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KHABAR CHALISA SPECIAL तिरछी नजर : कुछ तो मजबूरियां रही होंगी….

KHABAR CHALISA SPECIAL Skew glance: There must have been some compulsions….


दवा
घोटाला प्रकरण में ईओडब्ल्यू की कार्रवाई से स्वास्थ्य महकमे में हलचल मची है। जांच एजेंसी ने सप्लायर को गिरफ्तार किया है।घोटाले में कथित तौर पर संलिप्त अफसरों से पूछताछ होने वाली है। पहले तो सबकुछ ठीक चल रहा था,फिर अचानक क्या हो गया किजांच एजेंसी सक्रिय हो गयी।

बताते हैं कि विभाग के मुखिया और सप्लायर के रिश्ते अच्छे थे।बकाया भुगतान भी होना शुरू हो गया था। सप्लायर रसूखदार रहा है।किसी बात को लेकर मुखिया से ठन गई। दोनों के बीच  विवाद की जानकारी सीएम तक पहुंची। सप्लायर को पार्टी के बड़े लोगों सेसंबंधों का भरोसा था। मगर किसी ने मदद नहीं की, और फिर जांच तेजी से शुरू हो गयी। गड़बड़ी तो थी ही,गिरफ्तारी भी हो गयी।

महिला अफसर बनेंगी सरकारी गवाह ?

पीएससी घोटाले की जांच तेजी से चल रही है। पीएससी के तत्कालीन चेयरमेन टामन सिंह सोनवानी समेत आधा दर्जन लोग हिरासत मेंहै। घोटाले के कई पुख्ता सबूत मिले हैं। इसी बीच चर्चा है कि सीबीआई परीक्षा नियंत्रक आरती वासनिक को सरकारी गवाह बनासकती है।

आरती वासनिक बुरी तरह घेरे में गयी है। उसके पास विकल्प सीमित हैै और सरकारी गवाह बन जाती हैं तो घोटाले का केस औरपुख्ता हो जायेगा। इसी बीच कई और लोग घोटाले की चपेट में सकते हैं।

सोनवानी का मैनपाट में फार्म हाऊस है। वहां कई डील हुई थी। इन सबको सीबीआई खंगाल रही है। कुछ लोगों का दावा है किपीएससी घोटाले में आने वाले दिनों में कई चौकाने वाले तथ्य सामने सकते हैं जिससे प्रदेश की राजनीति गर्मा सकती है।

मायूसी हाथ लगी पुरंदर के….

रायपुर उत्तर के विधायक पुरंदर मिश्रा इस बार अपनों से ही घिरे रहे। टिकट वितरण में उन्हें मायूसी हाथ लगी। रायपुर उत्तर के दावेदाररहे संजय श्रीवास्तव से लेकर आधे दर्जन नेताओं ने अपनेअपने इलाकों से कुछ लोगों को टिकट दिलाने में कामयाब रहे।

पुरंदर मिश्रा की सूची को संभागीय चयन समिति में काफी हद तक  सहमति मिली थी लेकिन बाद में कई नाम कट गये। उनके सारेविरोधी एक हो गये। इन सबके बीच दो टिकट ऐसे लोगों को मिल गयी जिसकी उम्मीद नहीं थी। एक तो 15 दिन पहले ही भाजपा मेंआई थी,और उन्हें टिकट मिल गयी। चर्चा है कि महिला नेत्री के लिए यू.पी. से सिफारिश आई थी। अब टिकट के दावेदार थे उन्हेंसंचालक बनाकर चुनाव जिताने की जिम्मेदारी दी गयी है।

राजपथ अवार्ड का चक्कर

प्रदेश की एक महिला आईएएस अफसर को अवार्ड मिला, तो बधाईयों का तांता लग गया। सीनियर आईएएस अफसरों ने वाट्सएप ग्रुपमें महिला अफसर की तारीफों के पुल बांध दिए।

बताते हैं कि जिस काम के लिए महिला अफसर को अवार्ड मिला है, उसमें हर स्तर पर गड़बड़ियां हुई है। चर्चा है कि इस महिला अफसरने अवार्ड टीम की खूब खातिरदारी भी की थी।

महिला अफसर के जाने के बाद योजना गड़बड़ियां उजागर हो सकती है।  इसको लेकर विधानसभा में सवाल भी लगे रहे हैं। वैसे भी इसमहिला अफसर के खिलाफ व्यापारियों ने सीएम से शिकायत भी की थीं। देर सबेर अवार्ड की वास्तविकता सामने सकती है।

बागी की नाम वापसी

भाजपा ने अपने बागियों की नाम वापसी के हर तरह के हथकंडे अपनाए। और रायपुर नगर निगम में तकरीबन सभी वार्डों से बागी चुनावमैदान से हट गए।

एक वार्ड में बागी मैदान छोड़ने के तैयार नहीं था। तब भाजपा के रणनीतिकारों ने उंगली टेढ़ी की, और बागी के राशन दुकान में दो फूडइंस्पेक्टर जांच के लिए पहुंच गए। घबराए बागी ने भाजपा नेताओं को नाम वापस लेने की सूचना दी और जब विधिवत नाम वापसी होगई, तब कहीं जाकर फूड इंस्पेक्टर वहां से रवाना हुए।

आईएएस अवार्ड का नोटिफिकेशन अटकने से धुकधुकी

छत्तीसगढ़ के राज्य प्रशासनिक सेवा के 7 अफसरों की धुकधुकी बढ़ गई है। वजह है आईएएस अवार्ड की डीपीसी की बैठक के माहभरबाद भी नोटिफिकेशन जारी नहीं होना। छत्तीसगढ़ के अफसरों का आईएएस अवार्ड दो सालों से अटका हुआ है। पहले आईएएस अवार्डके लिए नाम भेजने में देर के कारण इसमें देर हो रही थी। भाजपा की नई सरकार बनी तो दो साल के आईएएस अवार्ड के लिए नाम भेजेगए। इसके बाद दिल्ली में बैठक भी हो गई। दिल्ली में बैठक होते ही यहां हल्ला हो गया कि घोटालों में फंसे दो अफसरों को छोड़ करसात अफसरों के नाम को कमेटी ने हरी झंडी दे दी है।

जल्द ही इसके लिए नोटिफिकेशन भी हो जाएगा। जिन अफसरों को आईएएस अवार्ड होना है उनको 15 जनवरी तक नोटिफिकेशन कीउम्मीद थी। लेकिन इस तारीख को निकले भी पखवाड़े भर से ज्यादा हो गया। इसमें लगातार होते देर से उनकी धुकधुकी बढ़ती ही जारही है।

टिकट वितरण में खुलकर नेपोटिज्म और पैसा

नगरीय निकाय व जिला पंचायत चुनाव के लिए भाजपा कांग्रेस में खुलकर नेपोटिज्म सामने आ गया है। स्थानीय निकाय चुनाव में जिस तरह से पार्षद टिकट का वितरण हुआ है उससे आम कार्यकर्ताओं में भारी रोष है। जो पांच साल तक नारे लगाने व झंडा उठाने का काम करते हैं वे चुनाव के ऐन वक्त पर हाशिए पर डाल दिए गए। आरक्षण के हिसाब से पात्रता नहीं होने के बाद पुराने नेताओं के बजाय जिन कार्यकर्ताओं को टिकट दिया जाना था उन्हें टिकट न देकर विधायक या पुराने पार्षद के रिश्तेदारों को टिकट दे दिया गया। कई जगहों में टिकट बेचा गया। खासकर नगर पालिका व नगर पंचायत अध्यक्ष के लिए टिकट की एक तरह से बोली लगी कहें तो गलत नहीं होगा। वार्ड में बाहरी लोगों को टिकट देना यह बताता है कि टिकट का वितरण का पैमाना क्या है। दूसरी तरफ भाजपा को कैडर बेस्ड पार्टी कही जाती है लेकिन हाल में दूसरी पार्टी से आए धनाढ्य लोगों को छोटे शहरों में टिकट दिए गए।

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