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BREAKING: Big blow to Adani’s energy empire, 7,017 crore deal fails!
नई दिल्ली। भारतीय व्यवसायी गौतम अदानी के नेतृत्व वाला अदानी समूह बीते बुधवार ऊर्जा क्षेत्र की कंपनी डीबी पावर को 7,017 करोड़ रुपये में ख़रीदने में सफल नहीं हो सका.
अंग्रेजी अख़बार टाइम्स ऑफ़ इंडिया में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक़, अदानी समूह की कंपनी अदानी पावर ने बीते साल 18 अगस्त को इस कंपनी को ख़रीदने से जुड़े दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर किए थे. अदानी और डीबी पावर के बीच हुई इस डील को भारतीय प्रतिस्पर्धा नियामक की ओर से बीते 29 सितंबर को मंज़ूरी मिल गयी थी और अदानी समूह को 31 अक्तूबर, 2022 तक पैसे का भुगतान करना था.
इस समय सीमा को चार बार बढ़ाया गया. भुगतान की अंतिम डेडलाइन 15 फ़रवरी 2023 थी जो बुधवार को ख़त्म हो गयी. अदानी समूह ने इस डील के पूरा न होने से जुड़ी जानकारी स्टॉक एक्सचेंज को दे दी है.
अदानी का ऊर्जा साम्राज्य –
डीबी पावर के पास छत्तीसगढ़ के जांजगीर चापा में 1200 मेगावाट का कोयला आधारित पावर प्लांट है. अख़बार के मुताबिक़, डीबी पावर को ख़रीदने से चूकना अदानी समूह के लिए एक बड़ा झटका है क्योंकि इस कंपनी को ख़रीदने से अदानी पावर की भारत के ऊर्जा क्षेत्र में सबसे बड़े निजी थर्मल ऊर्जा उत्पादक के रूप में हैसियत मज़बूत होती.
ये अदानी समूह की ऊर्जा क्षेत्र में दूसरी सबसे बड़ी डील थी क्योंकि 2021 में अदानी समूह ने 26,000 करोड़ रुपये में एसबी एनर्जी इंडिया को ख़रीदा था. ये घटनाक्रम बताता है कि अदानी समूह किस तरह अपनी वित्तीय स्थिति को संभालने के लिए अपनी तेज़ रफ़्तार से हो रही ग्रोथ से समझौता कर रहा है. अदानी पावर के पास 13.6 गीगा वाट की कुल क्षमता वाले पांच राज्यों में थर्मल पावर प्लांट हैं और 40 मेगावाट का सोलर पावर प्लांट है. लेकिन इस कंपनी पर 30 सितंबर, 2022 तक 36,031 करोड़ रुपये का क़र्ज़ है.
अमेरिकी फ़ॉरेंसिक फ़ाइनेंशियल कंपनी हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट आने के बाद अदानी समूह दूसरी बार अपनी किसी डील से पलट रहा है. इससे पहले कंपनी ने 20 हज़ार करोड़ रुपये के एफ़पीओ को लौटाने का फ़ैसला किया था, जहां एक ओर कंपनी अपनी वित्तीय सेहत संभालने का प्रयास कर रही है. वहीं, निवेशकों की ओर से चुनौतियां कम होने का नाम नहीं ले रही है. ब्लूमबर्ग में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक़, अदानी समूह ने निश्चित आय वाले निवेशकों से बात करने के लिए बैंकों को नियुक्त किया है.
इन बैंकों में बार्कलेज़ बैंक, बीएनपी परिबास एसए, डीबीएस बैंक, डच बैंक एजी, एमिरेट्स एनबीडी कैपिटल, आईएनजी ग्रुप एनवी, एमयूएफ़जी, मिजुहो, एसएमबीसी निक्को और स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक शामिल हैं. ये बैंक इन निवेशकों से 16 और 21 फ़रवरी को बात करेंगे. हालांकि, ये स्पष्ट नहीं है कि इस दौरान निवेशकों की किन शंकाओं का समाधान किया जाएगा. दुनिया भर में कम से कम 200 वित्तीय संस्थानों ने अदानी समूह में निवेश किया हुआ है. इन निवेशकों में दुनिया का सबसे बड़ा ऐसेट मैनेज़र ब्लैकरॉक भी शामिल है जिसने डॉलर बॉन्ड्स के ज़रिए आठ अरब डॉलर का निवेश किया हुआ है.
इसके साथ ही राजनीतिक दुनिया में भी अदानी समूह ख़बरों में छाया हुआ है. कांग्रेस पार्टी जहां एक ओर लगातार संयुक्त संसदीय समिति बनाकर इस मामले की जांच करने की मांग कर रही है. वहीं, बीजेपी की ओर से इस मांग को स्वीकार करने के संकेत नहीं दिए जा रहे हैं. इसी बीच कांग्रेस नेता जया ठाकुर ने सुप्रीम कोर्ट में एक और याचिका दाखिल की है जिसे सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है. कांग्रेस ने इस याचिका में सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि हिंडनबर्ग रिसर्च की ओर से पेश की गयी रिपोर्ट के मद्देनज़र अदानी समूह के ख़िलाफ़ शीर्ष अदालत के मौजूदा न्यायाधीश की देखरेख में जांच की जानी चाहिए.
इसके साथ ही कांग्रेस पार्टी ने सेबी और आरबीआई से अदानी समूह की जांच करने के लिए पत्र लिखा है. भारत सरकार ने चीन की ओर से सीमा पर मिलती चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए बुधवार को दो अहम फ़ैसलों की स्वीकृति दी है. द हिंदू में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक़, केंद्र सरकार की कैबिनेट ने आईटीबीपी की सात नयी बटालियन के साथ ही वाइब्रेंट विलेज़ प्रोग्राम में 4800 करोड़ रुपये के निवेश का एलान किया है. आईटीबीपी की सात नयी बटालियनों में 9400 नियक्तियां की जाएंगी. एक शीर्ष अधिकारी ने बताया है कि इन नए जवानों को अरुणाचल प्रदेश में तैनात किया जाएगा. इसके साथ ही आईटीबीपी के एक सेक्टर मुख्यालय खोलने की भी घोषणा की गयी है.
केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा है कि आईटीबीपी की नयी बटालियन खड़ी करने का फ़ैसला सीमावर्ती क्षेत्रों की प्रभावी ढंग से निगरानी करने की ज़रूरतों को ध्यान में रखते लिया गया है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि लखनऊ के नाम में फ़िलहाल बदलाव लाने की योजना नहीं है.
अमर उजाला में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक़, योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि ‘हम नाम बदलने की पूर्व घोषणा नहीं करते हैं. जब करना होगा, तो दमदार तरीके से ही करेंगे. लखनऊ अपने आप में एक ऐतिहासिक नाम है. लखनऊ हमारे प्रदेश की राजधानी है. इसकी पहचान पौराणिक भी है. इसलिए अभी लखनऊ के रूप में जाना जा रहा है. इसका नाम अभी लखनऊ ही रहेगा.’ पिछले कुछ समय से उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के नाम में बदलाव से जुड़ी ख़बरें रह-रह कर मीडिया में आती रही हैं.
हाल में इन चर्चाओं को बल सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के उस बयान के बाद मिला जिसमें उन्होंने लखनऊ का नाम बदलकर लखन पासी करने का सुझाव दिया था. इससे पहले बीजेपी सांसद संगम लाल गुप्ता ने मांग की थी कि लखनऊ का नाम बदलकर लखनपुरी या लक्ष्मणपुरी करना चाहिए. गुप्ता की इस मांग को कुछ अहम बीजेपी नेताओं की ओर से समर्थन भी मिला था जिनमें केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक शामिल बताए जा रहे हैं.