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तकनीकी विकास टालेंगे रेल हादसे

वर्तमान सदी में अब तक का यह शायद सबसे बड़ा रेल हादसा हैं। इस भीषण दुर्घटना में बचाव दल मौत के मातम के बीच जिंदगी की तलाश  में दिन-रात जुटे रहे। ओडिशा के बालासोर में दो सवारी गाड़ियों और एक मालगाड़ी की टक्कर में 290 लोगों की मौत हो चुकी हैं, 1100 से ज्यादा यात्री घायल हैं, 800 से ज्यादा घयलों का प्राथमिक उपचार कर छुट्टी दे दी गई है।

आंकड़े बताते हैं कि यह हादसा आजादी के बाद हुई सबसे भीशण रेल दुर्घटनाओं में से एक है। इस हादसे में बैंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस, षालीमार-चैन्नई सेंट्रल, कोरोमंडल एक्सप्रेस और एक मालगाड़ी शामिल हैं। हादसा इतना जबरदस्त था कि रेल का एक डिब्बा जमीन में घंस गया था, जिसे क्रेनों और बुल्डोजरों की मदद से ऊपर लाया गया। यह डिब्बा, दूसरी रेल के डिब्बों के ऊपर गिरने से धरती में घंस गया था। हादसे के भीशण होने का पता इस बात से चलता है कि 2000 से ज्यादा बचावकर्मी, एनडीआरएफ के 9 दल, 200 एंबुलेंस, 500 चलित स्वास्थ्य केंद्र और दो एमआई हेलिकाॅप्टर घयलों को निकालने में लगे रहे। यदि हादसा स्थल के आसपास स्वदेषी प्रणाली से विकसित ‘संरक्षा कवच‘ का प्रबंध होता तो यह हादसा टल सकता था ?एक तरफ भारत ने मोदी युग में रेल में इतना विकास कर लिया है कि वंदे-भारत एक्सप्रेस रेल यूरोपीय, अमेरिकी और एषियाई देषों में निर्यात होने लग जाएगी। लेकिन रेल सुरक्षा से जुड़े तकनीकि विकास में हम अभी भी पिछड़े हुए हैं। हमने रेल की गति तो बहुत बढ़ा दी, लेकिन भारत में ही विकसित जो स्वदेषी स्वचालित सुरक्षा प्रणाली ‘कवच‘ है, उसे अभी पूरे देष में नहीं

पहुंचा पाए हैं।

फिलहाल रेलवे नेटवर्क में केवल 1455 किमी रेल लाइनों पर ही यह सुविधा काम कर रही है। स्वयं रेलवे के अधिकारियों ने जानकारी दी है कि रेलगाड़ियों के परस्पर टकराने से रोकने वाली यह कवच सुविधा इस मार्ग पर उपलब्ध नहीं थी। हालांकि एनएफआईआर के महासचिव एम राघवैया ने कहा है कि यह हादसा चंद पलों में हुआ है। इसलिए यह कहना मुष्किल है कि कवच सुविधा होने की स्थिति में भी हादसे को रोका जा सकता था अथवा नहीं ?

इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि रेलवे में सुरक्षा वर्ग से जुड़े करीब 40 हजार पद रिक्त पड़े हुए हैं। हालांकि अभी यह स्पश्ट नहीं है कि यह हादसा किन कारणों से हुआ ? परंतु आषंका जताई जा रही है कि इसका संभावित कारण संकेतक में गड़बड़ी होना है। दूसरी तरफ रेल राज्य मंत्री राव साहिब पाटिल का कहना है कि यह हादसा मानवीय गलती से हुआ या तकनीकि कारण से, इसके लिए उच्च स्तरीय जांच समिति गठित की जाएगी।‘कवच‘ स्वदेशी रूप से विकसित स्वचालित रेल सुरक्षा तकनीकी सुविधा हैं। इसे भारतीय रेलवे द्वारा दुनिया की सबसे सस्ती स्वचालित रेल दुर्घटना सुरक्षा प्रणाली के रूप में देखा जा रहा है। मार्च 2022 में इस कवच प्रौद्योगिकी का सफल परीक्षण किया गया था। इस दौरान एक ही पटरी पर विपरीत दिषा में दौड़ रहीं रेलें यदि मानवीय या तकनीकी भूल के चलते आमने-सामने आ जाती हैं तो ‘कवच‘ सुविधा के चलते ऐसे संकेत चालकों को मिलने लगते हैं कि कोई खतरा सामने हैं। खतरे के ये संकेत 400 से 500 मीटर की दूरी से मिलना शुरू हो जाते हैं। नतीजतन चालक रेल को रोक लेता है।वर्तमान में दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-हावड़ा रेल मार्ग पर इस कवच को स्थापित करने का काम चल रहा है। इसका मकसद रेलों को परस्पर टक्कर से बचाने का काम करना है। इसमें यह भी सुविधा है कि यदि चालक गति प्रतिबंधों के अनुसार रेल को नियंत्रित करने में असफल रहता है तो यह स्वचालित रूप में सक्रिय होकर रेल के बेक्रिंग सिस्टम को चालू कर देता है।

ज्यादातर रेल हादसे ठीक से इंटरलाॅकिंग नहीं किए जाने और मानवरहित रेलवे पार-पर्थ पर होते रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के केंद्रीय सत्ता पर आसीन होने के बाद ये दावे बहुत किए गए हैं कि डिजीटल इंडिया और स्टार्टअप के चलते रेलवे के हादसों में कमी आएगी। इसरो ने अंतरिक्ष में उपग्रह छोड़ते समय ऐसे बहुत दावे किए हैं कि रेलवे को ऐसी सतर्कता प्रणाली से जोड़ दिया गया है, जिससे मानव रहित फाटक से रेल के गुजरते समय या ठीक से इंटरलाॅकिंग नहीं होने के संकेत मिल जाएंगे।

नतीजतन रेल चालक और फाटक पार करने वाले यात्री सतर्क हो जाएंगे। लेकिन इसी प्रकृति के एक के बाद एक रेल हादसों के सामने आने से यह साफ हो गया है कि आधुनिक कही जाने वाली डिजीटल तकनीक से दुर्घटना के क्षेत्र में रेलवे को कोई खास लाभ नहीं हुआ है। बावजूद रेलवे के आला अफसर दावा कर रहे थे कि पिछले तीन साल में छोटे-मोटे हादसों को छोड़ दिया जाए तो कोई बड़ा हादसा नहीं हुआ, जो अब हो बालासोर में हो गया है।     भारतीय रेल विष्व का सबसे बड़ा व्यावसायिक प्रतिश्ठान है, लेकिन इस ढांचे को फिलहाल विष्वस्तरीय नहीं माना जाता। गोया इसकी सरंचना को विष्वस्तरीय बनाने की दृश्टि से कोशिशे तेज होने के साथ अंजाम तक भी पहुंच रही हैं। इसी का परिणाम है कि वंदे भारत रेल इसी साल जून के अंत तक देष के सभी राज्यों में दौड़ने लगेगी। इससे 225 नगर और महानगर जुड़ जाएंगे। वर्तमान में चार दिन में एक वंदे भारत रेल का निर्माण हो रहा है। अगले एक महीने के भीतर हर 15 दिन में लगभग 10 वंदे भारत रेलें निर्मित होने लगेंगी। इसके बाद इस रेल का यूरोपीय, अमेरिकी और एशियाई देषों में निर्यात भी होने लग जाएगा।

फिलहाल देश में रेलवे विकास एवं मानक संगठन (आरडीएसओ) और भारतीय अतंरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की मदद से अनेक तकनीकी सुरक्षा प्रणालियां अस्तित्व में लाई गई हैं। इसरो के साथ षुरू की गई परियोजना के अंतर्गत एक ऐसी सतर्क सेवा षुरू की गई है, जिसके तहत चैकीदार रहित क्राॅसिंग के चार किमी के दायरे में आने वाले सभी वाहन-चालकों और यात्रियों को हूटर के जरिए सतर्क रहने की चेतावनी दी जाने लगी है। इसमें इसरो को उपग्रह की सहायता से रेलों के वास्तविक समय के आधार पर ट्रेक करने के इंतजाम किए गए हैं। इसमें चिप आधारित एक उपकरण रेलों में और एक क्राॅसिंग गेट पर लगाया जाता है। इससे जैसे ही रेल क्राॅसिंग के 4 किमी के दायरे में आती है तो स्वमेव फाटक पर लगा हूटर बनजे लगता है।रेल के 500 मीटर की दूरी तक आते-आते हूटर की आवाज धीरे-धीरे तेज होती जाती है।  और रेल के गुजरते ही हूटर बंद हो जाता है। रेलवे ने पांच पायलट परियोजनाओं के तहत पांच मानवरहित पार-पथों और चुनिंदा पांच रेलों में यह उपकरण लगाए भी, लेकिन जब इनकी ट्रायल ली गई तो यह बजे ही नहीं। इसके बाद इस परियोजना को नए अनुसंधान कर, नई तकनीक से जोड़ने के लिए फिलहाल स्थगित कर दिया है। इस परियोजना में इसरो ने अपने सात उपग्रहों वाले रीजनल नेविगेशन सेटेलाइट सिस्टम का उपयोग किया था। किंतु सात उपग्रहों से जुड़े रहने के बावजूद यह सतर्कता प्रणाली नाकाम रही। हालांकि अब देश में ज्यादातर पार पथों पर अंडरब्रिज बना दिए गए हैं। इसलिए इन पथों पर होने वाली दुर्घटनाएं भी कम हो गई है।

इसके साथ ही रेलवे ने आरडीएसओ को एसएमएस आधारित सतर्कता प्रणाली (एडवांस वार्निंग सिस्टम) विकसित की गई हैं। इस प्रणाली को रेडियो फ्रीक्वेंसी एंटिना में क्राॅसिंग के आसपास एक किमी के दायरे में सभी रेल चालकों व यात्रियों के मोबाइल पर एसएमएस भेजकर आगे आने वाली क्राॅसिंग और रेल के बारे में सावधान किया जाना है। इसमें जैसे-जैसे वाहन क्राॅसिंग के नजदीक पहुंचता, उसके पहले कई एसएमएस और फिर ब्लिंकर और फिर अंत में हूटर के मार्फत वाहन चालक को सावधान करने की व्यवस्था थी।

साथ ही रेल चालक को भी फाटक के बारे में सूचना देने का प्रावधान था, लेकिन जब इस तकनीक का अभ्यास किया गया तो यह परिणाम में खरी नहीं उतरी। फिर भी रेल यात्रा को सुरक्षित बनाने की दृश्टि से ऐसे तकनीकी उपाय करने होंगे, जिससे रेल हादसे हों ही नहीं। ये कब तक विकसित हो पाते है, इसका अभी इंतजार करना होगा।

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