Trending Now

तिरछी नजर 👀 : डॉ.रमन सिंह की चल रही है….. ✒️✒️

भाजपा के टिकिट वितरण में केन्द्रिय नेतृत्व की चल रही है या रमन सिंह से पूछकर किया जा रहा है। यह सवाल टिकिटार्थियों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। तीन बार के मुख्यमंत्री व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ.रमन सिंह का प्रभाव पार्टी के भीतर दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। चुनावी सर्वे और समीकरण रमन सिंह के इर्द-गिर्द सिमट गया है। रमन सिंह के निवास मौलश्री विहार में टिकितार्थियों के बीच बढ़ गयी है। रमन सिंह के समर्थकों को यह लगने लगा है कि टिकिट मिल जायेगी और विरोधियों की धूक-धुकी बढ़ गयी है। लगभग हर बैठक में शामिल रमन सिंह को केन्द्रिय नेतृत्व भी विश्वास में लेकर चुनाव की तैयारी में जुटा है।

टिकट मिलने से ज्यादा टिकट कटने की चर्चा

प्रदेश के दोनों प्रमुख दलों कांग्रेस और भाजपा में प्रत्याशी तय करने की प्रक्रिया चल रही है। भाजपा ने अपने 21 प्रत्याशी घोषित भी कर दिए। कांग्रेस ने प्रत्याशी तय करने से पहले दावेदारों के आवेदन मंगवा लिए। अब सभी सीटों के लिए पैनल को अंतिम रुप देने की प्रक्रिया चल रही है। यह भी चर्चा है कि स्क्रीनिंग कमेटी ने आधी सीटों पर प्रत्याशियों के नाम भी तय कर लिए। अब सभी सीटों पर सीईसी की बैठक में अंतिम निर्णय होगा। बहरहाल कांग्रेस में टिकट मिलने से ज्यादा चर्चा टिकट कटने वालों की है। ऐसे कौन 30-35 विधायक हैं, जिनको पार्टी इस बार मौका नहीं देगी। पार्टी के अंदर खाने में यह चर्चा जोरों पर है कि इनमें ज्यादातर पहली बार जीतने वाले विधायक ही होंगें। ऐसी चर्चाओं से पहली बार वाले विधायकों की नींद उड़ी हुई है। उनका यह तर्क़ है कि लोगों की नाराज़गी तो पुराने विधायकों से रहती हैं । एंटी इन्कम्बेंसी दूर करने के लिए उनकी टिकट काटनी चाहिए। बहरहाल, सूची जारी होने तक इसको लेकर उहापोह की स्थिति रहेगी।
इधर भाजपा में भी टिकट कटने को लेकर चर्चाएं ज्यादा है। यहां कांग्रेस के ठीक उलट वरिष्ठ नेताओं की ही टिकट कटने की चर्चाएं ज्यादा है। पार्टी के कई नेताओं का तर्क है कि लोकसभा चुनाव की तरह सभी सीटों पर प्रत्याशी बदलने से ही पार्टी का उद्धार हो सकता है। पार्टी के सभी वरिष्ठ विधायक इस बात से चिंतित और सशंकित हैं । कई ने तो अब सार्वजनिक रूप से बोलना शुरू कर दिया है कि उनकी टिकट नहीं कट रही। वे ही चुनाव मैदान में उतरेंगे। पार्टी की दूसरी सुची में देर की भी चर्चा है।

मंत्रियों को अपनी टिकिट की चिंता..

राजधानी रायपुर में कांग्रेस के दिग्गज नेताओं की टिकिट वितरण को लेकर बैठक चल रही थी। बैठक में छत्तीसगढ़ प्रभारी सुश्री शैलजा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सहित प्रमुख पदाधिकारी उपस्थित थे। बैठक के दौरान लगभग नेताओं ने अपने जिले के आसपास के सीटों का आंकलन किया। कुछ मंत्री और प्रभावशाली नेता चाहते थे कि उनके टिकिट की घोषणा जल्दी कर दी जाये ताकि क्षेत्र में जोर शोर से तैयारी शुरु की जाये। गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू ने भी कहा कि क्षेत्र की तैयारियों में भिड़ेंगे। बैठक और अन्य सीटों पर फैसला आप लोग देख लेना हमारा समर्थन रहेगा। राष्ट्रीय स्तर के पदाधिकारी व दिग्गज माने जाने वाले मंत्री व नेता अभी तक अपने टिकिट और विधानसभा क्षेत्र के जनता के मुड़ भापने की कवायद में जुटे हुए है। वे यह समझ गये हैं कि टिकिट में चलने वाली नहीं है। अपनी सीट तक सिमट गये हैं। समर्थकों के लिए अड़ने का काम स्पीकर चरण दास महंत कोरबा लोकसभा क्षेत्र व उप मुख्यमंत्री टी.एस.बाबा सरगुजा क्षेत्र में नजर रखें है।

400 राईस मिल और लगेंगे..

छत्तीसगढ़ में एक बार फिर से चावल को लेकर राजनीतिक लड़ाई तेज होने की संभावना है। एक तरफ केन्द्र सरकार ने चावल पर एक्सपोर्ट ड्यूटी लगा दी। इससे चावल के दर में भारी उछाल आ गया है। दूसरी तरफ एफसीआई ने चावल खरीदने का कोटा कम दिया गया। इधर राज्य सरकार ने राईस मिलरों को धान उपार्जन करने के बाद मिलने वाला पैसा नहीं दिया है। अब भाजपा समर्थित माने जाने वाले राईस मिलर केन्द्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने का मन बना लिये हैं। धान के कटोरा छत्तीसगढ़ में राईस मिल लगाने करीब 400 लोगों ने ऐतिहासिक तरीके से आवेदन दिया है। उद्योग विभाग ने राईस मिलरों को भारी सब्सिडी देने का ऐलान कर दिया है जिससे राईस मिलरों की एक बड़ी लॉबी प्रदेश में तैयार हो रही है।

भाजपा में एक्सचेंज ऑफर

बाजार की तरह भाजपा में भी एक्सचेंज ऑफर चल रहा है। चुनाव मैदान में चेहरे बदलने के नाम पर भाजपा में विधायकों को सांसद और सांसदों को विधायक बनाने का ऑफर दिया गया है। दुर्ग सांसद विजय बघेल को फिर पाटन से टिकट दी गई है। वहीं रायपुर सांसद सुनील सोनी, राज्यसभा सांसद सरोज पांडेय भी विधायक बनना चाहते हैं। प्रदेश प्रभारी ओम माथुर पहले ही संकेत दे चुके हैं कि चुनौतीपूर्ण सीटों पर सांसद उतारे जा सकते हैं। ऐसे में संतोष पांडेय को कवर्धा से टिकट मिल सकती हैं। वहीं कुछ वरिष्ठ विधायकों को लोकसभा चुनाव लड़ने का ऑफर दिया गया है। मगर वे तैयार नहीं हो रहे हैं। साफ़ है कि नई पीढ़ी के नेताओं को अभी और इंतज़ार करना होगा।

नया परिवारवाद

कांग्रेस की टिकटों में परिवारवाद का नया चेहरा देखने को मिल सकता है। ख़राब प्रदर्शन के नाम पर जिन विधायकों के टिकट काटने की तैयारी है, उनकी जगह पति, पत्नी, पुत्र अथवा नज़दीकी रिश्तेदार को मौक़ा मिल सकता है। ऐसी सीटों की संख्या एक दर्जन हो सकती है। कर्मा परिवार को टिकट मिलना तय है। उन्हें आपसी मनमुटाव छोड़कर एक नाम देने को कहा गया है। तखतपुर में रश्मि सिंह की जगह उनके पति आशीष सिंह और मनेंद्रगढ़ में डॉ. विनय जायसवाल की जगह उनकी पत्नी का नाम चर्चा में है। यानी टिकट परिवार से बाहर नहीं जाएगी।

दो मंत्री सेफ जोन में

प्रदेश के दो मंत्री जय सिंह अग्रवाल कोरबा व उमेश पटेल खरसियां की सीट इस बार कांग्रेस के लिए आसान हो गयी है। भाजपा ने अपनी घोषित प्रत्याशी नहीं बदले तो दोनो मंत्री अच्छी बढ़त के साथ जीत सकते हैं! गत विधानसभा चुनाव में दोनों मंत्रियों के खिलाफ दिग्गज प्रत्याशी के रुप में कोरबा के सासंद पुत्र व प्रदेश के बड़े ठेकेदार विकास मोहतो व खरसिया में आई.ए.एस की नौकरी छोड़कर राजनीति में आये ओ.पी.चौधरी से रोचक मुकाबला हुआ था। इस बार घोषित प्रत्याशी के चुनाव लड़ने में कांग्रेसी नेताओं को भी मजा नहीं आ रहा है। छत्तीसगढ़ के कुछ सीटों में डॉ.सोमनाथ साहू प्रकरण न हो जाये इसका डर भाजपाईयों को भी सताने लगा है। राजिम व डौंडीलोहारा विधानसभा के भाजपा प्रत्याशी के खिलाफ समाज व भाजपाई कदमताल मिलाने तैयार नहीं दिख रहे हैं। कांग्रेस के कमजोर माने जाने वाले अमितेष शुक्ला व अनिला भेड़िया का भाग्य खुल सकता है।

प्रचार छोड़ ठाकरे परिसर के चक्कर

जिन सीटों पर पिछले चुनाव में ज्यादा मार्जिन से हार हुई थी उनमें भाजपा ने यह सोचकर प्रत्याशी घोषित किया था कि प्रत्याशी को जनसंपर्क और प्रचार के लिए ज्यादा समय मिलेगा । लेकिन चर्चा है कि कई प्रत्याशियों के खिलाफ पार्टी के ही दूसरे दावेदारों और उनके समर्थकों ने मोर्चा खोल दिया और उनके खिलाफ में बातें फैलाई जा रही हैं। इससे परेशान प्रत्याशी अपने क्षेत्र में जनसंपर्क करना छोड़ परेशानी बताने ठाकरे परिसर के चक्कर लगाने मजबूर हैं। कुछ ने पार्टी के जिम्मेदारों को यह भी कहा है कि उनका पैसा भी ज्यादा खर्च हो रहा है और वे अपना प्रचार भी ठीक से नहीं कर पा रहे। ऐसे में फायदे के लिए जल्द प्रत्याशी घोषित करने का दांव पार्टी को उल्टा तो नहीं पड़ जाएगा। पार्टी के ही एक नेता ने इस पर टिप्पणी की – सभी हारी हुई सीटें ही हैं, इससे ज्यादा और क्या नुकसान हो जाएगा।

चुनाव और सहमी नौकरशाही

ईडी की ताबड़तोड़ कार्रवाई के कारण ओहदे का रौब दिखाने वाले अफसर इनदिनों सहमे हुए हैं। क़रीब एक दर्जन आईएएस और आधा दर्जन आईपीएस ने पिछले दिनों सत्ता के प्रभावशाली लोगों से मुलाक़ात कर संरक्षण माँगा। ये वे अफ़सर हैं, जिन पर ईडी की तिरछी नज़र है। अफसरों को कोई ठोस आश्वासन नहीं मिल पाया है। जिस प्रदेश में आला अफसर जेल और बेल के चक्कर में उलझे हैं, वहाँ चुनाव में सत्तारूढ़ दल को नौकरशाही से समर्थन की उम्मीद नहीं करनी चाहिये। इसके उलट बीते चुनाव में नौकरशाही ने सत्तारूढ़ भाजपा का खुलकर साथ दिया। आईएएस ओपी चौधरी का भाजपा प्रवेश इसी रणनीति का हिस्सा था। इस बार नौकरशाही फूंक-फूंक कर कदम रख रही है।

advt03-march2025
advt02-march2025
advt-march2025
birthday
Share This: