Pushpa 2 Review: सच में वाइल्ड फायर निकला ‘पुष्पाराज’, जानिए कैसा है Allu Arjun की फिल्म पुष्पा 2 का सीक्वल
Pushpa 2 Review: पहली एंट्री पर इतना बवाल नहीं करता जितना दूसरी एंट्री पर करता है, यह पुष्पा 2 का ही डायलॉग है और ऐसी ही ये फिल्म भी है, पुष्पा फ्लावर नहीं फायर था. इस बार वो बोला मैं वाइल्ड फायर हूं, और वो वाकई वाइल्ड फायर निकला. पुष्पा 2 में एक चीज कूट कूट कर भरी हुई है और वो है एंटरटेनमेंट,एंटरटेनमेंट और एंटरटेनमेंट. इस फिल्म को देखते हुए दिमाग को पुष्पा की वाइल्ड फायर में डाल दीजिए और घबराइए मत, पुष्पा भाऊ आपके दिमाग को कुछ नहीं होने देंगे. 3 घंटे 20 मिनट बाद दिमाग एक दम कड़क होके निकलेगा, आपको लॉजिक नहीं लगाना है, बस एंटरटेन होना है और सिनेमा अगर लॉजिक लगाने का मौका दिए बिना आपको लगभग साढ़े 3 घंटे एंटरटेन करे तो वो कमाल का सिनेमा होता है और ऐसा सिनेमा इसलिए भी जरूरी है को सिनेमा जिंदा रहे, चलता रहे, फलता फूलता रहे.
कहानी
अब पुष्पा लाल चंदन का बड़ा स्मगलर बन चुका है और इस पूरे सिंडिकेट का मुखिया है, लेकिन आदमी आगे बढ़ता है तो दुश्मन बढ़ते हैं, यही जिंदगी में होता है और यहीं फिल्म में, पुष्पा अपनी बीवी की हर बात मानता है. जब बीवी कहती है CM से मिलने जा रहे हो तो फोटो क्लिक करा लेना और जब सीएम एक स्मगलर के साथ फोटो नहीं खिंचवाता तो पुष्पा CM ही बदलने की प्लानिंग कर देता है. पुष्पा को इसके लिए 5000 करोड़ का लाल चंदन विदेश स्मगल करना है, क्या होगा, और पुष्पा का दुश्मन पुलिसवाला भंवर सिंह शेखावत क्या करेगा. थिएटर में जाकर देखिए, मजा आएगा.
कैसी है फिल्म
ये पूरी तरह से mass एंटरटेनर है , हर एक फ्रेम एंटरटेनिंग है, लॉजिक के बारे में आप सोचते नहीं, जो पुष्पा करता है उसपर यकीन हो जाता है, एक के बाद एक कमाल के सीन आते हैं, बहुत बार सीटी ताली वाले सीन आते हैं. पुष्पा का स्वैग गजब का है, पुष्पा sorry बोल देता है लेकिन पुष्पा तो झुकता नहीं, और फिर जो होता है, उसको बवाल कहते हैं. ये फिल्म ऐसा सिनेमा है कि लोग थिएटर जाने को मजबूर हो जाएंगे. फिल्म की लंबाई अखरती नहीं बल्कि लगता है और कुछ भी होता तो मजा आता, ये सिनेमा हॉल में देखने वाला एक्सपीरियंस है, जाकर लीजिए क्योंकि ऐसे सिनेमा से ही सिनेमा जिंदा है. सिनेमा में mass और class दोनों होंगे तो सिनेमा चलेगा और ये mass है.
एक्टिंग
अल्लू अर्जुन का काम बवाल है, वो आपको यकीन दिला देते हैं कि जो कर रहे हैं वो हो सकता है और पुष्पा कर सकता है, उनका स्वैग कमाल का है, वह हर फ्रेम में छाए हुए हैं. 5 साल की उनकी मेहनत साफ दिखती है. अल्लू अर्जुन ने हीरोगीरी और हीरोपंती के मायने बदल दिए हैं. उन्होंने अब लकीर बड़ी कर दी है, उनका काम बहुत जबरदस्त है और अब किसी हीरो को उनका स्वैग मैच करने के लिए कुछ बहुत बड़ा ही करना होगा. रश्मिका मंदाना का काम भी कमाल का है. अल्लू अर्जुन जैसे हीरो के सामने हीरोइन के करने को शायद कुछ नहीं होता लेकिन रश्मिका अपनी छाप छोड़ जाती हैं. फहाद फासिल ने भी जबरदस्त काम किया है, हीरो की हीरोगीरी तभी निकलकर आती है जब विलेन जानदार हो और यहां पुलिसवाले के किरदार में फहाद ने जान डाल दी है. जगदीश प्रताप भंडारी का काम अच्छा है,जगपत बाबू ने भी अच्छा काम किया है. सौरभ सचदेवा ने भी कमाल का काम किया है.
डायरेक्शन और राइटिंग
सुकुमार की राइटिंग और डायरेक्शन दोनों शानदार हैं, उन्होंने एक ही चेज पर फोकस किया, स्वैग और एंटरटेनमेंट और वो कामयाब रहे. वो जो बनाना चाहते थे उससे भटके नहीं, यही उनकी कामयाबी है. एक के बाद एक कमाल के सीन डाले ताकि एक सीन देख दर्शक हैरान हो और सांस ले उससे पहले दूसरा कमाल का सीन आ जाए.
म्यूजिक
बस यही इस फिल्म की कमजोर कड़ी है, गाने काफी बकवास हैं, सामी को छोड़कर कोई गाना झेला नहीं जाता, बैकग्राउंड स्कोर अच्छा है
कुल मिलकर ये फिल्म देखिए और साल को धमाकेदार तरीके से अलविदा कहिए, मजा आएगा.
रेटिंग – 4 स्टार्स