चांद से टकराएगा यहां 7 साल पुराना रॉकेट, जानिए क्या है इसकी पीछे की वजह…

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एलन मस्क की कंपनी स्पेस एक्स साल 2015 में एक फॉल्कन-9 रॉकेट का प्रक्षेपण किया था. पता चला हैकि यह इस साल मार्च में चंद्रमा से टकराने वाला है. इस रॉकेट का जो हिस्सा चंद्रमा से टकराने वाला है वह फॉल्कन -9 का दूसरे चरण का हिस्सा है. ऐसा नहीं है कि इस रॉकेट को चलाने का उद्देश्य चंद्रमा तक पहुंचाने या उससे टकाराव करवाने का था. लेकिन संयोग से यह चंद्रमा की ओर चला गया है और इससे टकराने वाला है. विशेषज्ञों का कहना है कि यह टकारव भारत के इसरो के चंद्रयान 2 अभियान या नासा के एलआरओ के लिए उपयोगी हो सकता है.

क्या इसके प्रक्षेपण का उद्देश्य
इस रॉकेट का प्रक्षेपण अमेरिका की डीप स्पेस क्लाइमेटऑबजर्वेटरी की अंतरिक्ष में स्थापित करने के लिए किया गया था. इसके पहुंचाने के बाद दो चरणों वाले इस राकेट को अंतरिक्ष में ही छोड़ दिया गया था.लेकन इसमें इतना ईंधन नहीं थाकि यह पृथ्वी के वायुमंडल में वापस आकर जल सकें. यह पृथ्वी से इतनी दूर था कि इसमें इतनी ऊर्जा नहीं थी जिससे वह पृथ्वी या चंद्रमा के गुरुत्व प्रभाव से मुक्त होता है.

कब होगा यह टकराव
सेंटर ऑफ ऐस्ट्रोफिजिक्स के खगोलविदों ने कि स्पेसएक्स के इस दो चरण वाले रॉकेट के चंद्रमा से टकराव की पुष्टि की. उनके मुताबकि यह टकारव आगामी चार मार्च को होगा. यह रोचक होसकता है लेकिन यह हैरान करने वाली घटना बिलकुल नहीं हैं. बताया जा रहा है कि इस टकराव की पूर्व योजना नहीं थी. इसके केवल अंतरिक्ष में खुला छोड़ दिया गया था.

कैसे पता चला इसके बारे में
खगोलवदों का कहना है कि यह रॉकेट या तो चंद्रमा से टकराने वाला था या फिर यह कभी ना कभी पृथ्वी के वायुमंडल में ही वापस आ सकता था. इसके अलावा इसके सौर कक्षा में पड़े रहने की भी संभावना थी. इसकी स्थिति का पता नियर अर्थ ऑबजेक्ट की निगरानी के लिए प्रयुक्त प्रोजेक्ट प्लूटो के सॉफ्टवेयर का उपयोग करने वाले बिल गैरी ने लगाया था.

गुरुत्वों के असर की गणना
गैरी ने इसे डगमाते हुए देखा और खगोलविदों को इसके अवलोकन करने के लिए चेताया. आंकड़ों के आधार पर वैज्ञानिकों का मानना है कि फाल्कन 9 का ऊपरी चरण चंद्रमा पर उसकी भूमध्य रेखा के पास टकराने वाला है. गैरी ने यह गणना कर ली है कि पृथ्वी, चंद्रमा सूर्य और अन्य ग्रहों के गुरुत्व का इस पिंड पर क्या प्रभाव डाल रहा है. इसरो के चंद्रयान के लिए क्रेटर
गैरी का कहना है कि उनके पास इसका भी अंदाजा है कि कितनी सूर्यकीरोशनी इसे बाहर की ओर यानि सूर्य से दूर की ओर धकेल रही है. उन्होंने यह भी कहा कि एक बार यह चंद्रमा की सतह से टकरा गया, तो इससे बने क्रेटर का उपयोग नासा का लूनार रेकोनायसेंस ऑर्बिटर या फिर भारत के इसरो के चंद्रयान अपने अध्ययन के लिए कर सकते हैं.

नई जानकारियों की संभावना
गैरी ने अपने ब्लॉग में लिखा है कि यदि हम एलआरओ या चंद्रयान के लोगों को बता दें कि क्रेटर कहां है तो वे उसका अवलोकन कर पाएंगे कि वे एक ताजे इम्पैक्ट क्रेटर को देख रहे हैं. इससे वे चंद्रमा के बारे में वे भूगर्भीय जानकारियां हासिल कर सकते हैं. इसे भविष्य में रोवर उतराने के लिए एक आदर्श साइट के रूप में भी उपयोग में लाया जा सकता है

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