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बीजेपी दफ्तर में विजयाराजे सिंधिया की जयंती पर अर्पित की गई पुष्पांजलि

रायपुर। भाजपा प्रदेश कार्यालय कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में राजमाता विजयाराजे सिंधिया की जयंती पर उन्हें पुष्पांजलि अर्पित की गई। विजया राजे सिंधिया (12 अक्टूबर 1919 – 25 जनवरी 2001), का जन्म मध्य प्रदेश के सागर जिले में राणा परिवार में ठाकुर महेंद्र सिंह एवं चूड़ा देवेश्वरी देवी के घर हुआ था। ये अपने पिता की सबसे बड़ी संतान थीं। इनके पिता जालौन जिले के डिप्टी कलक्टर हुआ करते थे।[1] इनके बचपन का नाम लेखा देवेश्वरी देवी था। उनकी माँ ठाकुर महेंद्र सिंह की दूसरी पत्नी थीं। वे नेपाली सेना के पूर्व कमांडर-इन-चीफ जनरल राजा खड्ग शमशेर जंग बहादुर राणा की बेटी थीं, जो नेपाल के राणा वंश के संस्थापक, जंग बहादुर कुंवर राणा के भतीजे थे। विजया राजे के जन्म के समय उनकी मृत्यु हो गई थी। विजया राजे सिंधिया जो कि ग्वालियर की राजमाता के रूप में लोकप्रिय थी, एक प्रमुख भारतीय राजशाही व्यक्तित्व के साथ-साथ एक राजनीतिक व्यक्तित्व भी थी। ब्रिटिश राज के दिनों में, 21 फरवरी 1941 को, ग्वालियर के आखिरी सत्ताधारी महाराजा जिवाजीराव सिंधिया की पत्नी के रूप में, वह राज्य के सर्वोच्च शाही हस्तियों में शामिल हो गईं। बाद में, भारत से राजशाही समाप्त होने पर वे राजनीति में उतर गई और कई बार भारतीय संसद के दोनों सदनों में चुनी गई। वह कई दशकों तक जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी की सक्रिय सदस्य भी रही। वे पहली बार 1957 में गुना से लोकसभा के लिए चुनी गईं। राजमाता विजयाराजे सिंधिया जनसंघ की नेता रह चुकी हैं। विजयाराजे सिंधिया ने 1957 में कांग्रेस से अपनी राजनीतिक पारी शुरू की थी। वह गुना लोकसभा सीट से सांसद चुनी गईं. लेकिन कांग्रेस में 10 साल बिताने के बाद पार्टी से उनका मोहभंग हो गया। विजयाराजे सिंधिया ने 1967 में जनसंघ जॉइन कर लिया। विजयाराजे सिंधिया की बदौलत ही ग्वालियर क्षेत्र में जनसंघ काफी मजबूत हुआ। वर्ष 1971 में पूरे देश में जबरदस्त इंदिरा लहर होने के बावजूद जनसंघ ने ग्वालियर क्षेत्र की तीन सीटों पर जीत हासिल की। विजयाराजे सिंधिया भिंड से, उनके पुत्र माधवराव सिंधिया गुना से और अटल बिहारी वाजपेयी ग्वालियर से सांसद बने।

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