
CG NEWS:रायपुर। सालों से साधना कर रहे हैं। फिर भी जीवन में परिवर्तन नहीं आया। कषाय, क्रूरता बढ़ती जा रही है। धर्म पर श्रद्धा रखें। जैन धर्म में हर काम को विवेक से करने की शिक्षा दी गई है। समता जैनत्व का आधार है। आत्मा का उद्देश्य जिन शासन की प्राप्ति है। इसके लिए मोह-माया छोड़नी होगी।
एमजी रोड स्थित जैन दादाबाड़ी में श्री विनय कुशल मुनि म. सा. के सानिध्य में चल रहे चातुर्मासिक प्रवचन में श्री विराग मुनि म. सा. ने यह बातें कही। उन्होंने राजा वर्धमान से जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी बनने का उदाहरण देते हुए बताया, वर्धमान की पत्नी का नाम यशोधरा था। राजा वर्धमान ने जब संसार छोड़कर वैराग्य अपनाने के भाव रखे, तो यशोधरा ने इस त्याग में उनका पूरा सहयोग किया। आज हम क्या करते हैं? कोई धर्म पथ पर चलना भी चाहे तो उसे टोकते हैं। कहेंगे कि अभी उम्र ही क्या हुई है? धर्म कर आत्मा की गति सुधारने की कोई उम्र नहीं होती। वैसे भी अनेकानेक जन्मों में आपने संभवत: उन सभी सुखों का भोग कर लिया होगा, जिन्हें आज आप पाना चाहते हैं। सुख की लालसा जब तक खत्म नहीं होगी, दुनिया के दुखों से छुटकारा नहीं मिलेगा। धर्म की राह पकड़िए। संयम पालिए। कर्मों के बंध से छुटिए। जन्म-मरण से छुटकारा पाइए। मोक्ष मिलेगा। आत्मकल्याण होगा।
दूसरों को नियंत्रित करने की इच्छा बेकार
अपने पर ध्यान दें, यही ज्यादा बेहतर होगा
धर्मसभा में मुनिश्री ने कहा, अपेक्षा हमारे दुखों का कारण है। अपेक्षा नहीं करेंगे, तो उपेक्षा भी नहीं होगी। दुख भी नहीं होगा। वैसे भी यह चाहना कि कोई और हमारे मन मुताबिक काम करे, ये सोच ही गलत है। हम किसी को नियंत्रित नहीं कर सकते। ऐसा करने की इच्छा रखना ही बेकार है। हम जो कर सकते हैं, स्वयं कर सकते हैं। खुद पर ध्यान दें। इंद्रियों पर नियंत्रण रखें। क्रोध, लोभ, मोह और मान से बचें। इन सभी से कर्मों का बंध होता है। इन्हीं के फेर में आप हजारों-हजार वर्षों से जन्म-मरण के बंधन में बंधे हैं। कर्मों के बंधन से आजाद न हुए तो आगे भी हजारों साल तक इसी मृत्युलोक में मर-मरकर जन्म लेते रहेंगे और अनंत कष्टों को भोगते रहेंगे। धर्म की शरण में जाकर इन सब से ऊपर उठिए।
तपस्वियों को पहनाया गया रक्षा सूत्र
कल सातवीं लड़ी का पहला उपवास
आत्मस्पर्शीय चातुर्मास समिति के अध्यक्ष पारस पारख और कोषाध्यक्ष अनिल दुग्गड़ ने बताया कि रक्षाबंधन पर्व के अंतर्गत रविवार को धर्मसभा में महान सिद्धि तप के तपस्वियों को रक्षा सूत्र बांधा गया, जिसके लाभार्थी पाणि बाई आसकरण जी भंसाली परिवार रहे। रविवार को दादाबाड़ी में तपस्वियों का शाही पारणा कराया गया। तपस्या के अंतर्गत मंगलवार को सातवीं लड़ी का पहला उपवास रहेगा। बड़ी तपस्याओं के क्रम में प्रिंसी भंसाली, मनोज लोढ़ा, प्रीति भंसाली मासखमण कर रहे हैं। और भी कई बड़ी तपस्याएं जारी हैं। बसंत लोढ़ा और रमेश जैन ने बताया कि सोमवार को सोमवती पूर्णिमा के अवसर पर शाम को दीपों से दादा गुरुदेवों की महाआरती की गई। इकतीसा जाप के तहत प्रतिदिन रात 8.30 से 9.30 बजे तक प्रभु भक्ति जारी है।