रायापुर। संसार में धर्म लाना था, लेकिन हमने धर्म में संसार ला दिया। श्रावक जीवन या साधु जीवन में समृद्धि एवं नाम के लिए न करने लायक काम भी पाप किया हो, तो उसकी आलोचना लेनी चाहिए। कर्म सत्ता ने भगवान को भी नहीं छोड़ा।
जैन दादाबाड़ी में विनय कुशल मुनि म. सा. के सानिध्य में चल रहे चातुर्मासिक प्रवचन में विराग मुनि म. सा. ने ये बातें कही। उन्होंने कहा, धर्म कहता है कि परनिंदा मत करिए। खुद की गलतियां पहचानिए। लोगों को आज गुरु भगवंतों से कैसे बात करनी है, इसका ख्याल भी नहीं रह गया है। बात करते वक्त हमेशा मर्यादित शब्दों का इस्तेमाल करें। मुनिश्री ने कहा कि कब, कहां, कैसे और क्या बोलना है, इस बात का बहुत ज्यादा ध्यान रखा जाना चाहिए। ऐसा कुछ भी बोलने या लिखने से बचें, जिससे वचन दोष लगता हो। हमें अपनी वाणी और व्यवहार ऐसा रखना चाहिए जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग धर्म से जुड़ें। समाज बेहतरी की ओर जाए। ये सब पहले भी कई बार सुन चुकें होंगे। मानते नहीं हैं क्योंकि विवेक नहीं है। जीवन को अच्छा बनाना है तो इसकी शुरुआत आपकी वाणी से ही होगी। घर-परिवार में बात करते वक्त शब्दों का चयन बड़े ध्यान से करें क्योंकि शब्द ही रिश्ते बनाते हैं और तोड़ते भी हैं।
नया करने के चक्कर में हमने
धार्मिक क्रियाएं तक बदल दी
मुनिश्री ने कहा, आज हाल ऐसा है कि पुरानी परंपराओं से हटकर कुछ नया करना है, सिर्फ इसीलिए हमने अपनी धार्मिक क्रियाएं तक बदल डाली। संसार में धर्म लाना था। आपने धर्म में संसार ला दिया। परमात्मा कहते हैं कि उत्तर चा रित्र, उत्तम धर्म और उत्तम श्रावक की प्रशंसा करो। उनके गुणों को अपनाओ। आज लोग इन्हीं की निंदा करने से नहीं चूक रहे। आलोचना कर रहे हैं। इससे उनका नहीं, खुद का नुकसान है। दूसरों की निंदा से बेहतर है अपने दुर्गुणों की निंदा करें। प्रायश्चित करें। आत्मकल्याण करें।
आस्था प्रधान धर्म छोड़कर
इच्छा प्रधान धर्म बना लिया
जिस धर्म का आचरण कर राग-द्वेष से मुक्त होना था, वह घटने की जगह बढ़ते जा रहा है। इसका कारण है तो हमारे मन के परिणाम। मन के भाव जब तक शुद्ध नहीं होंगे, आप आत्मकल्याण के मार्ग पर अग्रसर नहीं हो सकते। हमने आस्था प्रधान धर्म छोड़कर इच्छा प्रधान धर्म बना लिया है।
धर्म का स्वरूप बदलने की कोशिश न करें, वरना भावी पीढ़ी तक वास्तविक धर्म कभी पहुंच ही नहीं पाएगा। दुनियाभर को बदलना आपके हाथ में नहीं है। खुद को बदलने का प्रयास करेंं।
समाज ने उत्साह से की सिद्धि
तप के तपस्वियों की अनुमोदना
आत्मस्पर्शीय चातुर्मास समिति के अध्यक्ष पारस पारख और महासचिव नरेश बुरड़ ने बताया कि साधना-आराधना की श्रृंखला में दादाबाड़ी में महान सिद्धि तप जारी है। इसके तपस्वियों के अनुमोदनार्थ सोमवार सुबह 9 बजे से दादाबाड़ी में विशेष कार्यक्रम रखा गया था। यहां मुंबई से आए प्रसिद्ध संगीतकार नरेंद्र वाणीगोता ने तपस्वियों की बोली लगाकर अनुमोदना की, जिसमें समाज के लोगों ने बढ़-चढकर हिस्सा लिया। मंगलवार को सिद्धि तप के अंतर्गत 7 के उपवास का पारणा रहेगा। मुकेश निमाणी और गौरव गोलछा ने बताया कि दादा गुरुदेव इकतीसा जाप का समापन 28 अगस्त को होगा। इस मौके पर इंदौर के सुप्रसिद्ध संगीतकार देवेश भाई द्वारा प्रभु भक्ति की जाएगी। इकतीसा जाप के तहत रोज रात 8.30 से 9.30 बजे तक प्रभु भक्ति का सिलसिला है।