KHABAR CHALISA SPECIAL Sneak peek: Former minister’s vow of silence!
भाजपा के एक पूर्व मंत्री के मौन व्रत की खूब चर्चा है। बताते हैं कि पूर्व मंत्री ने सरकार के दो तीन विभागों में अलग-अलग काम के लिए अनुशंसा की थी। अफसरों को फोन भी किया था,लेकिन उनकी सिफारिश रद्दी की टोकरी में चली गई। इसके बाद उन्होंने मौन व्रत धारण कर लिया। कई और लोग अलग-अलग कामों के लिए उनके पास पहुंचे, तो उन्हें साफ तौर पर बता दिया कि वो अब किसी का कोई काम नहीं कर सकते हैं।
पूर्व मंत्री के मौन व्रत की संगठन के प्रमुख पदाधिकारियों तक बात पहुंची, तो उन्होंने पूर्व मंत्री से चर्चा की और उन्हें समझाया भी। इसके बाद वो मौन व्रत तोडऩे के लिए तैयार हो गए। ताजा जानकारी यह है कि पूर्व मंत्री की सिफारिशों को अभी भी तवज्जों नहीं मिल रही है। अब पूर्व मंत्री ने आगे की रणनीति का खुलासा किया है, जिसमें उन्होंने कहा कि उनका मौन व्रत खत्म तो हो चुका है और दिसंबर के बाद अलग तरीके से काम करेंगे। पूर्व मंत्री अपने तेज तर्रार रवैये के लिए जाने जाते हैं। अगला कदम क्या होगा, यह तो नये साल से पता चलेगा।
सुनील सोनी की ताजपोशी..
रायपुर दक्षिण से सुनील सोनी की ऐतिहासिक जीत से भाजपा के एक खेमे में खुशी का माहौल है। सुनील सोनी की राह आसान नहीं थी। अगर मोहन भैया भिड़े नहीं होते तो उतनी लीड नहीं मिल पाती।
मोहन भैया का चुनाव प्रबंधन देखने लायक था। सरकार के मंत्रियों को जिम्मेदारी दी गयी थी। मगर मोहन भैया के साथ प्रबंधन में जिन्हें प्रबंधन में सहयोग करना था वो कंजूसी बरत रहे थे, तब मोहन भैया ने मंत्री जी को अपने तेवर दिखाए। पहली बार के मंत्री जी सहम गए, और फिर जो मोहन भैया चाहते थे वैसा सबकुछ हुआ। रिजल्ट सबके सामने है।
अडानी को लेकर चर्चा..
दिल्ली से लेकर रायपुर तक अडानी सुर्खियों में हैं। प्रदेश के कई उद्योगों की नियंत्रण अडानी समूह के हाथों में है। प्रदेश की निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी बिजली कंपनी महानदी केएसके को भी अडानी समूह खरीदने जा रही है।
बस्तर में नई रेल लाईन बिछाने से अडानी समूह को फायदा होगा। ये अलग बात हैं कि अडानी को लेकर कोरबा इलाके में आम लोगों में नाराजगी देखी जा रही है। अडानी की कोयला खदानों के लिए कट रहे हसदेव के जंगलों को लेकर कई संगठन लड़ाई लड़ रहे हैं,लेकिन अब तक कोई ठोस सफलता नहीं मिली है।
अडानी ने यहां कारोबार को व्यवस्थित करने के लिए रायपुर के करेंसी टावर में एक बड़ा दफ्तर तैयार करवा रही है। वहां जल्द ही शिफ्टिंग की तैयारी भी है। मीडिया कर्मियों का एक दल को गुजरात भ्रमण पर भी गए थे, वहां क्या हुआ क्या नहीं इसकी तो कोई ठोस जानकारी नहीं है, लेकिन हल्ला इतना ज्यादा उड़ा कि बाद में जाने वाले कई मीडिया कर्मियों ने व्यस्तता बताकर कन्नी काट ली है।
छोटे तबादले के लिए बड़ी मशक्कत..
सरकार में काम कराने में कितनी मशक्कत करनी पड़ रही है इसका उदाहरण सरगुजा जिले के एक पंचायत सचिव के तबादले से समझा जा सकता है।
हुआ यूं कि जिले के एक पंचायत सचिव को लेकर ग्रामीणों में काफी गुस्सा था। ग्रामीण आंदोलित थे। इसके बाद विधायक ने पंचायत सचिव का तबादला करा दिया, लेकिन कुछ दिन बाद पंचायत सचिव ने अपना तबादला निरस्त भी करवा लिया।
ग्रामीणों ने फिर विरोध करना शुरू किया। विधायक ने हाथ खड़े कर दिए,इसके बाद सांसद तक बात पहुंची। सांसद ने जिला पंचायत सीईओ को फोन लगाया तो उन्होंने बता दिया कि सीएम हाऊस के हस्तक्षेप के बाद तबादला निरस्त हुआ है। इसके बाद सांसद ने सीधे सीएम हाऊस फोन लगाया, और पंचायत सचिव के तबादला निरस्त किए जाने पर आपत्ति की। सांसद की साख अच्छी है इसलिए तुरंत सीईओ को फोन गया कि पंचायत सचिव को हटा दिया जाए, तब कहीं जाकर पंचायत सचिव वहां से हटाया जा सका।
नेता प्रतिपक्ष 12वां मंत्री..
विडंबना है कि छत्तीसगढ़ में नेता प्रतिपक्ष पर हमेशा 12वां मंत्री होने का आरोप लगता है। चाहे वो भाजपा के हों या कांग्रेस का। इस बार अनुभवी कांग्रेस नेता डॉ चरण दास महंत नेता प्रतिपक्ष है। शांत व सरल माने जाने वाले चरणदास महंत का विधानसभा अध्यक्ष डॉ.रमन सिंह से 5 दशक पुराना पारिवारिक संबंध है। इसके अलावा कई भाजपा नेताओं से अच्छा संबंध है। महंत आक्रामक राजनीति को पसंद नहीं करते। रणनीति बनाने में माहिर है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज व पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के खिलाफ अधिक आक्रामक है। लगातार बयान और दौरों से अपनी सक्रियता बनाए हुए है। वहीं चरण दास महंत बहुत जरूरी होने पर मुद्दों को बोलते हैं। कांग्रेस का एक गुट ही महंत की इस राजनीति से सहमत नहीं है। हरियाणा की तर्ज पर भाजपा छत्तीसगढ़ में 12वां मंत्री बनाने विधि विशेषज्ञों से चर्चा कर रही है। लेकिन आपसी बोलचाल में छत्तीसगढ़ में पहले से ही नेता प्रतिपक्ष को मंत्री का दर्जा मिला हुआ है।
निष्क्रिय सासंदों की सक्रियता..
संसद का शीतकालिन सत्र प्रारंभ हो गया है। इस बार छत्तीसगढ़ के भाजपा सांसदों में सक्रियता को लेकर प्रतिस्पर्धाएं चल रही है। केन्द्रीय मंत्री तोखन साहू छत्तीसगढ़ की समस्याओं को लेकर दिल्ली में सक्रिय हैं। कई बड़ी योजनाओं को स्वीकृत कराने दिग्गज नेताओं से मिल रहे हैं। भूपेश बघेल को पराजित करने वाले संतोष पांडेय को संसद के कुछ समितियों में जगह मिलने की उम्मीद है इसलिए सक्रिय हैं। दुर्ग सासंद विजय बघेल जातिय समीकरण और सक्रियता का गठजोड़ तैयार करने की कोशिश में लगे हैं। निष्क्रियता का आरोप से बचने सासंदों में होड़ लगी है। अपने क्षेत्र की समस्याओं की लंबी चौड़ी सूची लेकर दिल्ली दौड़ में जुटे हैं। देखते हैं किसको कितनी सफलता मिलती है।