TOLL TAX NEW RULES BREAKING : नया सिस्टम लागू ! गुड बाय FASTAG… सरकार ने बदले टोल के ये नियम

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TOLL TAX NEW RULES BREAKING: New system implemented! Good bye FASTAG…Government changed these toll rules

नई दिल्‍ली। केंद्र सरकार ने जीपीएस आधारित टोल प्रणाली को मंजूरी दे दी है। इससे टोल प्लाजा पर रुकना नहीं पड़ेगा। यह नई प्रणाली आपके सफर को आसान बनाएगी। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने मंगलवार को नेशनल हाईवे फीस (दरों का निर्धारण और संग्रह) नियम, 2008 को संशोधित किया है। इसमें सैटेलाइट-आधारित सिस्टम के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह को शामिल किया गया है। इस नए सिस्टम से अब गाड़ियों से जीपीएस के जरिए टोल वसूला जाएगा। यह फास्टैग की तरह ही होगा। लेकिन, इसमें गाड़ी के चलने की दूरी के हिसाब से टोल लगेगा।

इस नए नियम के मुताबिक, अब GPS और ओनबोर्ड यूनिट (OBU) के जरिए टोल वसूला जा सकेगा। यह फास्टैग और ऑटोमैटिक नंबर प्लेट रिकॉग्निशन (ANPR) तकनीक के अलावा होगा। इन बदलावों से ग्‍लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्‍टम यानी जीएनएसएस ओबीयू से लैस वाहन तय की गई दूरी के आधार पर ऑटोमैटिक टोल का भुगतान कर सकेंगे। 2008 के नियमों के नियम 6 को बदल दिया गया है ताकि जीएनएसएस वाले वाहनों के लिए टोल प्लाजा पर विशेष लेन बनाई जा सके। इससे उन्हें मैन्युअल टोल भुगतान के लिए रुकने की जरूरत नहीं होगी।

यह बदलाव एडवांस टेक्‍नोलॉजी के जरिये राष्ट्रीय राजमार्गों पर टोल संग्रह को आधुनिक बनाने के प्रयासों का हिस्सा है। मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि भारत में पंजीकृत नहीं होने वाले या बिना काम करने वाले जीएनएसएस वाले वाहनों से स्‍टैंडर्ड टोल दरें वसूली जाती रहेंगी। इसके अलावा, जीएनएसएस प्रणाली का इस्‍तेमाल करने वाले वाहनों के लिए 20 किमी तक का शून्य-टोल कॉरिडोर पेश किया जाएगा। इसके बाद तय की गई दूरी के आधार पर टोल लिया जाएगा।

अभी क्‍या होता है?

अभी टोल प्लाजा पर टोल का पेमेंट कैश या फास्टैग के जरिए होता है। इससे अक्सर ट्रैफिक जाम की स्थिति बनी रहती है। जीपीएस-आधारित टोल प्रणाली सैटेलाइट और कार में लगे ट्रैकिंग सिस्टम का इस्‍तेमाल करती है। यह सिस्‍टम किसी वाहन की तय की गई दूरी के अनुसार टोल वसूलने के लिए सैटेलाइट -आधारित ट्रैकिंग और जीपीएस तकनीक का उपयोग करती है। इस तरह फिजिकल टोल प्लाजा की जरूरत समाप्त हो जाती है। ड्राइवरों के लिए वेटिंग टाइम कम हो जाता है।

ओन-बोर्ड यूनिट (OBU) या ट्रैकिंग उपकरणों से लैस वाहनों से राजमार्गों पर तय की गई दूरी के आधार पर शुल्क लिया जाएगा। डिजिटल इमेज प्रोसेसिंग हाईवे के कोर्डिनेट्स रिकॉर्ड करती है। वहीं, गैंटरियों पर स्थापित CCTV कैमरे वाहन की स्थिति की पुष्टि करके अनुपालन सुनिश्चित करते हैं। इससे निर्बाध टोल कलेक्‍शन संभव हो जाता है।

यह फास्‍टैग से कैसे अलग है?

फास्‍टैग के उलट सैटेलाइट-आधारित टोल प्रणाली जीएनएसएस तकनीक पर निर्भर करती है। यह सटीक लोकेशन बताती है। अधिक सटीक दूरी-आधारित टोलिंग के लिए जीपीएस और भारत की जीपीएस एडेड GEO ऑग्मेंटेड नेविगेशन (GAGAN) प्रणाली का उपयोग करती है।

कैसे काम करेगा नया स‍िस्‍टम?

इस सिस्टम को लागू करने के लिए गाड़ियों में OBUs लगाए जाएंगे। ये OBU ट्रैकिंग डिवाइस की तरह काम करेंगे और गाड़ी की लोकेशन की जानकारी सैटेलाइट को भेजते रहेंगे। सैटेलाइट इस जानकारी का इस्तेमाल करके गाड़ी की तय की गई दूरी को कैलकुलेट करेंगे। दूरी का सही कैलकुलेशन के लिए जीपीएस और जीएनएसएस तकनीकों का इस्तेमाल किया जाएगा। इसके अलावा, हाईवे पर लगे कैमरे गाड़ी की लोकेशन की पुष्टि करेंगे। शुरुआत में यह सिस्टम कुछ चुनिंदा हाईवे और एक्सप्रेसवे पर लागू किया जाएगा। OBU को FASTag की तरह ही सरकारी पोर्टल से खरीदा जा सकेगा। इन्हें गाड़ी में बाहर से लगाना होगा। हालांकि, भविष्य में गाड़ी निर्माता कंपनियां पहले से ही OBU लगी हुई गाड़ियां भी बेच सकती हैं।

 

 

 

 

 

 

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