सात साल की मासूम के साथ बलात्कार के बाद हत्या, HC ने जघन्य अपराध के लिए आरोपी के मृत्युदंड की सजा रखी बरकरार
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाइकोर्ट ने 7 साल की मासूम बच्ची के अपहरण, बलात्कार, और नृशंस हत्या के दोषी दीपक बघेल की मृत्यु की सजा को बरकरार रखा है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति अमितेंद्र किशोर प्रसाद की खंडपीठ द्वारा सुनाए गए फैसले में, इस अपराध को “दुर्लभतम” (Rarest Of Rare) करार दिया गया। अदालत ने कहा कि, ऐसे जघन्य अपराध के लिए मृत्युदंड की सजा मिलनी चाहिए।
क्या है पूरा मामला ?
दरअसल, यह पूरा मामला 28 फरवरी 2021 का है। जब बेमेतरा जिले के 29 वर्षीय दीपक बघेल ने एक कार्यक्रम में शामिल होने के बहाने पीड़िता और उसके छोटे भाई को बहला फुसला कर अपने साथ ले गया। कार्यक्रम में भाई को छोड़ने के बाद दीपक पीड़िता को सोमानी रेलवे ट्रैक के पास लेजाने के बाद उसके साथ दुष्कर्म किया और फिर पत्थर से सर कुचलकर निर्मम तरीके से पीड़िता की हत्या कर दी। सबूत न मिले इसके लिए उसने बच्ची के शव को क्षत-विक्षत कर दिया, जिसे अगली सुबह देखने के बाद इलाके में आक्रोश फैल गया।
मामले की जांच करने के बाद पुलिस ने बघेल को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 (हत्या), 363 (अपहरण), 366 (विवाह या अवैध संभोग के लिए मजबूर करने के लिए अपहरण) और 201 (साक्ष्यों को गायब करना) के साथ-साथ यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम की धारा 6 के तहत दोषी ठहराया गया था। ट्रायल कोर्ट ने अक्टूबर 2021 में बघेल को मौत की सजा सुनाई, जिसके बाद मामले को पुष्टि के लिए अनिवार्य रूप से हाईकोर्ट को भेजा गया।
आरोपी के वकील ने की थी आजीवन कारावास की मांग
कार्यवाही के दौरान, अधिवक्ता पलाश तिवारी द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए बघेल के बचाव पक्ष ने कई आधारों पर दोषसिद्धि और मृत्युदंड को चुनौती दी। बचाव पक्ष ने आईपीसी की धारा 363 और 366 के तहत आरोपों को साबित करने में प्रत्यक्ष साक्ष्य की कमी और अपर्याप्तता का तर्क दिया। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि बघेल की कम उम्र और कोई पिछला आपराधिक रिकॉर्ड नहीं होने के कारण आजीवन कारावास पर्याप्त होगा।
वहीं राज्य का प्रतिनिधित्व करते हुए, उप महाधिवक्ता शशांक ठाकुर ने इन तर्कों का खंडन किया, अपराध की जघन्य प्रकृति, भारी परिस्थितिजन्य साक्ष्य और डीएनए परिणामों पर जोर देते हुए, जो बघेल को अपराध से निर्णायक रूप से जोड़ते हैं।
हाईकोर्ट ने निम्नलिखित कानूनी मुद्दों पर सावधानीपूर्वक विश्लेषण कियाः
1. अंतिम बार देखे जाने के सिद्धांत की प्रयोज्यताः अदालत ने माना कि गवाहों की गवाही से पुष्ट “अंतिम बार साथ देखे जाने के साक्ष्य ने बघेल के अपराध को स्थापित किया।”
2. डीएनए साक्ष्य : अदालत ने डीएनए रिपोर्ट पर भी गौर किया, जो पीड़ित पर पाए गए जैविक नमूनों के साथ बघेल की प्रोफ़ाइल से मेल खाती थी, जिससे उसकी संलिप्तता के बारे में कोई संदेह नहीं रह गया।
3. मौत की हत्या की प्रकृतिः मेडिकल परीक्षक, डॉ. नितिन बारमाटे की गवाही ने पुष्टि की कि पीड़ित की मौत खून से सने पत्थर से सिर पर लगी गंभीर चोटों से हुई, जिससे अपराध की हत्या की प्रकृति की पुष्टि हुई।
4. मृत्युदंड की उपयुक्तताः पीठ ने कहा दुर्लभतम में से दुर्लभतम सिद्धांत लागू करते हुए कहा कि,
“इस अपराध ने न केवल एक निर्दोष व्यक्ति की जान ले ली, बल्कि समाज की सामूहिक अंतरात्मा को भी झकझोर दिया।”
निर्णय का हवाला देते हुए, न्यायालय ने कहा,
*जिस बर्बरता के साथ सात साल की उम्र के बच्चे के साथ अपराध किया गया, वह पुनर्वास से परे की दुष्टता को दर्शाता है। दुर्लभतम में से दुर्लभतम मामलों का सिद्धांत ऐसी परिस्थितियों में मृत्युदंड को उचित ठहराता है।”