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तिरछी नजर : बोतल का जिन्न

 

चर्चा है कि डाक्टर साहब इन दिनों एक आईएएस अफसर से काफी नाराज हैं । डाक्टर साहब ने अपने कार्यकाल में अफसर को मनचाही पोस्टिंग दी थी और उन्हें अपना विश्वस्त भी समझते थे । सरकार बदलने के बाद भी अफसर की हैसियत में कोई कमी नहीं आई । कुछ समय पहले डाक्टर साहब ने अफसर को किसी काम से फोन लगाया, तो कोई जवाब नहीं दिया । और तो और काल बैक भी नहीं किया । अफसर की बेरूखी से डाक्टर साहब नाराज हो गए । अब डाक्टर साहब को कौन समझाए, कि नौकरशाह बोतल के जिन्न की तरह होते हैं , जिसका बोतल उसका दास । ये अलग बात है कि डाक्टर साहब ने अपने समय में कुछ अफसरों कहे मुताबिक चलकर पार्टी नेताओं की नाराजगी मोल ले ली थी पार्टी के कई नेताओं का गुस्सा अभी भी बरकरार है ।

 

रिटायरमेंट के बाद धर्म-कर्म

रिटायर होने के बाद कई अफसर काम धंधे में लग जाते हैं। कुछ तो समाज सेवा में अपना पूरा समय देते हैं। ऐसे ही बस्तर में एडिशनल कलेक्टर रहे 73 बैच के आईएएस सत्यानंद मिश्रा इन दिनों प्रतिष्ठित आध्यात्मिक गुरू माता अमृतानंद ट्रस्ट द्वारा संचालित अमृता हॉस्पिटल प्रोजेक्ट से जुड़े हुए हैं। ट्रस्ट फरीदाबाद में एक बड़े हॉस्पिटल का निर्माण कर रहा है। इस हॉस्पिटल का निर्माण सत्यानंद मिश्रा की देखरेख में हो रहा है। मिश्रा निशुल्क सेवाएं दे रहे हैं।

मध्यप्रदेश कैडर के अफसर सत्यानंद मिश्रा की गिनती एक अच्छे नौकरशाह में होती रही है। वे अविभाजित मध्यप्रदेश में कोरबा में साडा के प्रशासक रहे हैं, और बालाघाट सहित कई जिलों के कलेक्टर रहे हैं। वे केन्द्र सरकार में डीओपीटी सचिव के पद से रिटायर होने के बाद केन्द्रीय सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त भी रहे। छत्तीसगढ़ के रिटायर्ड मुख्य सचिव शिवराज सिंह के बैचमेट हैं। यह भी खास बात है कि मिश्रा की तरह शिवराज सिंह धर्म-कर्म और अध्यात्म में रूचि रखने वाले हैं। शिवराज सिंह के आध्यात्मिक गुरू देवराहा बाबा हैं।

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रमन सिंह की सक्रियता

पूर्व सीएम रमन सिंह ने एकाएक अपने विधानसभा क्षेत्र राजनांदगांव में जनसंपर्क तेज कर दिया है। वो रोजाना राजनांदगांव जा रहे हैं। कभी कभार रात्रि विश्राम भी राजनांदगांव में करते हैं। इससे पहले साढ़े 3 साल यहां उनकी सक्रियता काफी कम थी। कोरोना के समय तो उनकी गैर मौजूदगी की काफी चर्चा रही। रमन सिंह सरल स्वभाव के राजनेता हैं, लेकिन विधानसभा चुनाव में हार के बाद से उनकी जमीनी पकड़ कमजोर होती चली गई है।

खुद विधानसभा चुनाव ले देकर जीते थे। उनके गृह नगर कवर्धा का हाल तो यह रहा कि उस वक्त के 5 राज्यों के चुनाव में सबसे बड़ी हार भाजपा को कवर्धा में ही हुई थी। नगरीय निकाय चुनाव में तो रमन सिंह एक दिन पूरा समय देने के बावजूद कवर्धा में अपने मोहल्ले के पार्षद प्रत्याशी को नहीं जीता पाए थे। हाल के खैरागढ़ उपचुनाव का नतीजा तो सबके सामने है। ऐसे में जानकार लोग रमन सिंह के दौरे को जमीनी पकड़ मजबूत करने की कोशिशों के रूप में देख रहे हैं।

नए चेहरों पर दांव

आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा टिकट किसको देगी और किसकी टिकट कटेगी इसकी अटकलें अभी से लगाई जा रही है। ऐसा अनुमान है कि दूसरी पीढ़ी के नेताओं को ज्यादा मौका मिलेगा। संघ परिवार और संगठन के लोग जिला पंचायत सदस्य, जनपद सदस्य, सरपंच और पार्षदों को टटोल रहे हैं । इनके इर्द गिर्द समीकरण बैठाने की अंदरूनी कोशिश चल रही है। चर्चा है कि छत्तीसगढ़ भाजपा के पुराने नेता मार्गदर्शक मंडल में दिख सकते हैं।

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सोशल मीडिया में फालोवर बढ़े लेकिन.. 

पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल को ऐतिहासिक लगभग 50 हजार वोटों से हराने वाली कांग्रेस विधायक और संसदीय सचिव शकुंतला साहू की सक्रियता क्षेत्र में कम सोशल मीडिया में अधिक होने से कार्यकर्ता परेशान है। ट्विटर परक्षएक लाख से अधिक फालोवर हो गये है। देश-प्रदेश की हर छोटी बड़ी घटनाओं पर सूझबूझ के साथ प्रतिक्रिया भी आ रही है। लेकिन विधानसभा क्षेत्र में फालोवर कम होने के कारण कांग्रेस पार्टी चिंतित है। कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं से तो बातचीत भी बंद है। शकुन्तला को आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट मिलेगी या नहीं, इसको लेकर कयास लगने लगे हैं।

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मीडिया में दांव लगाएंगे दिग्गज

 

छत्तीसगढ़ में आगामी विधानसभा चुनाव में इस बार विशेष कर सोशल मीडिया और इलेक्ट्रानिक मीडिया में जोर-शोर से बढऩे वाली है। सोशल मीडिया और इलेक्ट्रानिक मीडिया चलाने वाले नामी गिनामी कंपनियों की निगाह राजधानी रायपुर में बढ़ गई है। दफ्तर खोलकर बैठ गये हैं। कई बड़े बिल्डर और व्यापारी भी इस खेल में कूदने की तैयारी में है। आगामी दिनों भारी उथल पुथल देखने को मिल सकती है ।

चूक गई अनुसुईया उइके

राष्ट्रपति के लिये भाजपा की तरफ से प्रत्याशी चयन के दौरान छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुईया उइके के नामों पर भी चर्चा हुई थी चूंकि विपक्ष की तरफ से प्रत्याशी यशवंत सिन्हा का नाम आने के बाद समीकरण बिगड़ गया। बिहार, उड़ीसा से राजनीतिक संतुलन बनाये रखने के लिए उड़ीसा की महिला आदिवासी द्रौपदी मुर्मू का नाम तय हो गया। कांग्रेस से बीजेपी में आना और इतना बड़ा पद कुछ लोगों हजम नहीं हो रहा था? किसी महिला आदिवासी को इस बार राष्ट्रपति बनाने की रणनीति भाजपा की रही है, इसमें अनुसुईया उइके के नाम पर भी वजन था लाफिंग भी हुई थी। सारी रिपोर्ट भी केन्द्र के पास अनुकूल गया था। लेकिन भाग्य ने शायद साथ नहीं दिया।

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