सुप्रीम कोर्ट ने डिप्टी स्पीकर समेत सभी पक्षों को नोटिस जारी किया… 11 जुलाई को अगली सुनवाई
नई दिल्ली। महाराष्ट्र की सियासी जंग सुप्रीम कोर्ट (SC) पहुंच गई है। एकनाथ शिंदे गुट की 2 याचिकाओं पर सर्वोच्च अदालत में सुनवाई जारी है। शिंदे गुट ने 2 याचिकाएं लगाई हैं। पहली याचिका में 16 बागी विधायकों को अयोग्य ढहराए जाने वाले नोटिस को चुनौती दी गई है। वहीं दूसरी याचिका में उद्धव ठाकरे गुट द्वारा अजय चौधरी को विधायक दल का नेता बनाए जाने की चुनौती दी गई है। शिवसेना की ओर से कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी और कपिल सिब्बल पेश हुए हैं।
सुनवाई की शुरू में शिंदे गुट के वकील नीरज किशन कौल ने कहा कि डिप्टी स्पीकर की कार्रवाई भेदभाव पूर्ण है। बागी विधायकों की जान को खतरा है। जो सत्ता में है, वो डरा-धमका रहे हैं। अदालत को बताया गया कि 25 जून को नोटिस जारी हुआ था और आज शाम को 5.30 बजे उसकी सीमा पूरी हो रही है, जबकि आमतौर पर ऐसा मामले में 7 से 14 दिन का समय दिया जाता है। कोर्ट को यह भी बताया गया कि डिप्टी सीएम के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है। ऐसे में डिप्टी स्पीकर बागी विधायकों को नोटिस जारी नहीं कर सकते हैं।
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जस्टिस सूर्य कांत: शिंदे गुट के लोग पार्टी की बैठक में नहीं गए। कहा जा रहा है कि आपने पार्टी छोड़ दी है। क्या आपने यह बात डिप्टी स्पीकर से नहीं कही कि आप योग्य नहीं है नोटिस जारी करने के लिए।
शिंदे के वकील: सुप्रीम कोर्ट पहले भी कह चुका है कि अविश्वास प्रस्ताव लंबित है तो डिप्टी स्पीकर कार्रवाई नहीं कर सकते हैं। यह बात डिप्टी स्पीकर को बताई जा चुकी है। इसके बावजूद उन्होंने नोटिस जारी कर दिया है।
शिंदे के वकील: डिप्टी स्पीकर क्यों डर रहे हैं। वो पहले अपना बहुमत साबित करें और फिर कार्रवाई करे। इन विधायकों को धमकी दी गई है और कहा गया था कि 40 विधायकों के शव वापस आएंगे।
अभिषेक मनु सिंंघवी (शिवसेना के वकील): डिप्टी स्पीकर को लेकर पुराने केस की जो दलील दी जा रही है, वो गलत है।
सिंंघवी: शिंदे गुट ने हाई कोर्ट का दरवाजा क्यों नहीं खटखटाया। राजस्थान का मामला छोड़ दिया जाए तो सुप्रीम कोर्ट ने कभी डिप्टी स्पीकर के अधिकारों में हस्तक्षेप नहीं किया है। डिप्टी स्पीकर को अपना काम करने दिया जाए। फैसले को बाद में चुनौती दी जाए। स्पीकर के फैसले से पहले सुनवाई ठीक नहीं है।
जज: डिप्टी स्पीकर ने एक याचिका दायर कर रखी है कि उनका पक्ष सुने बगैर कोर्ट कोई फैसला न दे। क्या आप (सिंघवी) यह कह रहे हैं कि हम विधानसभा की कार्रवाई में दखल दे रहे हैं?
सिंघवी: हां, मैं यही कह रहा हूं। पहले डिप्टी स्पीकर को उनका काम करने दिया जाए। बाद में सुनवाई हो।
जज: पहले के केस देखते हुए कोर्ट दखल दे सकता है। सुप्रीम कोर्ट का यह अधिक है। स्पीकर या डिप्टी स्पीकर अपने ही केस में जज नहीं हो सकता है। यानी यदि अविश्वास प्रस्ताव है तो वो खुद फैसला नहीं कर सकते हैं।
जज: क्या डिप्टी स्पीकर को बागी विधायकों की ओर से नोटिस मिला था?
राजीव धवन (डिप्टी स्पीकर के वकील): हां हमें नोटिस मिला था, लेकिन इसे तत्काल खारिज कर दिया गया।
जज: तो हमें डिप्टी स्पीकर को नोटिज जारी करने पड़ेगा कि उन्होंने किस आधार पर नोटिस खारिज किया।
देवदत्त कामत (महाराष्ट्र सरकार के वकील): मुख्यमंत्री के खिलाफ कोई अविश्वास प्रस्ताव नहीं आया। आता तो विधानसभा का सत्र भी बुलाते। विधायकों का अपने मुख्यमंत्री के खिलाफ विश्वास नहीं है तो इसका मतलब यह नहीं है कि डिप्टी स्पीकर पर सवाल उठाया जाए और सत्र बुलाया जाए। एकनाथ शिं