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प्रवासी श्रमिकों को सताने लगी लाकडाउन की चिंता, पलायन करने लगे मजदूर

बिलासपुर। पिछले साल के लाकडाउन की तरह इस बार भी मुश्किलों का सामना न करना पड़े इस चिंता में सीपत क्षेत्र के प्रवासी मजदूरों को फिर से लाकडाउन का डर सताने लगा है और अपने राज्य की ओर पलायन करने लगे है। कोरोना संक्रमण फिर से अपना पैर पसारने लगी है। शुक्रवार को बड़ी संख्या में एनटीपीसी में कार्यरत मजदूरों से सुबह आटो बस से बिहार रवाना हुए। उनसे पूछने पर बताए कि स्थिति फिर चिंताजनक बन रही है इसलिए अपने परिवार के साथ रहना ज्यादा उचित है

।हालांकि मजदूरों ने दबे स्वर में महामारी के डर से भी इनकार नहीं किया। रोजी की तलाश में आए थे अब रोटी की चिंता में पलायन कर रहे है।बढ़ते आंकड़ो से प्रशासन ने हालात बेकाबू होने से पहले एहतियातन नाइट कर्फ्यू लगा दिया है। बचाव के इन प्रयासों के बीच प्रवासी मजदूरों में लाकडाउन का भय सताने लगा है। यही वजह है कि धीरे-धीरे मजदूरों ने पलायन शुरू कर दिया है। फिलहाल स्थिति नियंत्रण में है मगर मजदूर सड़क पर पहले की तरह निकल पड़े तो उद्योग ही नहीं भवन निर्माण के काम भी ठप हो जाएंगे।

ऐसे में मजदूरों का पलायन चिंता का विषय बनता जा रहा है। एनटीपीसी में कार्यरत सीपत सहित आसपास के ग्रामो में रहने वाले प्रवासी मजदूरो को अब फिर से लाकडाउन का डर बना हुआ है। स्थिति निर्मित होने से पहले ही अपना बोरिया बिस्तर सामान तैयार कर परिवारों का साथ देने पलायन करने लगे। वर्तमान में कटाई के बाद फसल मंडियों में भी पहुंच रही है। इस कारण खेत व मंडी दोनों की जगह मजदूरों की जरूरत है। जबकि मजदूर पहले से ही कम हैं। कोरोना संक्रमण के खतरे के कारण पहले ही प्रवासी मजदूर कम हैं।

ऊपर से अब घर जाने का सिलसिला और शुरू हो गया है। यह सिलसिला जारी रहा तो मजदूरों की कमी बड़ी परेशानी बन जाएगी। मंडी ही नहीं उद्योग फैक्टरियों व कंपनियों का काम भी प्रभावित होगा। मजदूरों के अभाव में भवन निर्माण कार्य तक ठप होने का अंदेशा बढ़ने लगा है। कोरोनाकाल ने बढ़ाई थी परेशानी, नहीं मिले थे वाहन

कोरोना संकट के चलते पिछले डेढ़ वर्ष में बड़ी संख्या में लोगों ने पलायन किया है। लाकडाउन के बाद महानगरों व पलायन करने वाले लोगों को लौटने के लिए वाहन नहीं मिल रहे थे। इससे लोगों के ट्रकों से माल वाहकों से व पैदल सैकड़ों किमी का सफर करना पड़ा। शहरों में रोजगार छूटने के बाद मकान का किराया सहित अन्य खर्चों के कारण ज्यादा दिन तक रुक भी नहीं पा रहे थे।

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