20 महीने के रिकॉर्ड हाई पर पहुंचा 10 सालों का बॉन्ड यील्ड, क्रूड ऑयल और महंगाई में तेजी का दिख रहा असर

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नई दिल्ली : 10 सालों का बेंचमार्क बॉन्ड यील्ड यानी बॉन्ड पर मिलने वाली ब्याज की दर 20 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है. यह अप्रैल 2020 के बाद सर्वोच्च स्तर पर है. दूसरे शब्दों में कोरोना काल में यह सर्वोच्च स्तर पर है. बॉन्ड यील्ड में तेजी के तीन प्रमुख कारण बताए जा रहे हैं. सरकार ने बड़े पैमाने पर कर्ज लिया है और कर्ज प्रस्तावित है. इसके अलावा ग्लोबल मार्केट में तेल का भाव बढ़ता जा रहा है. भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक है.

रिजर्व बैंक की तरफ से इकोनॉमी को सपोर्ट करने के लिए डायरेक्ट सपोर्ट नहीं दिया गया गया है. इससे भी निवेशकों के सेंटिमेंट पर असर हुआ है. भारत सरकार की तरफ से इस शुक्रवार को 240 बिलियन का बॉन्ड जारी किया जा रहा है. इसमें 130 बिलियन का बॉन्ड 10 सालों की अवधि वाला है. अब तक सरकार की तरफ से 1.48 लाख करोड़ रुपए यानी 1480 बिलियन का बॉन्ड जारी किया जा चुका है. अमूमन जब सरकार 1500 बिलियन का बॉन्ड जारी कर देता है तो वह नया बॉन्ड जारी करता है.

6.50 फीसदी की दर पर बॉन्ड यील्ड
10 सालों का बॉन्ड यील्ड इस समय 6.50 फीसदी के करीब है. यह 13 अप्रैल 2020 के बाद से सर्वोच्च स्तर है. फाइनेंशियल मार्केट के जानकारों का कहना है कि दिसंबर में मॉनिटरी पॉलिसी को जारी करते हुए रिजर्व बैंक ने कहा कि वह अभी इसी पॉलिसी पर आगे बढ़ेगी. उसका उदार रुख बरकरार रहेगा. हालांकि, कोरोना से लड़ रही इकोनॉमी के लिए डायरेक्ट सपोर्ट की घोषणा नहीं की गई है.

कच्चे तेल के भाव में उछाल
ट्रेडर्स का कहना है कि कच्चे तेल का भाव लगातार बढ़ रहा है. इंटरनेशनल मार्केट में कच्चा तेल इस समय 79 डॉलर के करी ब है. महंगाई दर भी कम होने का नाम नहीं ले रही है. इस समय यह 5 फीसदी के करीब है. नवंबर में रिटेल इंफ्लेशन 4.91 फीसदी रहा. पेट्रोल-डीजल पर टैक्स में कटौती के बावजूद महंगाई पर कुछ खास असर नहीं दिखा. इन दो फैक्टर्स का बॉन्ड यील्ड पर असर दिखाई देगा.

बॉन्ड यील्ड में तेजी का संकेत ठीक नहीं
जब यील्ड में तेजी आती है तो इसका मतलब है कि निवेशकों को खतरा महसूस हो रहा है. ऐसे में वे महंगाई से बचने के लिए बॉन्ड मार्केट की तरफ जाते हैं और पैसा जमा करने लगते हैं. इकोनॉमिक एक्टिविटी के लिए यील्ड में तेजी सही नहीं माना जाता है. कोरोना काल में फिसल कर यह 5.6 फीसदी तक पहुंच गया था.

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