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BIG NEWS : जबरन धर्मांतरण के खिलाफ बनेगा कानून? सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में क्या हुआ

BIG NEWS : Will a law be made against forced conversion? What happened in the Supreme Court hearing

देश में जबरन धर्म परिवर्तन एक गंभीर मसला बन गया है. कुछ राज्यों ने अपने स्तर पर कानून जरूर बनाए हैं, लेकिन अब ये मामला सिर्फ कुछ राज्यों तक सीमित नहीं रह गया है. इसी वजह से सुप्रीम कोर्ट से भी अपील की गई है कि इस जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ एक सख्त कानून बनाया जाए. अब इसी कड़ी में सर्वोच्च अदालत में सोमवार को अहम सुनवाई हुई थी. SC ने जबरन / धोखे से हो रहे धर्मान्तरण पर चिंता जाहिर की है.

धर्म परिवर्तन के खिलाफ कानून की मांग

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा है कि ये सिर्फ़ एक राज्य विशेष से जुड़ा मसला नहीं है. हमारी चिंता देश भर में हो रहे ऐसे मामलों को लेकर है. इसे किसी एक राज्य से जोड़कर राजनीतिक रंग देने की ज़रूरत नहीं है. अब जानकारी के लिए बता दें कि इस मामले में पांच दिसंबर को भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी. तब कोर्ट ने केंद्र से राज्यों से बात कर एक हलफनामा दाखिल करने को कहा था. उस समय जस्टिस एमआर शाह ने दो टूक कहा था कि लोगों को धर्म चुनने का अधिकार होना चाहिए, लेकिन धर्मांतरण करवाना ठीक नहीं है. उस समय सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया था कि गुजरात सरकार ने इस जबरन धर्मांतरण के खिलाफ कानून बनाया है, कुछ दूसरे राज्यों से भी चर्चा हो रही है, दो हफ्तों के भीरत केंद्र एक हलफनामा दायर कर देगा. अब उसी आश्वासन के बाद सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को सुनवाई हुई, लेकिन केंद्र ने हलफनामा दायर नहीं किया.

केंद्र से नाराज क्यों है सुप्रीम कोर्ट?

अभी के लिए केंद्र की तरफ से हलफनामा दाखिल ना होने पर कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की है. याणिकाकर्ता के वकील ने कहा कि जबरन या लालच देकर धर्म परिवर्तन मामले मे कोई कानून नही है. इसलिए कोर्ट को इस पर कानून बनाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील अरविंद दातार से ये भी कहा कि ये बहुत सीरियस मामला है, ऐसे मामले में वर्चुअली अपीयर नहीं होना चाहिए. इस बात पर भी जोर दिया गया कि हर जरूरी कदम उठाया जाएगा. कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल से कहा कि वे इस मुद्दे पर अदालत की सहायता करें. अब सुनवाई के दौरान एक वक्त ऐसा भी आया जब अदालत ने तमिलनाडु सरकार को फटकार लगाई. असल में याचिकाकर्ता और बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय को लेकर कहा गया था कि वे पार्टी कार्यकर्ता की तरह ज्यादा बात कर रहे हैं और एक प्रवक्ता की भूमिका निभा रहे हैं.

तमिलनाडु सरकार को पड़ी फटकार

राज्य सरकार की तरफ से हुई उस बयानबाजी से कोर्ट नाराज है. जस्टिस सीटी रविकुमार ने राज्य सरकार को नसीहत दी है कि ऐसे महत्वपूर्ण मामलों में बयानबाजी करने से बचना चाहिए. वहीं दूसरी तरफ इस मामले से याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय को अलग कर दिया गया है. अब कोर्ट ने इस मामले का स्वतः संज्ञान लिया है. इस मामले में 7 फरवरी को अगली सुनवाई होने वाली है.

 

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