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तिरछी नजर 👀 : दलबदलूओं की मौज…. ✒️✒️

आरएसएस ने भाजपा से 15 टिकट मांगी थी लेकिन कई दौर की बैठक के बाद आरएसएस के पसंदीदा आधे दर्जन को ही टिकट मिल पाया। दिलचस्प बात यह है कि पार्टी ने करीब 17 ऐसे नेताओं को टिकट दी है,जो कि कांग्रेस या अन्य दलों से आये हैं।
कई तो कुछ महीने पहले पार्टी में आये थे और प्रत्याशी बनने में कामयाब रहे। इनमें धर्मजीत सिंह भी हैं। धर्मजीत की बात तो समझ में आती है कि वो कांग्रेस से लडक़र जोगी कांग्रेस के विधायक हैं। मगर कई और नेता जो कांग्रेस में छोटे कार्यकर्ता के रुप में काम कर रहे थे वो भी टिकट पाने में कामयाब रहे।
कांग्रेस और अन्य दलों से आये जिन नेताओं को टिकट मिली है उनमें मोती लाल साहू ,प्रबोध मिंज,सौरभ सिंह, राजेश अग्रवाल, पुरन्दर मिश्रा, दिनेश लाल जांगड़े, गोंगपा के पूर्व नेता भूलन सिंह मरावी, खुशवंत साहेब, देवलाल ठाकुर, दिपेश साहू, संतोष लहरे,रोहित साहू, विजय बघेल, रामदयाल उइके, संपत अग्रवाल भी हैं। बसना से प्रत्याशी संपत पहले शिवसेना से पार्षद चुनाव लड़े थे और फिर बाद में भाजपा में आये। पिछला चुनाव उन्होनें निर्दलीय प्रत्याशी की हैसियत से लड़ा था। यानी टिकट का एकमात्र आधार जीत की संभावना रही है।योगेश तिवारी अभी भी लाईन में है। अब देखना है कि ये दलबदलू भाजपा की उम्मीदों पर खरा उतरते हैं या नहीं।

2018 का दृश्य फिर दिख रहा है

चुनाव के नजदीक आते-आते 2018 का दृश्य दिखने लगा है। गत चुनाव में रमन सिंह और भूपेश बघेल ही आमने-सामने थे। रमन सिंह शक्तिशाली नेता थे और इस बार भी दिख रहे हैं। भूपेश बघेल आक्रामक तरीके से पिछली बार की तरह चुनाव लड़ रहे हैं। टीएस बाबा को छोडक़र कांग्रेस के सारे नेता अपने विधानसभा क्षेत्र तक सीमित है। इस बार भी टीएस सरगुजा सहित कुछ क्षेत्रों में रणनीति बनाते दिख रहे हैं। धान खरीदी और कर्जमाफी पिछले चुनाव में भी बड़ा मुद्दा था। पिछले चुनाव में भी अजीत जोगी की पार्टी थी और कांग्रेस में असंतोष था। जोगी जी की पार्टी कई क्षेत्रों में प्रभावशाली रहा। इस चुनाव में भी जोगी की पार्टी असंतुष्ट नेताओं का जमावड़ा बनता जा रहा है। छोटे जोगी की रणनीति पर सबकी निगाह है। पिछले चुनाव में भी भाजपा ने क्षेत्रीय पार्टियों और बागियों को खूब संसाधन उपलब्ध कराये थे। इस बार भी तीसरे मोर्चे को खड़ा करने की कोशिश हो रही है। भाजपा और कांग्रेस में कमोवेश वहीं बड़े चेहरे इस बार भी देखने को मिल रहे है। पार्टी के कार्यकर्ताओं में नाराजगी पिछले बार भी देखने को मिली इस बार देखने को मिली। इस बार ईडी,जाति जनगणना का मुद्दा भी है। प्रदेश में मतदाता बढ़े है लेकिन पिछले बार की तरह रिजल्ट की उम्मीद दोनों पार्टियों को नहीं है।

महंत और बृजमोहन की चुप्पी..

रायपुर दक्षिण विधानसभा क्षेत्र के कांग्रेस प्रत्याशी महंत रामसुंदर दास का बायोडाटा प्रोफाइल बहुत मजबूत है। धर्म की राजनीति और हिन्दुत्व प्रभावी है इसलिए दिग्गज बृजमोहन के खिलाफ मैदान में उतारा गया है। महंत के मठ दूधाधारी में दूर दराज से आए साधु संतों का जमावड़ा लगा है। साधु संत सुबह से भिक्षा के साथ वोट भी मांगने निकल रहे है। महंत जी भी सुबह 5 बजे उठकर पूजा पाठ करने के बाद 6 बजे दक्षिण विधानसभा क्षेत्र में के गार्डनों में प्रचार करने निकल पड़ते हैं। आरोप प्रत्यारोप की राजनीति से दूर दोनों प्रत्याशी जनसंपर्क और रणनीति में तवज्जों दे रहे है। देर रात तक चुनाव रणनीति बनाने वाले बृजमोहन अग्रवाल के डॉ. दामाद ने गार्डनों में प्रचार का मोर्चा सम्हाल लिया है। बृजमोहन ने अपने प्रचार सामग्री में इस बार साधु संतों की फोटो को ज्यादा तवज्जों दिया है। देखते हैं दिलचस्प चुनाव में चेप्टी (शराब) सहित अन्य काम में कौन आगे रहता है।

प्रत्याशी बदलने का हल्ला भी..

प्रदेश की कुछ सीटों में प्रत्याशी कमजोर होने के कारण फेरबदल का हल्ला है। यह हल्ला कांग्रेस और भाजपा दोनों में है। भाजपा बेमेतरा में अंतिम समय में प्रत्याशी बदल सकती है। धमतरी विधानसभा क्षेत्र के प्रत्याशी चयन को लेकर एक बार भी कयास लगाया जा रहा है। कांग्रेस कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल और धमतरी के पूर्व विधायक गुरूमुख सिंह होरा का झगड़ा पुराना है। रामगोपाल अग्रवाल की भावनाओं के अनुरूप धमतरी के मंडी अध्यक्ष ओमकार साहू को टिकट दे दी गई है। धमतरी के कांग्रेस प्रत्याशी चुनाव लड़ेगें इसको लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है। विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत और उपमुख्यमंत्री टीएस बाबा गुरुमुख के लिए जोरदार प्रयास कर रहे है। मध्यप्रदेश की तर्ज पर छत्तीसगढ़ में भी दो सीट ओपन कर नए प्रत्याशी देने की आशा है। डॉ. विनय जायसवाल ने गोंड़वाना से चुनाव लडऩे का मन बना लिया था लेकिन मुख्यमंत्री से चर्चा के बाद उन्होंने इरादा बदल दिया। वैसे उनकी पत्नी महापौर भी हैं। यदि कांग्रेस से बाहर होते तो वो खुद चुनाव नहीं जीत पाते और बाद में चुनाव निपटने के बाद उनकी पत्नी को खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आ जाता। अभी घर में कम से कम एक तो अहम ओहदे पर है। गुरुमुख की टिकट को लेकर अभी भी थोड़ी उम्मीद है। मामला कांग्रेस हाईकमान के पास पहुंचा है। देखते हैं कौन जीतता है?

राजेश मूणत की पैनी नजर..

पूर्व मंत्री राजेश मूणत ने पार्टी के भीतर अपने विरोधियों को मनाने में कामयाबी हासिल तो कर ली है लेकिन उनपर नजर रखे हुए हैं। ऐसे ही रायपुर पश्चिम से टिकट के एक प्रमुख दावेदार के पीछे अपने करीबियों को लगा दिया है। इससे खफा होकर दावेदार पार्टी के दूसरे प्रत्याशी के प्रचार के लिए निकल गये हैं।
मूणत ने इस बार प्रचार का तरीका भी बदला है। कहा जा रहा है कि वो दिल्ली की एक कंपनी की सेवाएं भी ले रहे हैं। कारोबारी मित्रों को मैनेजमेंट संभालने का जिम्मा दिया है और गरीब और पिछड़े वर्ग के युवाओं को लेकर साथ घूम रहे हैं। प्रचार के तौर तरीकों को लेकर उनकी बृजमोहन अग्रवाल के साथ दो तीन बार बैठक भी हो चुकी है। अब प्रचार का तरीका बदलने से उन्हें कोई फायदा मिलता है या नहीं ,यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।

कर्जमाफी की समीक्षा…

विधानसभा चुनाव में तेजी आने के बाद अब मंत्रालय में जिलों से आ रही खबरों के अनुसार कर्जमाफी और धान का मुद्दा सबसे ज्यादा प्रभावी है। ईडी के ताबड़ तोड़ छापे का असर नीचे तक नहीं गया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्बारा कर्जमाफी की घोषणा करने के बाद आला अधिकारी कितने लोगों ने कर्ज कैसे लिया है किस बैंक से कितना लिया है। तमाम हालातों पर समीक्षा भी शुरु कर दिये हैं।

दो भाग्यशाली नेताओ में भिडंत 

कुलदीप जुनेजा सुबह उठकर सबसे पहले रोज गुरुद्वारा जाते हैं फिर नमस्ते चौक में आम लोगों के बीच 9:00 बजे पहुंच कर समस्या हल करने में जुड़ जाते हैं दूसरी तरफ उनके प्रतिद्वंदी पुरंदर मिश्रा राजधानी के प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर की सेवा में अपना दिन बिताते हैं दोनों को भगवान का अपार आशीर्वाद है दोनों भगवान को खूब मानते भी हैं अब देखते हैं किसी भक्त को ज्यादा आशीर्वाद मिलता है पुरंदर मिश्रा ने 5 साल उत्तर में संघर्ष करने वालों को पछाड़ते हुए टिकट लाकर सबको चौंका दिया पिछले कुछ महीनों से यह चर्चा थी कि श्री जुनेजा को इस बार पार्टी मौका नहीं देगी। आखिरी समय तक इस सीट पर उहापोह की स्थिति बनी हुई थी। टिकट आबंटन के कुछ दिनों पहले उन्हें हाउसिंग बोर्ड का दुबारा अध्यक्ष बनाने का आदेश जारी हुआ तो सबने लगभग यह मान लिया था कि अब पार्टी किसी दूसरे को रायपुर उत्तर से मैदान में उतारेगी। इसीलिए उन्हें चुनाव से पहले अध्यक्ष की कुर्सी दे दी गई ताकि असंतोष न हो। उत्तर सीट के दो दावेदारों ने अपनी टिकट पक्की मानकर प्रचार भी शुरू कर दिया था। लेकिन आखिरी समय में फिर ऐसा समीकरण बना कि पार्टी को फिर उन्ही को प्रत्याशी बनाने का निर्णय लेना पड़ा और श्री जुनेजा की किस्मत चमक गई। अध्यक्ष की कुर्सी भी मिल गई और चुनाव लड़ने की टिकट भी। अब चुनाव में उनकी किस्मत कितना साथ देती है यह आने वाले 3 दिसम्बर को पता चलेगा।

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