नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को बाल विवाह निषेध अधिनियम को लेकर सुनवाई हुई। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने देश में हो रहे बाल विवाह के मुद्दे पर कड़ी नाराजगी जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि बाल विवाह निषेध अधिनियम को पर्सनल लॉ से नहीं रोका जा सकता और बाल विवाह अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्र इच्छा का उल्लंघन करती हैं। CJI ने कहा कि सबको अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने का अधिकार है।
SC ने जारी किए कई दिशानिर्देश
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने देश में बाल विवाह रोकथाम कानून के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए कई दिशानिर्देश भी जारी किए। एससी की बेंच ने कहा कि अधिकारियों को अपराधियों को दंडित करते समय बाल विवाह की रोकथाम और नाबालिगों की सुरक्षा पर ध्यान देना चाहिए। पीठ ने कहा, निवारक रणनीति अलग-अलग समुदायों के हिसाब से बनाई जानी चाहिए। यह कानून तभी सफल होगा जब बहु-क्षेत्रीय समन्वय होगा। कानून प्रवर्तन अधिकारियों के प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण की आवश्यकता है। हम इस बात पर जोर देते हैं कि इस मामले में समुदाय आधारित दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
कानून में हैं कुछ खामियां- SC
पीठ ने यह भी कहा कि बाल विवाह निषेध कानून में कुछ खामियां हैं। बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 बाल विवाह को रोकने और समाज से उनके उन्मूलन को सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया था। इस अधिनियम ने 1929 के बाल विवाह निरोधक अधिनियम की जगह ली।