SUPREME COURT : अपराधी नेता चुनाव कैसे लड़ सकते हैं? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और चुनाव आयोग से मांगा जवाब
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SUPREME COURT: How can criminal leaders contest elections? Supreme Court sought answers from Center and Election Commission
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने दोषी ठहराए गए सांसदों और विधायकों के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग वाली याचिका पर केंद्र सरकार और चुनाव आयोग से तीन हफ्तों में जवाब मांगा है। कोर्ट ने कहा कि यदि केंद्र और चुनाव आयोग जवाब नहीं भी देते हैं, तब भी वह इस मामले को आगे बढ़ाएगा। अगली सुनवाई 4 मार्च को होगी।
सुप्रीम कोर्ट का सवाल – कानून तोड़ने वाले कानून कैसे बना सकते हैं?
सुनवाई के दौरान जस्टिस मनमोहन और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने सवाल उठाया कि अगर किसी सरकारी कर्मचारी को दोषी ठहराए जाने पर नौकरी से हटा दिया जाता है, तो फिर दोषी नेता संसद या विधानसभा में कैसे लौट सकते हैं? अदालत ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 और 9 की संवैधानिक वैधता की भी समीक्षा करने का फैसला किया है।
निचली अदालतों में धीमी सुनवाई पर जताई चिंता
सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों में लंबित मामलों की धीमी सुनवाई पर भी नाराजगी जताई। कोर्ट ने कहा कि कई राज्यों में MP/MLA कोर्ट अभी तक गठित नहीं की गई हैं। वहीं, कई जगह सुनवाई को बिना कारण बार-बार टाला जा रहा है।
चुनाव सुधार को लेकर कांग्रेस की याचिका
इधर, कांग्रेस ने चुनाव से जुड़े इलेक्ट्रॉनिक डॉक्यूमेंट्स को सार्वजनिक करने पर रोक के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। केंद्र सरकार ने पोलिंग स्टेशन के CCTV फुटेज, वेबकास्टिंग और उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग को सार्वजनिक करने से मना कर दिया था। कांग्रेस ने इसे चुनावी पारदर्शिता के खिलाफ बताया है।
बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने बैलेट पेपर से चुनाव कराने की याचिका खारिज कर दी। जस्टिस विक्रम नाथ और पीबी वराले की बेंच ने कहा, “जब राजनीतिक दलों को EVM से कोई दिक्कत नहीं, तो आपको क्यों है?” कोर्ट ने याचिकाकर्ता से सवाल किया कि “आप ऐसे आइडिया कहां से लाते हैं?”
राजनीति में शुचिता की मांग
याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने 2016 में एक जनहित याचिका दाखिल कर अपराधी नेताओं के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों को साफ छवि वाले प्रत्याशियों को प्राथमिकता देनी चाहिए और गंभीर अपराधों में दोषी ठहराए गए नेताओं को पार्टी पदाधिकारी नहीं बनाया जाना चाहिए।
अब देखना होगा कि केंद्र सरकार और चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट को क्या जवाब देते हैं और क्या अपराधी नेताओं पर चुनाव लड़ने की आजीवन पाबंदी लगाई जाएगी?