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BILASPUR HIGH COURT : पति-पत्नी के रिश्ते पर हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, अननेचुरल सेक्स अपराध नहीं

BILASPUR HIGH COURT: High Court’s big decision on husband-wife relationship, unnatural sex is not a crime

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने पति-पत्नी के रिश्ते को लेकर अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि यदि पत्नी बालिग है, तो पति के साथ अप्राकृतिक संबंध (अननेचुरल सेक्स) को अपराध नहीं माना जा सकता। जस्टिस एनके व्यास की सिंगल बेंच ने निचली अदालत के फैसले को रद्द करते हुए याचिकाकर्ता पति को राहत दी और उसे जेल से रिहा करने का आदेश दिया।

क्या है मामला?

याचिकाकर्ता पति पेशे से ड्राइवर है। घटना 11 दिसंबर 2017 की है, जब उसने अपनी पत्नी के साथ अप्राकृतिक संबंध बनाए, जिसके बाद उसकी तबीयत बिगड़ गई। गंभीर हालत में पत्नी को अस्पताल में भर्ती कराया गया। अस्पताल प्रशासन ने पुलिस को सूचना दी और कार्यपालिक दंडाधिकारी ने पत्नी का मृत्युपूर्व बयान (Dying Declaration) दर्ज किया, जिसमें पत्नी ने पति पर मर्जी के खिलाफ अप्राकृतिक संबंध बनाने का आरोप लगाया।

इसके कुछ घंटे बाद पत्नी की मौत हो गई। मृत्युपूर्व बयान के आधार पर पुलिस ने आईपीसी की धारा 376 और 377 के तहत पति को गिरफ्तार कर लिया। निचली अदालत ने सुनवाई के बाद 10 साल की सजा और 1000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी।

हाई कोर्ट ने क्या कहा?

पति की अपील पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने साफ किया कि :

यदि पत्नी 15 वर्ष से अधिक उम्र की है, तो पति-पत्नी के बीच संबंध दुष्कर्म नहीं माना जा सकता।

अप्राकृतिक संबंध के लिए पत्नी की सहमति जरूरी नहीं है, क्योंकि विवाह के बाद पति-पत्नी के संबंध कानूनी रूप से वैध होते हैं।

आईपीसी की धारा 375 के तहत पति को अपराधी नहीं माना जा सकता, क्योंकि पति-पत्नी के संबंधों में शरीर के उन्हीं हिस्सों का उपयोग किया गया, जिन्हें कानूनन वैध माना जाता है।

तीन महीने बाद आया फैसला

हाई कोर्ट ने 19 नवंबर 2024 को इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था और 10 फरवरी 2025 को अंतिम निर्णय सुनाया। कोर्ट के इस फैसले के बाद कानूनी और सामाजिक स्तर पर नई बहस शुरू हो गई है।

क्या कहती है कानून व्यवस्था?

यह फैसला वैवाहिक संबंधों और दांपत्य अधिकारों से जुड़ी कानूनी बहस को नया मोड़ दे सकता है। हालांकि, महिला अधिकार संगठनों और कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि पति-पत्नी के रिश्ते में जबरदस्ती को अपराध के दायरे में लाना चाहिए। वहीं, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला वैवाहिक जीवन की स्वायत्तता को सुरक्षित रखता है।

 

 

 

 

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