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SUPREME COURT : सुप्रीम कोर्ट के फैसले से आदिवासी समाज में गहराया विवाद …

SUPREME COURT : Supreme Court’s decision deepens the controversy in the tribal society…

जगदलपुर, 31 जुलाई 2025। सुप्रीम कोर्ट द्वारा आदिवासी बेटियों को संपत्ति में भाइयों के बराबर अधिकार देने के फैसले के बाद छत्तीसगढ़ सहित देशभर के आदिवासी समाज में असंतोष की लहर फैल गई है। आदिवासी नेताओं और संगठनों ने इस फैसले को समाज की परंपरा और संविधान प्रदत्त विशेष अधिकारों के खिलाफ बताया है।

पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने इस फैसले पर असहमति जताते हुए कहा कि यह निर्णय आदिवासी संस्कृति और समाज की संरचना के खिलाफ है। नेताम के मुताबिक, कोर्ट का निर्णय भले ही कानूनी दृष्टि से उचित हो, लेकिन यह आदिवासी रीति-रिवाजों और आस्थाओं से टकराता है।

उन्होंने यह भी कहा कि इस फैसले से लव जिहाद जैसे मामलों में वृद्धि की आशंका है, क्योंकि संपत्ति के लालच में बाहरी तत्व आदिवासी बेटियों से विवाह कर सकते हैं। नेताम ने झारखंड, ओडिशा व मध्यप्रदेश के आदिवासी नेताओं से चर्चा कर जल्द ही एक राष्ट्रीय स्तर की बैठक आयोजित करने की बात कही है।

राजाराम तोड़ेम का बयान –

पूर्व विधायक व सर्व आदिवासी समाज के प्रांतीय कार्यकारी अध्यक्ष राजाराम तोड़ेम ने कहा कि आदिवासी समाज जमीन को देवी-देवता का स्वरूप मानता है। विवाह के बाद बेटियों को जमीन देने से देवी-देवता दूसरे कुल में चले जाते हैं, जो परंपरा के अनुसार स्वीकार्य नहीं है। उन्होंने चेताया कि सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से समाज में कलह और विघटन की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

दशरथ कश्यप बोले – आस्था को ठेस

सर्व आदिवासी समाज के जिला अध्यक्ष दशरथ कश्यप ने कहा कि आदिवासी समाज प्रकृति पूजक है और जमीन का अन्न कुल देवताओं को समर्पित किया जाता है। ऐसे में बेटी के विवाह उपरांत दूसरे गोत्र में जाने पर जमीन के साथ आस्था और परंपरा का हनन होगा।

क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?

सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ की एक आदिवासी महिला के संपत्ति विवाद पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी भी आदिवासी महिला को उसके पैतृक संपत्ति में बराबरी का अधिकार देना न्यायसंगत है। बेटियों को हक से वंचित करना लैंगिक भेदभाव के दायरे में आता है और यह संविधान के समानता के अधिकार का उल्लंघन है।

क्या हो सकता है आगे?

इस फैसले के विरोध में अब पुनर्विचार याचिका दायर की जाएगी। आदिवासी समाज सुप्रीम कोर्ट में अपनी आस्था, परंपरा और सामाजिक संरचना को आधार बनाकर पक्ष रखेगा।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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