
जगदलपुर: कौवा और काला रंग एक दूसरे के पर्याय हैं। ऐसे मे सफेद कौवा को देखे जाने की बात तो दूर ऐसा कहना भी ख्याली पुलाव लगता है। पर अब शहर के दलपत सागर के आसपास सफेद कौवा दिखाई देने से सफेद कौवा वाली बात साबित हो गई है। कुछ इसे कबूतर भी कह रहे हैं, पर पक्षी विज्ञानी ने साबित किया है कि यह कौवा ही है।
दलपतसागर जलाशय से सटे धरमपुरा इलाके में सालभर से एक दुर्लभ सफेद कौवा घूम रहा है। यह कौवा आम कौवे के साथ ही उड़ता रहता है। अब इसकी उपस्थिति पर जीव विज्ञानी नजर रखे हुए हैं। लगातार शोध के बाद अंतरराष्ट्रीय साइंस जर्नल एंबियंट साइंस में इसका विवरण भी प्रकाशित किया गया। धरमपुरा क्षेत्र बड़े पेड़ों से भरा है। कच्चे से लेकर पक्के मकान तक हैं, जहां इनके रहवास व आहार की अच्छी सुविधाएं हैं।
पक्षी विज्ञानियों के मुताबिक सफेद कौवा की आवाज काले और भूरे रंग के कौवा से अलग है। लेकिन रिकॉर्डिंग यंत्र से आवाज की भिन्नता के अध्ययन की जरूरत है। ये देश के कई भाग में मिल चुके हैं। जरूरत इन पर अधिकाधिक शोध की है।
कौवा एक विस्मयकारक पक्षी है। इनमें इतनी विविधता पाई जाती है कि इस पर एक ‘कागशास्त्र’ की भी रचना की गई है। आसानी से दिखाई देने वाली यह प्रजाति कई स्थानों पर दिखाई नहीं दे रही है। बिगड़ रहे पर्यावरण की मार कौओं पर भी पड़ी है। स्थिति यह है कि श्राद्ध में अनुष्ठान पूरा करने के लिए कौए तलाशने से भी नहीं मिल रहे हैं। कौए के विकल्प के रूप में बंदर और गाय और अन्य पक्षियों को भोजन का अंश देकर अनुष्ठान पूरा कर रहे हैं।