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Ruckus in politics from stale …
रायपुर। 1 मई मजदूर दिवस के दिन को बोरे बासी दिवस के रूप में मनाने के राज्य सरकार के फैसले से चिंतित एक संघर्षशील व सक्रिय पूर्व भाजपा विधायक की टिप्पणी भूपेश बघेल भी हमारे नेता नरेन्द्र मोदी जैसे राजनीतिक कदम उठाते है।
बोरे बासी दिवस में एक रुपए खर्चा भी नहीं हुआ व काम करोड़ों का हो गया, इसका विरोध भी कोई नहीं कर सकता। बोरे बासी दिवस को अब ग्रामीण परिवेश में रहने वाले छत्तीसगढिय़ा अपने स्वाभिमान से जोड़ते हुए 21 वर्ष में लिये गये एक बड़े फैसले की तरह देख रहे हैं।
मुख्यमंत्री पद सम्हालने के बाद भूपेश बघेल लगातार इसी तरह छत्तीसगढिय़ा संस्कृति, संस्कार व स्वाभिमान को जगाने अलग-अलग कार्यक्रम आयोजित कर पिछले 15 वर्षों में हुुए उपेक्षा के दंश को अपना राजनीतिक हथियार बनाकर भाजपा को चित्त करते जा रहे हैं। प्रदेशभर में अधोसंरचना तैयार करने का ढिंढोरा पीटने वाली रमन सरकार ने चमचमाती सड़कें और बड़ी-बड़ी अटकालिका बनाई थी पर यह लंबा गेफ रह गया था जिसे भूपेश बघेल अपने राजनीतिक चातुर्य से भरते जा रहे हैं और भाजपा मुकदर्शक की तरह देख रही है।
दरअसल, भाजपा इस तरह गतिविधियां चलाने में कभी रूचि ही नहीं दिखाई थी, जिन नेताओं ने आवाज उठाई उसे पार्टी से ही योजनाबद्ध तरीके से दरकिनार कर दिया गया। भाजपा के पूर्व विधायक व संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सम्हाल रहे इस नेता की आफ दी रिकार्ड की गई टिप्पणी के कई राजनीतिक मायने निकल रहे हैं, जिस तरह मोदी ने गुजरात में गुजराती अस्मिता से अपने आप को जोड़कर पार्टी को मजबूत रखा ठीक उसी तरह भूपेश बघेल भी कदम उठा रहे हैं?
संघ व भाजपा के ज्यादातर कार्यक्रम हिन्दुत्व, राष्ट्रवाद के इद्र-गिद्र रहते है, जिसमें भावनाओं व निष्ठा ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। ठीक उसी तरह की राजनीति भूपेश बघेल के कार्यक्रमों में भी चल रहे। गोबर और गौमूत्र बेचने के फैसले से पहले ही भाजपाई बैगफुट में है अब आईएएस, आईपीएस, आईएफएस अफसरों में बासी खाने की होड़ ने गरीब छत्तीसगढिय़ा मन में आत्म विश्वास जगा दिया। तेज तपीस के बीच बासी खाने की होड़ से बवाल अंदरखाने में ज्यादा मच गया है। हाथ और चम्मच से बासी खाने वाले चमचों की पहचान होने लगी है। फेसबुक, ट्विटर में ज्यादा सक्रिय भाजपा भी चम्मच से बासी खाने वाले को टोल कर राजनीतिक सक्रियता दिखाने में व्यस्त हैं।
वही अब अक्ति के दिन माटी पूजन दिवस पर ट्रेक्टर लेकर खेत जोतने निकले भूपेश बघेल अपनी खेती और जमीन को मजबूत करने जोरदार परिश्रम कर रहे हैं। इस मजबूत खेती से उगने वाले लहलहाते फसल का अनुमान राजनीतिक पंडितों को भी होने लगा है।