसरों का आम लोगों से व्यवहार अच्छा नहीं रहता है, तो उसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। अब देखना है कि राजधानी के शिक्षा विभाग के इस अफसर का नंबर आता है कि नहीं।

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