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TWIN TOWERS DEMOLITION : 28 अगस्त भारत के लिए होगा ऐतिहासिक दिन, 12 सेकेंड में ध्वस्त हो जाएगा 800 करोड़ का ट्विन टॉवर

August 28 will be a historic day for India, the 800 crore twin tower will be demolished in 12 seconds

नोएडा। लंबी कानूनी प्रक्रियाओं और तमाम अड़चनों के बाद अब अंतत: नोएडा स्थित सुपरटेक ट्विन टावर्स को गिराए जाने की घड़ी नजदीक आ गई है. नोएडा के सेक्टर-93ए में बने सुपरटेक ट्विन टावर्स को गिराने के लिए 28 अगस्त (रविवार) की तारीख तय की गई है. इसके लिए विस्फोटक लगाने समेत सारे तकनीकी काम पूरे किए जा चुके हैं. अब दो दिन बाद तय समय पर विस्फोटकों को फोड़ा जाएगा और देखते-देखते दोनों टावर आसमान की ऊंचाइयों से गिरकर धूल में समा जाएंगे. बताया जा रहा है कि 700-800 करोड़ रुपये की वैल्यू वाले दोनों टावर्स को ध्वस्त होने में महज 12 सेकेंड का समय लगेगा.

700-800 करोड़ रुपये है मौजूदा वैल्यू –

सुपरटेक ट्विन टावर्स को गिराने में करीब 17.55 करोड रुपये का खर्च आने का अनुमान है. टावर्स को गिराने का यह खर्च भी बिल्डर कंपनी सुपरटेक ही वहन करेगी. इन दोनों टावरों में अभी कुल 950 फ्लैट्स बने हैं और इन्हें बनाने में सुपरटेक ने 200 से 300 करोड़ रुपये खर्च किया था. रियल एस्टेट के जानकारों की मानें तो, जिस इलाके में ये टावर्स बने हैं, वहां प्रॉपर्टी की वैल्यू फिलहाल 10 हजार रुपए प्रति वर्ग फीट है. इस हिसाब से सुपरटेक के दोनों टावर्स की वैल्यू 1000 करोड़ रुपये के पार निकल जाती है. हालांकि कानूनी मुकदमेबाजियों के कारण इन दोनों टावर की वैल्यू पर असर पड़ा और इनकी मौजूदा वैल्यू 700 से 800 करोड़ है. हालांकि कुछ ही घंटों बाद इस वैल्यू को भी धूल बराबर हो जाना है.

टावर बनाने में तोड़े गए कई नियम –

सुपरटेक के इन टावरों को निर्माण संबंधी प्रावधानों का पालन नहीं करने के चलते सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गिराया जा रहा है. दरअसल सुपरटेक की यह प्रॉपर्टी करीब डेढ़ दशक से विवादित है. नोएडा के सेक्टर 93-A में सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट के लिए जमीन का आवंटन 23 नवंबर 2004 को हुआ था. इस प्रोजेक्ट के लिए नोएडा अथॉरिटी ने सुपरटेक को 84,273 वर्गमीटर जमीन आवंटित की थी. 16 मार्च 2005 को इसकी लीज डीड हुई, लेकिन उस दौरान जमीन की पैमाइश में लापरवाही के कारण कई बार जमीन बढ़ी या घटी हुई भी निकल आती थी.

सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट के मामले में भी प्लॉट नंबर 4 पर आवंटित जमीन के पास ही 6,556.61 वर्गमीटर जमीन का टुकड़ा निकल आया, जिसकी अतिरिक्त लीज डीड 21 जून 2006 को बिल्डर के नाम कर दी गई. नक्शा पास होने के बाद ये दोनों प्लॉट्स को मिलाकर एक प्लॉट बना दिया गया. इस प्लॉट पर सुपरटेक ने एमराल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट लॉन्च किया. बिल्डर की योजना इस प्रोजेक्ट में ग्राउंड फ्लोर के अलावा 11 मंजिल के 16 टावर्स बनाने की थी.

यूपी सरकार के इस फैसले ने बिगाड़ दी बात –

नक्शे के हिसाब से आज जहां पर 32 मंजिला एपेक्स और सियाने खड़े हैं, वहां पर ग्रीन पार्क दिखाया गया था. इसके साथ ही यहां पर एक छोटी इमारत बनाने का भी प्रस्ताव किया गया था. इस प्रोजेक्ट को 2008-09 में कंप्लीशन सर्टिफिकेट मिला. अभी तक इस प्रोजेक्ट में सब ठीक चल रहा था. विवाद की शुरुआत उत्तर प्रदेश सरकार के एक तत्कालीन फैसले से हुई. प्रदेश सरकार ने 28 फरवरी 2009 को नए आवंटियों के लिए एफएआर बढ़ाने का निर्णय लिया. इसके साथ ही पुराने आवंटियों को कुल एफएआर का 33 प्रतिशत तक खरीदने का विकल्प भी दिया गया. एफएआर बढ़ने से अब उसी जमीन पर बिल्डर ज्यादा फ्लैट्स बना सकते थे.

खरीदारों के विरोध से मामले ने पकड़ा तूल –

इससे सुपरटेक ग्रुप को यहां से बिल्डिंग की ऊंचाई 24 मंजिल और 73 मीटर तक बढ़ाने की अनुमति मिल गई. इसके बाद प्लान को तीसरी बार रिवाइज किया गया. इस रिवीजन में बिल्डर को ऊंचाई 121 मीटर तक बढ़ाने और 40 मंजिला टावर बनाने की मंजूरी मिल गई. अब तक सुपरटेक के खरीदारों के सब्र का बांध टूट चुका था. RWA ने बिल्डर से बात करके नक्शा दिखाने की मांग की, लेकिन बायर्स के मांगने के बावजूद बिल्डर ने लोगों को नक्शा नहीं दिखाया. इसके बाद RWA ने नोएडा अथॉरिटी से नक्शा देने की मांग की. यहां भी घर खरीदारों को कोई मदद नहीं मिली.

एपेक्स और सियाने को गिराने की इस लंबी लड़ाई में शामिल रहे प्रोजेक्ट के निवासी यू बी एस तेवतिया का कहना है कि नोएडा अथॉरिटी ने बिल्डर के साथ मिलीभगत करके ही इन टावर्स के निर्माण को मंजूरी दी थी. उनका आरोप है कि नोएडा अथॉरिटी ने नक्शा मांगने पर कहा कि वो बिल्डर से पूछकर नक्शा दिखाएगी. जबकि बिल्डिंग बायलॉज के मुताबिक किसी भी निर्माण की जगह पर नक्शा लगा होना अनिवार्य है. इसके बावजूद बायर्स को प्रोजेक्ट का नक्शा नहीं दिखाया गया. बायर्स का विरोध बढ़ने के बाद सुपरटेक ने इसे अलग प्रोजेक्ट बताया.

सुप्रीम कोर्ट ने भी नहीं मानी बिल्डर की बात –

कोई समाधान नजर नहीं आने पर खरीदारों ने 2012 में इलाहाबाद हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. मामला कोर्ट में जाते ही सुपरटेक ने इन दोनों टावरों का काम तेज कर दिया. साल 2012 में यह मामला जब इलाहाबाद हाई कोर्ट में पहुंचा था तो एपेक्स और सियाने की महज 13 मंजिलें बनी थीं. इसके बाद अगले डेढ़ साल के अंदर सुपरटेक ने 32 मंजिलें तैयार कर दी. लोग आरोप लगाते हैं कि बिल्डर ने तेजी से प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए दिन-रात काम जारी रखा. साल 2014 में हाईकोर्ट ने इन्हें गिराने का आदेश दिया, तब जाकर 32 मंजिल पर ही काम रुक गया. बिल्डर ने मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. सुपरटेक ने एक टावर को गिराकर दूसरे को रहने देने की भी दलील दी. हालांकि कोर्ट में बिल्डर की कोई भी दलील काम नहीं आई और सुप्रीम कोर्ट ने भी इन्हें गिराने पर हरी झंडी दिखा दी.

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