सीएम की पूर्व ओएसडी सौम्या चौरसिया की जमानत याचिका पर बिलासपुर हाईकोर्ट की जस्टिस पी सैम कोशी की एकल पीठ में सुनवाई चल रही है। मनी लॉन्ड्रिग केस में सौम्या पिछले 6 माह से जेल में है। उनकी पैरवी सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता कपिल सिब्बल और सिद्धार्थ अग्रवाल ने की है ।
शुक्रवार को सौम्या के वकीलों ने उन पर लगे आरोपों को सिरे से खारिज किया। उन्होंने ईडी की कार्रवाई को राजनीति से प्रेरित करार दिया। इससे परे ईडी की तरफ से पैरवी के लिए सुप्रीम कोर्ट से अधिवक्ता पी राजू आए थे। ईडी ने जमानत का विरोध किया, लेकिन सुनवाई अधूरी रही। 29 तारीख को प्रकरण पर फिर सुनवाई होगी। दूसरी तरफ, हाईकोर्ट कोयला कारोबारी सुनील अग्रवाल की जमानत खारिज कर चुकी है। चुनावी साल में ईडी की कार्रवाई पर अब सवाल उठ रहे हैं। कांग्रेस कार्यकर्ता ईडी दफ्तर के सामने कई बार धरना-प्रदर्शन कर चुके हैं। ईडी अफसरों के खिलाफ शिकायत भी हुई, लेकिन प्रभावित अफसर-कारोबारियों को कोई राहत नहीं मिल पाई है ।आगे क्या होता है, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
ईडी की एक और कार्रवाई?
ईडी की टीम एक बड़ी कार्रवाई के लिए तैयार है। कुछ अफसर यहां आए हुए हैं। चर्चा है कि ईडी ने सीआरपीएफ से फोर्स मांगी थी। लेकिन बस्तर में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के सीआरपीएफ के कार्यक्रम में आने के कारण फोर्स उपलब्ध कराने में असमर्थता जताई है। कहा जा रहा है कि अमित शाह के जाने के बाद सीआरपीएफ का अमला उपलब्ध होगा। तब ईडी कुछ राजनेता और अफसरों के घर धमक सकती है।
9 हजार उद्योगों की सूची ले गए.
ईडी के अधिकारी पर्यावरण विभाग में छापे के बाद करीब 9 हजार छोटे, मझोले उद्योगों व 8 सौ के करीब प्रदूषण फैलाने वाले बड़े उद्योगों की सूची लेकर दिल्ली उड़ गये हैं। कोल परिवहन की जांच में जूटे ईडी के अधिकारी छत्तीसगढ़ के बड़े उद्योगों की सूची लेकर जब से गये हैं तरह-तरह की चर्चा है। कितने उद्योगों के खिलाफ कब-कब कार्रवाई की गयी है जिला स्तर से प्रमाणित दस्तावेजों के साथ छानबीन की गयी है। अब उद्देश्य राजनीतिक है, अथवा प्रशासनिक है, यह तो आने वाले दिनों पता चलेगा।
टिकट को सब कुछ हवा में
टिकिट को लेकर सब हवा में है। छोटा राज्य है इसलिए एक-एक सीट यहां महत्वपूर्ण है इस पर जमीनी स्थिति क्या है ? इसका खुलासा करने से सभी परहेज कर रहे हैं। भाजपा में पुराने चेहरे को दरकिनार कर नये चेहरे बदलने की कोशिश फेल होती नजर आ रही है। पुरानी चर्चित चेहरे टिकिट लाने के समीकरण को जानते हैं और उसी दिशा में चल रहे हैं। उनके चेहरे में सिकन नहीं है । क्षेत्र में भारी गुटबाजी है, फिर भी सक्रिय हैं। भाजपा संगठन की रणनीति है कि 15 वर्षो में कमाए पैसे को खर्च करो।यही वजह है कि हारे हुए पुराने चेहरे महत्व पा जा रहे हैं ।कांग्रेस भी टिकिट को लेकर भ्रम की स्थिति मेंं है। कई विधायकों का जनता से संवाद नहीं है। लेकिन ढ़ाई-ढ़ाई साल के चक्कर में सीएम हाऊस में दखल बना लिये हैं ।उसी आधार पर टिकिट चाहते हैं। भूपेश बघेल भी हर बार सर्वे रिपोर्ट कमजोर विधायकों को दिखाकर दिशा निर्देश भी दे रहे हैं । कांग्रेस टिकट को चर्चित कहावत है कि कांग्रेस की टिकट और मौत का कोई भरोसा नहीं है। यानी विशेष कर नए विधायक बी फार्म मिलने तक निश्चिन्त नहीं हो सकते हैं।
संसदीय साख और संतुलन.
लोकसभा व विधानसभा में हंगामा और कम बहस संसदीय लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं माना जाता। लेकिन छत्तीसगढ़ विधानसभा में इस बार सत्ता पक्ष व विपक्ष ने बजट सत्र का सही उपयोग किया। सरकार ने विधि विधायी और वित्तीय मामले हल किये। सभी विभागों की बजट चर्चा कई तीखे सवालों के बीच निपट गया। इस सत्र में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह हमलावर मुद्रा में नजर आए। छत्तीसगढ़ के इतिहास में पहली बार दोनों पक्षों के महिला विधायकों को उत्कृष्ट विधायक का सम्मान मिला। शून्यकाल व स्थगन में विपक्ष ने सक्रियता दिखाते हुए अपना धर्म निभाया। दूसरी तरफ,कई कांग्रेस विधायकों ने अपने ही सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ा।
भूपेश की तुलना मोतीलाल से...
दुर्ग के विधायक अरुण वोरा ने विधानसभा में चर्चा के दौरान भूपेश बघेल की जमकर तारीफ की और यहां तक कह दिया कि मुख्यमंत्री स्व.मोती लाल वोरा के बराबर काम करने वाला कोई है तो वह भूपेश बघेल। अपने पिता स्व.मोतीलाल वोरा के बराबर राजनीतिक सोच व सक्रियता का तमगा भूपेश बघेल को देकर अरुण वोरा ने एक बड़ा राजनीतिक संदेश दुर्ग जिले के सिपहसलारों को दिया है। भाजपा विधायक शिवरतन शर्मा ने तंज कसते हुए कहा कि सामने मुख्यमंत्री बैठे हैं इसलिए बोल रहे हैं क्या? अरुण ने कहा कि जो बोलता हूं मन से बोलता हूं। भूपेश है तो भरोसा है।
एनआरडीए के चार अफसर लौटाए गए..
नया रायपुर विकास प्राधिकरण में 2010 से जमे छत्तीसगढ़ विद्युत मंडल के चार अधिकारियों को भारी उठा पटक के बाद रिलीव कर दिया गया है। निर्माण से जुड़े चारों बड़े अधिकारी राज्य सरकार से बिना अनुुमति लेकर प्रतिनियुक्ति में 13 वर्ष से जमे थे। इन अधिकारियों को हटाने के लिए सैकड़ों पत्र व्यवहार एक विपक्षी विधायक के करने के बाद मजबूरी में फैसला लिया गया। इसके पूर्व कुछ और अधिकारियों को वापस भेजा गया है।
ताम्रध्वज को तवज्जों
ताम्रध्वज साहू को सीधा व सरल मंत्री माना जाता है। बहु संख्यक साहू समाज के बीच पैठ होने के कारण प्रतिनिधित्व मिलती है, लेकिन प्रशासनिक तवज्जो नहीं मिलने के कारण आये दिन किरकिरी होती रहती है। हर बड़े फैसले की जानकारी बाद में होती है । अधिकारी भी तवज्जो नहीं देते है। मातहत एक अधिकारी तो पदभार ग्रहण के बाद मिलने भी नहीं आया। सामान्य काम के लिए मंत्री का दरवाजा खटखटाने वाले कार्यकर्ता परेशान है। कई अधिकारी काम कराने के चक्कर में घूम रहे हैं। गृह व पीडब्ल्यूडी विभाग की चर्चा में विपक्षी विधायकों ने इसी तरह कई बड़े हमले किये। लेकिन अब उन्हें महत्व मिलने के संकेत हैं।