अपराध पुलिस-प्रशासन से नहीं, बल्कि संस्कारों से थमेंगे-पं. प्रदीप मिश्रा

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इंदौर। श्रद्धा के 36 टुकड़े हुए इस बात का पता इसलिए चला क्योंकि उनके पिता को उनकी चिंता थी। यह चिंता दो-तीन दिन में होती रहती तो शायद वह जीवित मिल जाती। आज आवश्यकता बच्चों को संस्कार देने की है। ऐसा नहीं है कि माता-पिता संस्कार नहीं देते, लेकिन यह संस्कार सही उम्र में दिए जाएं तो इनका प्रभाव अधिक होता है। जीवन में सुख-दुख आएं फिर भी मुख से मुस्कान नहीं जानी चाहिए। भगवान राम और कृष्ण के जीवन में कई मुश्किलें आई, लेकिन जीवन में प्रसन्नता सदा बनी रही। जीवन में आई सभी मुश्किलों का समाधान देवी अहिल्या ने हाथ में शिव को थामकर किया।
ये बातें कथावाचक पं. प्रदीप मिश्रा सीहोरवाले ने इंदौर में प्रेस से मिलिए कार्यक्रम में पत्रकारों से चर्चा करते हुए कही। उन्होंने कहा कि मैं जो उपाय बताता हूं वे शिव पुराण में उल्लेखित हैं, लेकिन यह भी मानना कि व्यक्ति का जीवन कर्म प्रधान है। जीवन में सुख-दुख कर्मों के आधार पर आते हैं। कथा की राशि पर उठे सवाल पर उन्होंने कहा कि कथा धन से नहीं भाव से होती है। भाव से की गई कथा ही सफल होती है। मैंने इंदौर के नीमा परिवार के यहां पहली कथा 11 रुपये की दक्षिणा में की थी। एक अन्य प्रश्न के जवाब में कहा कि अपराध पुलिस-प्रशासन से नहीं, बल्कि संस्कारों से थमेंगे। सत्संग और संतों के मार्गदर्शन से संस्कारित समाज का निर्माण होगा और अपराधों पर रोक लगेगी।

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