अजीत जोगी की पार्टी का कांग्रेस में हो सकता है विलय! जानिए प्रदेश की राजनीति में क्या है इसकी अहमियत

रायपुरः छत्तीसगढ़ में सत्ता संभाल रही कांग्रेस में सियासी घमासान चल रहा है. इस सियासी घमासान के बीच प्रदेश में एक और नया राजनीतिक मोड़ आता दिख रहा है. सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा चल रही है कि छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की ”जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़” पार्टी का कांग्रेस में विलय हो सकता है. हालांकि अब तक इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है. लेकिन अजीत जोगी कौन थे. जिनके न रहने के बाद भी वह छत्तीसगढ़ की सियासत में अहम बने हुए हैं.
दरअसल, छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी लंबे समय तक कांग्रेस में रहे और बाद में उन्होंने अपनी अलग पार्टी ”जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़” बनाई थी. 2018 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने 5 विधानसभा सीटे जीती थी. हालांकि विधानसभा चुनाव के बाद 29 मई 2020 में उनका निधन हो गया. भले ही जोगी का निधन हो गया लेकिन उनका रसूख आज भी सूबे की सियासत में बना हुआ है. अजीत जोगी की पार्टी ”जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़” प्रदेश में कांग्रेस और बीजेपी के बाद राज्य की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी हैं.
कौन थे अजीत जोगी
अजीत प्रमोद कुमार जोगी छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री थे. साल 2000 में जब मध्य प्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना हुई तो अजीत जोगी ने राज्य के पहले मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली. वह राज्य के पहले आदिवासी मुख्यमंत्री थे. अजीत जोगी के राजनीतिक सफर की बात करें तो उन्होंने शुरुआती दिनों में काफी चुनौतियों का सामना किया था. अजीत जोगी का जन्म बिलासपुर के पेंड्रा में 29 अप्रैल 1946 को हुआ था.
IAS से बाद शुरू किया राजनीतिक सफर
अजीत जोगी मैकेनिकल इंजीनियरिंग में गोल्ड मेडलिस्ट थे. पहले जोगी IPS बने और उसके दो साल बाद IAS क्लियर कर लिया. जिसके बाद वह सिविल सर्विस करने लगे. अजीत जोगी मध्य प्रदेश के सीधी और शहडोल में करीब 12 साल तक कलेक्टर भी रहे. इस दौरान वह ज्यादातर उन जिलों में पदस्थ रहे जो जो राजनीतिक क्षत्रपों के प्रभाव वाले क्षेत्र माने जाते रहे. इसी दौरान उनका राजनीतिक लोगों से मेलजोल बढ़ा. अजीत जोगी मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के सुझाव पर राजनीति में आए और कांग्रेस ज्वाइन कर ली. राजीव गांधी के कार्यकाल में ही अजीत जोगी ने कांग्रेस ज्वॉइन कर ली थी. कांग्रेस ज्वॉइन करने के बाद गांधी परिवार से उनकी नजदीकियां बढ़ गई थीं. वह कांग्रेस की ऑल इंडिया कमेटी फॉर वेलफेयर ऑफ शेड्यूल्ड कास्ट एंड ट्राइब्स के मेंबर भी रहे.
1998 में पहली बार बने सांसद
अजीत जोगी की राजनीति में एंट्री भी बड़ी रोचक है. बात 1985 की है. अजीत जोगी उस वक्त इंदौर के कलेक्टर थे और राजीव गांधी को इंदिरा गांधी की मौत के बाद हुए चुनाव में प्रधानमंत्री बने थे. एक रात अचानक दिल्ली के प्रधानमंत्री निवास से इंदौर के कलेक्टर को फोन गया और कलेक्टर जोगी कांग्रेसी जोगी बन बैठे. इंदौर कलेक्टर रहते हुए ही उन्होंने प्रशासनिक सेवा छोड़ी और राजनीति का रुख कर लिया.
कांग्रेस से जुड़ने के बाद अजीत जोगी कई अहम पदों पर रहे. अपने राजनीतिक प्रभाव के चलते 1998 में कांग्रेस पार्टी ने उन्हें रायगढ़ से लोकसभा टिकिट दिया और जोगी पहली बार चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे. नवंबर 2000 में छत्तीसगढ़ गठन के दौरान उनके राजनीतिक करियर में बड़ा बदलाव आया और उन्हें छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिला. जोगी दो बार राज्यसभा के सांसद चुने गए. 2004 से 2008 के बीच वे 14वीं लोकसभा के सांसद रहे. 2008 में वे मरवाही विधानसभा सीट से चुन कर विधानसभा पहुंचे और 2009 के लोकसभा चुनावों में चुने जाने के बाद जोगी ने लोकसभा सदस्य छत्तीसगढ़ के महासामुंद निर्वाचन क्षेत्र के रूप में काम किया. हालांकि 2014 की मोदी लहर में जोगी को भी हार का सामना करना पड़ा.
2016 में बनाई पार्टी
2004 में एक हादसे के बाद अजीत जोगी को पैरालिसिस हो गया था. जिसके बाद वह कभी व्हीलचेयर से खड़े नहीं हो सके. इस दौरान एक उपचुनाव विवाद और कांग्रेस आलाकमान के साथ उनके बिगड़ते संबंधों की वजह से कांग्रेस से अलग हो गए. 2016 में उन्होंने ”जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़” के नाम से अपनी अलग पार्टी बनाई. 2018 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा. इस चुनाव में जोगी की पार्टी को 5 विधानसभा सीटें मिली खुद जोगी अपने परंपरागंत मरवाही विधानसभा सीट से विधायक चुने गए. लेकिन लंबे समय तक बीमार रहने के चलते 29 मई 2020 को उनका निधन हो गया.
क्यों जोगी परिवार है छत्तीसगढ़ की बड़ी ताकत?
प्रदेश की सियासत में अजीत जोगी के परिवार की पकड़ आज भी मजबूत है. उनकी पत्नी डॉ. रेणु जोगी कोटा से विधायक हैं. बेटे अजीत जोगी भी विधायक रह चुके है और राज्य की राजनीति में सक्रिए हैं. पूरा परिवार राजनीति में सक्रिय है. उनका परिवार आज भी प्रदेश की राजनीति में अच्छी पकड़ बनाए हुए हैं. मरवाही, महासमुंद सहित अन्य दूसरे जिलों में जोगी राजनीतिक पड़ बहुत मजबूत हैं. भले ही पहले विधानसभा चुनाव में पार्टी को पांच सीटें मिली थी, लेकिन उनकी पार्टी का जनाधार राज्य में दिखा था.
दरअसल, राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अजीत जोगी के निधन के बाद से ही उनकी पार्टी ”जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़” में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. बताया जा रहा है कि पार्टी में टूट पड़ने की आशंका बनी हुई हैं. पार्टी के चार में से दो विधायक प्रमोद शर्मा और देवव्रत सिंह कांग्रेस के साथ खड़े हो चुके हैं. हालांकि दलबदल कानून की वजह से उन्होंने पार्टी नहीं छोड़ी है. वहीं पार्टी के अन्य कई नेता भी वापस कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं. ऐसे में दिवगंत अजीत जोगी की पत्नी रेणु जोगी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर सकती है. जबकि कांग्रेस को जोगी परिवार के पार्टी में वापसी से एक बड़ी ताकत हासिल हो सकती है. हालांकि अब तक दोनों दलों ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध रही है. लेकिन इतना तय है कि प्रदेश के सियासी हालातों में दोनों दल एक दूसरे के लिए जरूरी हो सकते हैं.