SUPREME COURT : PMLA की धारा 50 और ECIR पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी, ECIR FIR नहीं, सिर्फ ED का आंतरिक दस्तावेज

SUPREME COURT : Supreme Court’s comment on section 50 of PMLA and ECIR, ECIR is not FIR, just an internal document of ED
नई दिल्ली। प्रवर्तन निदेशालय (ED) की समन शक्तियों और ECIR की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट (ECIR) को FIR के समकक्ष नहीं माना जा सकता, क्योंकि यह सिर्फ ईडी का एक आंतरिक दस्तावेज है। इसके चलते सीआरपीसी की एफआईआर से संबंधित धाराएं ECIR पर लागू नहीं होंगी।
ECIR की प्रति देना अनिवार्य नहीं
कोर्ट ने कहा कि ECIR की प्रति आरोपित को देना अनिवार्य नहीं है। गिरफ्तारी के दौरान यदि गिरफ्तारी के आधारों का खुलासा कर दिया जाए, तो यह पर्याप्त है। कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि जब कोई आरोपी विशेष न्यायालय के समक्ष पेश होता है, तो कोर्ट स्वयं यह देखने के लिए रिकॉर्ड मांग सकता है कि क्या निरंतर हिरासत आवश्यक है या नहीं।
PMLA की धारा 50 और 63 की संवैधानिक वैधता पर सवाल
सुनवाई के दौरान धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA) की धारा 50 और 63 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि ये प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14, 20, 21 और 300A का उल्लंघन करते हैं।
धारा 50 के तहत ED को मिलती हैं ये शक्तियां:
• सिविल कोर्ट के बराबर अधिकार
• किसी व्यक्ति को बुलाने, साक्ष्य देने व दस्तावेज प्रस्तुत करने की शक्ति
• सम्मन के अनुपालन की बाध्यता
• साक्ष्य पेशी को न्यायिक प्रक्रिया की तरह माना जाना
• दस्तावेज जब्त करने की शक्ति
धारा 63 के अंतर्गत:
• गलत जानकारी देने या नियम न मानने पर सजा का प्रावधान
याचिका में क्या कहा गया?
याचिकाकर्ता का कहना है कि धारा 50 के अंतर्गत बयानों की जबरन रिकॉर्डिंग आत्म-दोषारोपण की ओर ले जाती है, जो अनुच्छेद 20(3) और अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। बिना किसी कारण बताए समन जारी करना भी मौलिक अधिकारों और आपराधिक प्रक्रिया संहिता के खिलाफ बताया गया है।
सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी:
“ECIR, FIR की तरह सार्वजनिक नहीं है। यह ED का एक आंतरिक दस्तावेज है और इसका खुलासा आवश्यक नहीं। गिरफ्तारी के आधारों की जानकारी देना पर्याप्त है।”