कवर्धा पुलिस की ‘मजबूरी’ या राजनीतिक दबाव? गैर-जमानती धाराओं में फरार आरोपी खुलेआम घूम रहा

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कवर्धा। गैर-जमानती धाराओं में फरार घोषित एक आरोपी शहर में खुलेआम घूम रहा है, मंत्री के सरकारी कार्यक्रमों में मंच पर दिखता है, राजनीतिक नेताओं के साथ फोटो खिंचवाता है और रोजाना पुलिस के सामने से गुजरता है। बावजूद इसके उसे गिरफ्तार करने में पुलिस की ‘पाकेट से बाहर’ मजबूरी समझ नहीं आ रही। सवाल यह है कि क्या कानून केवल आम जनता के लिए है, और रसूखदार अपराधियों को इसका भय नहीं!

पुलिस की असहायता पर सवाल

फरार आरोपी के खिलाफ कई गंभीर धाराओं में वारंट जारी हैं, लेकिन पुलिस आज तक उसे गिरफ़्तार नहीं कर पाई। पुलिस सूत्र बताते हैं कि

  • राजनीतिक दबाव
  • ऊपर से ‘न पकड़ने’ के संकेत
  • स्थानीय सत्ता समीकरण

इसी आरोपी को गिरफ्तारी से बचाते हैं।

यही वजह है कि पुलिस रोज आम आदमी की बाइक चालान कर सकती है, शराब पीकर बाइक चलाने वालों को पकड़ सकती है, लेकिन गैर-जमानती मामलों में फरार व्यक्ति को देखते हुए भी नजरअंदाज कर देती है।

  • कार्यक्रमों में वीआईपी ट्रीटमेंट
  • आरोपी आम व्यक्ति की तरह नहीं, बल्कि सरकारी मेहमान की तरह दिखता है।
  • मंत्री के मंच पर बैठता है
  • राजनीतिक बैठकों में शामिल होता है
  • शहर के हर बड़े आयोजन में उसकी मौजूदगी रहती है
  • सवाल उठता है—फरार है या सत्ता संरक्षण प्राप्त ‘विशेष नागरिक’?

कानून का दोहरा चेहरा

यह मामला सिर्फ कवर्धा नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की सच्चाई उजागर करता है—

  • सिफारिश और राजनीतिक पहुंच अपराध को भी संरक्षण दे सकती है।
  • पुलिस की कार्रवाई रसूखदारों की मर्जी पर निर्भर हो जाती है ।
  • कानून की धाराएं कागज पर तेज, जमीन पर कमजोर पड़ जाती हैं ।

जिस पर गैर-जमानती वारंट हो, वह मंच पर बैठकर भाषण सुन रहा है और पुलिस सलाम ठोक रही है—यह तस्वीर कानून के मजाक की सबसे बड़ी मिसाल है।

प्रशासन की चुप्पी, जनता की नाराजगी

आम जनता सवाल पूछ रही है—

क्या पुलिस राजनीतिज्ञों के इशारे पर काम कर रही है?

क्या आरोपी सत्ता संरक्षण में इतना सुरक्षित है कि गिरफ्तारी ‘असम्भव’ हो चुकी है?

क्या यही ‘कानून राज’ है?

राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि गिरफ्तारी का आदेश आते ही फोन आते हैं—”अभी नहीं”

फरार आरोपी का इस तरह मंचों पर दिखना, कार्यक्रमों में घूमना और पुलिस द्वारा लगातार नजरअंदाज किया जाना साबित करता है कि कवर्धा में कानून कमजोर, सियासत मजबूत है।

जब तक सत्ता संरक्षण खत्म नहीं होगा, कानून का शिकंजा भी सिर्फ गरीब और आम नागरिक तक ही सीमित रहेगा।

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