छत्तीसगढ़ सरकार की विश्वास, विकास, सुरक्षा की नीतियों के चलते राज्य में सिमटी नक्सल गतिविधियां
Naxal activities confined in the state due to the policies of trust, development, security of the Chhattisgarh government.
रायपुर। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ सरकार की विश्वास, विकास और सुरक्षा की नीति के चलते राज्य के नक्सल प्रभावित बस्तर अंचल में नक्सल गतिविधियां काफी हद तक सिमट गई हैं। बीते साढ़े तीन सालों से राज्य में नक्सली घटनाओं की संख्या में काफी कमी आई है। वर्ष 2008 से लेकर 2018 तक के आंकड़ों को यदि देखा जाए तो इस दौरान राज्य में नक्सलियों द्वारा हर साल 500 से लेकर 600 हिंसक घटनाओं को अंजाम दिया जाता था, जो कि बीते साढ़े तीन सालों में घटकर औसतन रूप से 250 तक सिमट गया है। वर्ष 2022 में अब तक मात्र 134 नक्सल घटनाएं हुई हैं, जो कि 2018 से पूर्व घटित घटनाओं से लगभग 4 गुना कम है।
राज्य में 2018 से पूर्व नक्सली मुठभेड़ के मामले प्रतिवर्ष 200 के तकरीबन हुआ करते थे, जो अब घटकर दहाई के आंकड़े तक सिमट गए हैं। वर्ष 2021 में राज्य में मुठभेड़ के मात्र 81 तथा वर्ष 2022 में अब तक 41 मामले हुए हैं। नक्सलियों के आत्मसमर्पण के मामलों में भी तेजी आई है। बीते साढ़े तीन सालों में 1589 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है। यह आंकड़ा 10 सालों में समर्पित कुल नक्सलियों की संख्या के एक तिहाई से अधिक है।
छत्तीसगढ़ सरकार की जनहितैषी नीतियों और विकास कार्यों का ही यह परिणाम है कि बस्तर संभाग के 589 गांवों के पौने 6 लाख ग्रामीण, नक्सलियों के प्रभाव से पूरी तरह मुक्त हो चुके हैं, जिसमें सर्वाधिक 121 गांव सुकमा जिले के हैं। दंतेवाड़ा जिले 118 गांव, बीजापुर जिले के 115 गांव, बस्तर के 63 गांव, कांकेर के 92 गांव, नारायणपुर के 48 गांव, कोण्डागांव के 32 गांव नक्सल प्रभाव से मुक्त हुए हैं।
गौरतलब है कि वर्ष 2018 की स्थिति में नक्सल समस्या प्रदेश के दो तिहाई क्षेत्र में फैल गई थी। बस्तर अंचल सहित धमतरी, गरियाबंद, महासमुंद, राजनांदगांव, कबीरधाम, रायगढ़ जैसे मैदानी इलाकों में भी नक्सलियों की हिंसक गतिविधि तथा आतंक से पूरे प्रदेश में भय का वातावरण निर्मित हो चुका था। ताड़मेटला, झाराघाटी, एर्राबोर, मदनवाड़ा एवं जीरम घाटी जैसी बड़ी-बड़ी नक्सल वारदातों में सुरक्षाबलों के जवानों के अलावा बड़ी संख्या में राजनैतिक दलों के शीर्ष नेतृत्व एवं आम नागरिक मारे गए। नक्सलियों के हिंसक वारदात के चलते अनेक स्कूल एवं आश्रम बंद हो गए। इस दौरान सड़क, पुल-पुलियों को भी नक्सलियों ने क्षतिग्रस्त किया। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में गठित सरकार द्वारा नक्सल प्रभावित क्षेत्र की जनता का विश्वास हासिल कर विकास कार्यों को गति देने के लिए एक सुरक्षित वातावरण निर्मित करने का गंभीर प्रयास शुरू किया गया, जिसके बेहद सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं।
बस्तर संभाग अंतर्गत नक्सल विरोधी अभियान के साथ-साथ क्षेत्र की जनता के मंशानुरूप विकास कार्यों को गति प्रदान करने के लिए साढ़े तीन सालों में 43 नवीन सुरक्षा कैम्प एवं थानों की स्थापना की गई। स्वास्थ्य, शिक्षा, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, विद्युत सुविधा, बैंक, आंगनबाड़ी केन्द्र एवं अन्य सुविधाएं तेजी से उपलब्ध कराने के कारण लोगों का विश्वास शासन-प्रशासन के प्रति बढ़ा है।
नक्सल आतंक के कारण बस्तर संभाग में वर्षों से बंद 363 स्कूलों में से 257 स्कूल छत्तीसगढ़ सरकार के प्रयासों के चलते फिर से बच्चों की शिक्षा-दीक्षा के लिए शुरू हो गए हैं, जिसमें से 158 स्कूल बीजापुर जिले के, 57 स्कूल सुकमा तथा दो कांकेर जिले के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के हैं। बीते साढ़े तीन सालों मेें छत्तीसगढ़ सरकार ने बस्तर संभाग के सुदूर वनांचल के नक्सल प्रभावित गांवों में आवागमन एवं विद्युत सुविधा पहुंचाने में भी बड़ी कामयाबी हासिल की है। 196 गांवों में बिजली पहुंचाई गई है। बस्तर अंचल में स्थानीय युवाओं को रोजगार से जोड़ने के प्रभावी कदम के साथ-साथ छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल, बस्तर फाइटर्स एवं जिला पुलिस बल में भर्ती का अधिक अवसर मिलने से माओवादियों संगठनों की भर्ती में कमी आयी है।
नक्सल समस्या के समाधान की दिशा में शासन के ठोस निर्णय के फलस्वरूप बस्तर संभाग में माओवादी संगठन की गतिविधि दक्षिण बीजापुर, दक्षिण सुकमा, इन्द्रावती नेशनल पार्क का इलाका, अबूझमाड़ एवं कोयलीबेड़ा क्षेत्र के केवल अंदरूनी हिस्से तक सिमट रह गई है।