नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दोहराया कि आजीवन कारावास की सजा का मतलब कठोर कारावास है न कि साधारण कारावास. जस्टिस एल नागेश्वर राव और बीआर गवई की बेंच ने इस संबंध में शीर्ष अदालत के 1983 के फैसले की पुष्टि की और कहा कि कानून की तय स्थिति की फिर से जांच करने की कोई आवश्यकता नहीं है.
नायब सिंह बनाम पंजाब राज्य में 1983 के फैसले में सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा था कि न्यायिक मिसालों की कोई कमी नहीं है, जहां सजा की प्रकृति के मामले में, आजीवन कारावास को आजीवन कठोर कारावास के बराबर माना गया है.
कोर्ट ने आगे कहा कि यह मानना होगा कि एक सजा में शामिल सजा की प्रकृति के संबंध में कानून में स्थिति अगर आजीवन कारावास अच्छी तरह से तय हो गई है और आजीवन कारावास की सजा को आजीवन कठोर कारावास के बराबर किया जाना है.
बता दें कि 1992 में सत पत अलीसा साधु बनाम हरियाणा राज्य में सुप्रीम कोर्ट ने नायब सिंह के फैसले को स्वीकार कर लिया था और इस मुद्दे को एक बड़ी बेंच को संदर्भित करने से इनकार कर दिया था.
न्यायालय ने कहा कि इस मुद्दे पर पुनर्विचार की आवश्यकता नहीं है और वर्तमान याचिकाओं को खारिज कर दिया. याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ए सिराजुदीन और अधिवक्ता अजय मारवाह पेश हुए.