CG TEACHER SUSPENDED : WhatsApp status becomes a ‘crime’! Assistant teacher suspended over complaint of children not receiving books.
धमतरी, 6 नवंबर 2025। छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में एक शिक्षक को शिक्षा व्यवस्था की खामियों पर आवाज उठाना भारी पड़ गया। शासकीय नवीन प्राथमिक शाला नारी (विकासखंड कुरूद) के सहायक शिक्षक ढालूराम साहू को बच्चों को किताबें समय पर न मिलने की शिकायत व्हाट्सऐप स्टेटस पर डालने के कारण जिला शिक्षा अधिकारी ने निलंबित कर दिया है। यह मामला अब पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बना हुआ है। सवाल उठ रहा है कि क्या अब छात्रहित में बोलना शिक्षकों के लिए अपराध बन गया है?
क्या लिखा था शिक्षक ने, जो बन गया ‘अपराध’?
ढालूराम साहू ने अपने निजी मोबाइल से एक स्टेटस डाला था, जिसमें लिखा था –
“बच्चों की शिक्षा व्यवस्था ठप्प और हम चले राज्य स्थापना दिवस मनाने, क्या हम राज्योत्सव मनाने लायक हैं?”
“जब तक बच्चों को पूरा पुस्तक नहीं मिल जाता, तब तक सहायक शिक्षक से लेकर बीईओ, डीईओ, कलेक्टर एवं माननीय शिक्षा मंत्री का वेतन रोक देना चाहिए।”
“गांव के नेता गांव का नहीं, सिर्फ पार्टी का विकास चाहते हैं।”
यह पोस्ट शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर सीधी टिप्पणी थी, जिसे अधिकारियों ने शासकीय आचरण नियमों का उल्लंघन माना।
डीईओ ने क्या कहा आदेश में?
जिला शिक्षा अधिकारी अभय कुमार जायसवाल ने आदेश में उल्लेख किया कि साहू की टिप्पणी छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (आचरण) नियम 1965 के नियम 3 (i)(ii)(iii) का उल्लंघन है।
इसके तहत उन्हें छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम 1966 के नियम 9(1)(2) के तहत तत्काल प्रभाव से निलंबित किया गया।
निलंबन अवधि में उनका मुख्यालय विकासखंड शिक्षा अधिकारी कार्यालय, नगरी निर्धारित किया गया है और उन्हें जीवन निर्वाह भत्ता मिलेगा।
शिक्षक ने कहा – “भावनाओं में बहकर लिखा, पर सच्चाई कौन माने?”
ढालूराम साहू ने जवाब में कहा – “मेरी किसी जनप्रतिनिधि या अधिकारी से निजी दुश्मनी नहीं है। कक्षा चौथी के 22 बच्चों को अब तक हिंदी की पुस्तक नहीं मिली, यह देखकर दुख हुआ और मैंने भावनाओं में बहकर स्टेटस डाला।” “मेरा निलंबन हो गया, लेकिन बच्चों को किताबें अब भी नहीं मिलीं – इसका जिम्मेदार कौन?”
बड़ा सवाल – सच बोलना गलती है या व्यवस्था की कमजोरी?
इस घटना ने शिक्षा विभाग की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं –
क्या सरकारी कर्मचारियों को अब सच बोलने की अनुमति नहीं?
क्या विभाग ने शिक्षक की बातों में छिपी सच्चाई देखने की कोशिश की?
बच्चों को किताबें न मिलने की जिम्मेदारी शिक्षक की है या प्रशासन की?
क्या निलंबन “डराने” का तरीका बन चुका है ताकि कोई आवाज न उठाए?
शिक्षा विभाग की प्राथमिकता – छवि या बच्चों की शिक्षा?
राज्य के कई स्कूलों में अब भी किताबें समय पर नहीं पहुँच पातीं। ऐसे में शिक्षक यदि बच्चों के हित की बात उठाता है, तो उसे सजा देना यह दर्शाता है कि विभाग समस्या सुलझाने के बजाय आवाज उठाने वालों को चुप कराने में व्यस्त है। ढालूराम साहू का निलंबन सिर्फ एक व्यक्ति की कार्रवाई नहीं, बल्कि पूरे शिक्षा तंत्र की सोच का आईना है, जहां “सिस्टम का सच बोलना” सबसे बड़ा अपराध बन गया है।
