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परसा कोल ब्लॉक के भूविस्थापितों की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए मंजूर की

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सरगुजा स्थित परसा कोल ब्लॉक के भू विस्थापित आदिवासियों की याचिका सुनवाई के लिए स्वीकार कर ली है। जस्टिस भूषण गवई और जस्टिस विक्रम नाथ की खंडपीठ ने कोल प्रोजेक्ट पर रोक लगाने के मांग अस्वीकार कर दी, परन्तु प्रकरण की सुनवाई शीघ्र करने की मांग को स्वीकार कर लिया। बीते 11 मई को छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने इन याचिकाओं को अत्यंत देरी से दाखिल करने और मेरिट न होने की बात कह कर ख़ारिज कर दिया था। हाई कोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है।

परसा कोल ब्लॉक का भूमि अधिग्रहण 2017-18 में कोल बेयरिंग एक्ट के तहत किया गया। इसके विरोध में सरगुजा के मंगल साय और अन्य प्रभावित लोगों ने सितंबर 2020 में हाईकोर्ट में याचिका दायर की। याचिका में कहा गया कि उक्त खदान का हस्तांतरण राजस्थान राज्य विदूयत उत्पादन निगम ने अडानी की निजी कंपनी को कर दिया है जबकि कोल बेयरिंग एक्ट से केवल केंद्र सरकार की सरकारी कंपनी को ही जमीन अधिग्रहित की जा सकती है। साथ ही नए भूमि अधिग्रहण के प्रावधान लागू नहीं करने से प्रभवितों को बड़ा नुकसान हो रहा है। इसी तरह वन अधिकार कानून तथा पेसा अधिनियम की भी आवंटन में अवहेलना की गई है। ग्राम सभा का प्रस्ताव फर्जी तरीके से बनाये गया है। इसके अतिरिक्त हाथी प्रभावित क्षेत्र में खदान खोलना अनुचित है। साथ ही अधिग्रहण प्रक्रिया में सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया।

इस प्रकरण की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में गत 21 नवंबर को भी हुई थी। उस दिन कोर्ट ने कोल बेयरिंग एक्ट और नए भू अधिग्रहण क़ानून के तहत अधिग्रहण से कैसे प्रभावितों को नुकसान होता है, के लिए अतिरिक्त दस्तावेज दाखिल करने की अनुमति दी थी। शुक्रवार को हुई सुनवाई में याचिकाकर्ताओं की और से वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने बताया कि ने भू-अधिग्रहण कानून की धारा 2 सी के तहत केवल भू-स्वामी ही नहीं, बल्कि प्रभावित क्षेत्र के समस्त नागरिक प्रभावित परिवार माने जाते हैं, परन्तु कोल बेयरिंग एक्ट में केवल भूमिधारक ही प्रभावित माना जाता है। इसके अलावा प्रभावित व्यक्ति की वन उत्पादों से होने वाली आय का अलग मुआवजा होता है तथा भूमि हीन और मज़दूर को भी मुआवजा मिलता है। याचिकर्ताओं की ओर से उपस्थित वरिष्ठ वकील संजय पारीख ने अडानी के साथ संयुक्त कंपनी का मुद्दा उठा कर कहा कि कोल बेयरिंग एक्ट के तहत यह आवंटन अवैध है। नए भूमि अधिग्रहण कानून में अनुसूची 5 क्षेत्र में भूमि अधिग्रहण अंतिम विकल्प के रूप में करने का नियम है। इन सभी प्रावधानों की उपेक्षा की गई है।
केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और संयुक्त उपक्रम की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने याचिकाओं का विरोध किया।

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