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एक स्कूल ऐसा भी जो शासन के रिकार्ड में नहीं है, पर सात वर्षो से हो रहा है संचालित

मैनपुर। छत्तीसगढ़ को नया राज्य बने 22 बरस हो गया है बावजूद इसके अभी भी लोगो को शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी जैसी मूलभूत सुविधा सुलभ नहीं हो पाई है, जिसके हांथ में सत्ता की चाबी रही है सभी यह ढोल पीटने से पीछे नहीं रहे कि हम गांव के अतिम छोर और व्यक्ति के विकास के लिए प्रतिबद्ध है।
सरकारी तंत्र गांव के अतिम व्यक्ति तक सरकारी योजनाओं के पहुंचने का दंभ भरती हैं पर मैदानी सच्चाई इसके ठीक विपरीत है, अगर सरकारी योजनाएं गांव तक पहुंचती तो कभी यह दृश्य देखने को नहीं मिलता कि ग्रामीणों को अपने नौनिहालो को शिक्षा प्रदान करने के लिए श्रमदान कर झोपड़ी बनाकर बच्चों को पढ़ाई के लिए भेजना और शिक्षक का वेतन चंदा जमाकर कर देने की जरूरत पड़ती। जी हां हम बात कर रहे हैं एक ऐसे स्कूल की जो पिछले सात वर्षों से शिक्षा की अलख जगा रहा है और नौनिहालो को साक्षर बना रहा है। शिक्षा का अलख सरकारी प्रयासों से गांव में कब शुरु होगा इसकी बाट जोहने के बजाए ख़ुद के प्रयासों से ग्रामीणों ने स्कूल शुरु किया। हम बात कर रहे है, तहसील मुख्यालय मैनपुर से लगभग 42 किलोमीटर दूर बीहड़ जंगल उड़ीसा सीमा से लगे ग्राम ईचरादी की। यहां पर शासन द्वारा आज तक एक शासकीय स्कूल नहीं खोला जा सका है। ग्रामीणों ने शुरूवाती दौर मे श्रमदान करते हुए एक झोपड़ी का निर्माण कर फिर टीना टप्पर वाला मकान बनाकर स्कूल प्रारंभ किया जो पिछले सात वर्षो से संचालित है। यहां हम आपको बताए कि बकायदा इस विद्यालय में बच्चो को शिक्षा देने के लिए एक शिक्षक का भी व्यवस्था ग्रामीणों के द्वारा किया गया और गांव वाले शिक्षक को मेहताना के रूप में प्रतिमाह 4 हजार रूपए चंदा कर देते थे। तब कहीं जाकर इस आदिवासी गांव के बच्चों को शिक्षा हासिल हो पा रहा था।

 

बाद मे शासकीय तौर पर एक शिक्षक की व्यवस्था विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी मैनपुर द्वारा किया गया जो इस वर्ष बिलकुल बंद है। फिलहाल शासन से मध्यान भोजन उपलब्ध हो जाता है। मासूम बच्चे बराबर स्कूल आ रहे हैं लेकिन शिक्षकों के अभाव मे बिना पढ़ाई किए खेलकूद कर अपना घर वापस लौट जाते हैं।

शिक्षा के अधिकार अधिनियम जिसमें संविधान के 86 वें संशोधन अधिनियम 2002 के द्वारा 27 क जोड़कर शिक्षा को मौलिक अधिकार बना दिया गया है।इसके तहत राज्यों को यह कर्तव्य दिया गया है कि वह 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करेंगे,लेकिन यहाँ के बच्चो के लिए कानून का परिपालन होता नजर नही आ रहा है।

एक तरफ शासन-प्रशासन लगातार अनेक अभियान चलाकर एक -एक बच्चों को शिक्षा दिलाने और कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित न हो इसके लिए अनेक प्रयास किये जा रहे है बावजूद इसके इस गांव के आदिवासी बच्चों के लिए क्यो अब तक स्कूल नहीं खोला जा सका है जो एक बडा सवाल खड़ा करता है। सरकार द्वारा शिक्षा के नाम पर करोडों रूपए पानी की तरह खर्च किया जा रहा हैं और तरह-तरह के प्रयोग व कार्यक्रम संचालित कर शाला त्यागी बच्चों को स्कूल तक लाने अभियान चलाया जा रहा हैं ठीक इसके विपरीत गरियाबंद जिला के आदिवासी विकासखंड मैनपुर क्षेत्र के ग्रामीण वनांचल इलाको में बांस व लकड़ी के झोपड़ी का निर्माण कर इसमें आदिवासी क्षेत्र के बच्चों का भविष्य गढ़ा जा रहा हैं।

राजीव गांधी शिक्षा मिशन, सर्व शिक्षा अभियान द्वारा मैनपुर विकासखंड क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षो से वनांचल के ग्रामों में आवासीय विशेष प्रशिक्षण केन्द्र स्थापित कर क्षेत्र के बच्चों को वहां रख कर पढाई लिखाई करवाई जा रही थी। ग्राम ईचरादी में वर्ष 2012-13 से आवासीय विशेष प्रशिक्षण केन्द्र खोला गया था जो संकुल केन्द्र भूतबेडा के अंतर्गत आता हैं इस गांव में स्कूल नहीं होने की वजह से बच्चों को शिक्षित करने के उदेश्य से सर्व शिक्षा अभियान द्वारा यहां एस आर टी सी केन्द्र खोला गया था लेकिन यह आवासीय विशेष प्रशिक्षण केन्द्र एक वर्ष संचालित होने के बाद बंद कर दिया गया जिससे यहां के आदिवासी बच्चे शिक्षा से वंचित होने लगे तो ग्रामीणों ने श्रमदान कर एक झोपड़ी का निर्माण करते हुए एक शिक्षक की व्यवस्था कर वहां पढ़ाई प्रारंभ करवा दी । शासन द्वारा पूर्व मे एक शिक्षक की वैकल्पिक व्यवस्था तो कर दिया था लेकिन इस वर्ष पूर्ण रूप से बंद है। बच्चों की पढ़ाई इस वर्ष बाधित हो रही है।

जहां वर्तमान में कक्षा पहली से पांचवी तक 46 छात्र -छात्राएं अध्यनरत् है, यहां के ग्रामीणों ने कई बार यहां शासकीय स्कूल खोलने की मांग को लेकर विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी व जिला शिक्षा अधिकारी को ज्ञापन सौपकर मांग कर चुके है लेकिन अब तक क्यो यहां शासकीय प्राथमिक शाला नहीं खोला जा सका है यह समझ से परे है । जबकि यहां वर्तमान में 46 छात्र -छात्राएं अध्यनरत् है और सरकारी स्कूल नहीं होने के कारण इन बच्चो का भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा है,

शासन के रिकार्ड में ईचरादी में नहीं है स्कूल
ज्ञात हो कि शासन ने सर्व शिक्षा अभियान द्वारा संचालित इस विशेष आवासीय प्रशिक्षण केन्द्र ईचरादी को बंद कर दिया है और वहां से 5 किलोमीटर दूर ग्राम गरीबा में शासकीय प्राथमिक शाला संचालित हो रहा है लेकिन स्कूल की दूरी अधिक होने और जंगली रास्ता होने के कारण अपने बच्चो को ग्रामीण इसी झोपड़ीनुमा स्कूलो में पढ़ाई करवा रहे है, लेकिन इन्हे शासन से मिलने वाली योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है और अपने भविष्य झोपड़ी में गढ़ रहे है जिसकी जानकारी स्थानीय अधिकारियों को होने के बावजूद इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। भले ही शिक्षा का अधिकार कानून लागू हो गया है इस ग्राम इचरादी से गरीबा की दूरी 5 कि.मी. है और घने जंगल होने के कारण यहां के बच्चे वहां तक स्कूल जाने में असमर्थ है, इसलिए शासन को चाहिए कि ईचरादी में शासकीय प्राथमिक शाला खोला जाना चाहिए।

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