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देशी बीज खाद, कीटनाशक के उपयोग कर आत्मनिर्भर बन सकता है किसान

  • वर्तमान समय की माँग कम से कम जमीन पर ही करें शुरुआत

नवागढ़/बेमेतरा: नगर पंचायत नवागढ़ के युवा किसान किशोर राजपूत ने किसानों से अपील किया है कि कम से कम जमीन वाले किसान भी अपनी खेत के एक हिस्से में देशी बीज के माध्यम से फसल लगाए तथा गौ वंश आधारित खाद,कीट नाशक का उपयोग करें। दो वर्ष से पूरा विश्व करोना महामारी से जूझ रहा है इसका व्यापक असर भारत पर भी देखने को मिल रहा है।कोविड 19 के कारण से लगने वाले लॉक डाउन में सब काम धंधे बन्द रहते हैं लाखों लोगों के जीवन पर इसका व्यापक असर पड़ा है। यह संक्रमण कभी कम तो कभी ज्यादा हो रहा है। हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने अपने संबोधन में लोकल फ़ॉर वोकल पर चलकर आत्म निर्भर भारत निर्माण की संकल्पना किया है। इसका मुख्य कारण भारत की 70% जनसंख्या गांव में निवास करती है और एक बहुत बड़ा हिस्सा खेती एवं खेती से जुड़े व्यवसाय पर निर्भर है।

अतः जब तक हम अपनी खेत,खेती और किसान को गौ वंश से नही जोड़ते तब तक कृषि,उद्योग,स्वरोजगार जैसे देश के ज्वलन्त मुद्दों का समाधान नहीं हो सकता और आत्मनिर्भर बनने की परिकल्पना बेकार है। आज हमारे देश की तरह हमारा किसान भी खेती किसानी में दूसरों के भरोसे जी रहा है,शायद इसी के कारण से ज्यादातर किसान खेती करना छोड़ रहे हैं और वे उनके लिए घाटे का धंधा साबित हो रहा है

किशोर ने बताया है कि आज खेती में बाजार पर निर्भरता ने किसान की कमर तोड़ दी है तथा आज वह बैंकों और व्यापारियों के बोझ तले दबता चला जा रहा है नतीजा उसे आत्महत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है यदि हमें किसान को आत्मनिर्भर बनाना है तो उनकी बाजार पर निर्भरता को खत्म करना पड़ेगा ।

देशी बीज और गौ वंश आधारित खाद कीट नाशक के लिए आत्म निर्भर बना होगा

किशोर राजपूत ने कहा कि अभी वर्तमान कृषि की नवीन पद्धति में किसान इन तीनों बीज,खाद, कीट नाशक के लिए बाजार पर निर्भर रहता है जबकि गौ वंश आधारित जैविक खेती में किसान के पास उपलब्ध संसाधनों से मृदा पोषण, कीट नियंत्रण एवं बीज तैयार किया जाता है । खाद के लिए किसान अपने खेत में कंपोस्ट, वर्मी कंपोस्ट,जीवामृत सिंग खाद आदि तैयार करता है जो पूर्णतया प्राकृतिक हैं तथा मृदा पोषण में लाभकारी है।

चुकि गौ वंश आधारित प्राकृतिक खेती में कीट नियंत्रण से ज्यादा बचाव को महत्ता दी गई है और यदि पूरी कृषि पद्धति ही प्राकृतिक हो तो अधिकांश कीट एवं रोग का प्रकोप भी कम होता है तथा समय-समय पर औषधीय गुणों से युक्त अर्क की छिड़काव, नीमस्त्र,ब्रम्हास्त्र,दसपर्णी अर्क, आदि का उपयोग करके फसल में कीट एवं रोगों से होने वाले नुकसान को बचा सकता है बीज कि यदि हम बात करें तो किसान भाई आज ज्यादा उत्पादन पाने के लालच में हाइब्रिड बीजों को काम में लेते हैं,जो मौषम के अनुकूल नहीं रहता है।

उन्होंने बताया कि दुर्भाग्य से आज धरती पुत्र किसान अपने परंपरागत देशी बीजों को बचाए और बनाए रखने की कला को भूलते जा रहे हैं इसलिए आज कल बाजार में बीज के नाम पर फल फूल रहे गोरखधंधे में किसान फ़सकर नकली बीजों के व्यापार को बढ़ावा दे रहे हैं । यदि किसान अपना स्वयं का बीज तैयार करने लगे तो धीरे-धीरे बीज की गुणवत्ता भी मिट्टी पानी और पर्यावरण के अनुकूल होकर अच्छा उत्पादन देने लग जाएगा इससे किसानों के बीज की गुणवत्ता तो सुधरेगी बाजार की निर्भरता भी कम हो जाएगी।

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