Trending Nowदेश दुनिया

मोदी सरकार ने तीन कृषि कानूनों को वापस क्यों लिया, जानें 6 बड़े कारण

नई दिल्ली: आखिरकार नरेंद्र मोदी सरकार (Narendra Modi Government) ने तीन विवादास्पद कृषि कानूनों (Farm Laws) को वापस करने का फैसला कर लिया. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज गुरु नानक के जन्मोत्सव पर प्रकाश पर्व के पावन अवसर पर राष्ट्र के नाम संदेश में इसकी घोषणा की. जहां आंदोलनकारी किसान संगठनों ने इसका स्वागत किया है, वहीं उन्होंने यह भी कहा है कि जब तक संसद में इसे मूर्त रूप नहीं दे दिया जाता, तब तक वे अपना आंदोलन जारी रखेंगे. उन्होंने अपनी मांगों की सूची को लंबा करते हुए एमएसपी को कानूनी दर्जा देने, मृतक किसानों के परिवारवालों को मुआवजा देने और आंदोलनकारी किसानों पर लगाए गए मुकदमों को वापस लेने की मांग पर भी जोर दिया है. वहीं विपक्षी पार्टियों ने सरकार के अहंकार को लेकर हमले किए और इस फैसले की टाइमिंग पर सवाल उठाए. कल तक इन कृषि कानूनों को ऐतिहासिक बताने वाली बीजेपी अब इन कानूनों को वापस लेने के फैसले को ऐतिहासिक बताने में जुट गई है. पार्टी और सरकार कहती आ रही थी कि ये कानून किसी भी सूरत में वापस नहीं होंगे, लेकिन अचानक ऐसा क्या हुआ कि पीएम मोदी ने अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बने इन कानूनों पर यूटर्न करने का फैसला किया. इसके पीछे के प्रमुख कारण ये हैं-

पश्चिमी उत्तर प्रदेश
बीजेपी का अपना फीडबैक है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन के कारण जमीनी हालात तेजी से बदल रहे हैं. लगातार तीन चुनावों में बीजेपी को यहां जबर्दस्त समर्थन मिला. जाटों के नेता माने जाने वाले अजित सिंह खुद चुनाव हार गए. वैसे तो प्रमुख रूप से गन्ने की फसल उगाने वाले इस क्षेत्र में इन कृषि कानूनों के कारण किसानों के हक पर कोई चोट नहीं हो रही थी, लेकिन धारणा यह बन गई कि सरकार किसान विरोधी है, हालांकि योगी सरकार ने गन्ने के समर्थन मूल्य में बढोत्तरी और बकाया चुकाने की घोषणा की, लेकिन आंदोलन को लेकर जिस तरह से सरकार की ओर से सख्ती बरती गई और बीजेपी नेताओं के बयान आए उससे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट खासतौर से नाराज हुए. राकेश टिकैत इस आंदोलन का चेहरा बन गए. उनके द्वारा राज्य में बुलाई गई महापंचायतों को विपक्षी पार्टियों का जमकर समर्थन मिला. इसी तरह राष्ट्रीय लोक दल भी अपना खोया जनाधारा वापस पाने में जुट गई. सपा और रालोद के बीच समझौता भी बीजेपी के लिए चिंता का कारण है. पंचायत चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी के खराब प्रदर्शन को भी इसी से जोड़ा गया. मुजफ्फपुर हिंसा के बाद टूटी जाट मुस्लिम एकता फिर से जुड़ने लगी. बीजेपी को यह भी डर रहा कि चुनाव प्रचार में उतरने पर उसके नेताओं को कहीं वैसे ही विरोध का सामना न करना पड़े जैसे हरियाणा और पंजाब में हुआ. खुद पीएम मोदी 25 नवंबर को ग्रेटर नोएडा में जेवर में नोएडा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की आधारशिला रखने जा रहे हैं. इसमें बीजेपी दो से ढाई लाख लोगों को जुटाना चाह रही है, लेकिन किसान आंदोलन के चलते उसे इस कार्यक्रम में विरोध का डर था. अमित शाह कह चुके हैं कि 2024 में अगर मोदी को फिर पीएम बनाना है तो यूपी में 2022 में योगी को जिताना जरूरी है, लेकिन किसान आंदोलन के चलते पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी को नुकसान की आशंका थी. लखीमपुर खीरी की घटना ने भी बीजेपी का नुकसान किया.

advt_001_feb2025
advt1_jan2025
advt_002_feb2025
Share This: