Trending Nowशहर एवं राज्य

SAME SEX MARRIAGE : समलैंगिक विवाह को कानूनी दर्जा दिए बिना मिलेगे कुछ अधिकार, विचार के लिए केंद्र सरकार बनाएगी कमेटी

SAME SEX MARRIAGE: Without giving legal status to gay marriage, some rights will be given, the central government will form a committee for consideration

नई दिल्ली। समलैंगिक विवाह को कानूनी दर्जा दिए बिना ऐसे जोड़ों को कुछ अधिकार देने पर केंद्र सरकार विचार करेगी. केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि इसके लिए कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन किया जाएगा. मामले की सुनवाई कर रही 5 जजों की बेंच ने इस पर संतोष जताया और कहा कि याचिकाकर्ता सरकार को अपने सुझाव सौपें.

2018 में सुप्रीम कोर्ट ने दो वयस्कों के बीच आपसी सहमति से एकांत में बने समलैंगिक संबंध को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया था. तब कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध करार देने वाली आईपीसी की धारा 377 के एक हिस्से को निरस्त किया था. इसके बाद समलैंगिक विवाह को कानूनी दर्जा देने की मांग जोर पकड़ने लगी. आखिरकार, पिछले साल यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ इन दिनों इस मसले पर सुनवाई कर रही है.

‘समलैंगिक विवाह को मिले कानूनी मान्यता’ –

याचिकाकर्ताओं ने दुनिया के कई देशों में समलैंगिक शादी को मान्यता मिलने की दलील दी है. उन्होंने यह भी कहा है कि भारत में समलैंगिक जोड़ों को कोई भी कानूनी अधिकार नहीं है. कानून की नज़र में पति-पत्नी न होने के चलते वह साथ में बैंक अकाउंट नहीं खोल सकते, अपने पीएफ या पेंशन में अपने पार्टनर को नॉमिनी नहीं बना सकते हैं. इन समस्याओं का हल तभी होगा, जब उनके विवाह को कानूनी मान्यता मिल जाएगी.

याचिकाकर्ताओं की तरफ से यह भी कहा गया था कि अलग-अलग धर्म और जाति के लोगों को शादी की अनुमति देने वाली वाले स्पेशल मैरिज एक्ट की धारा 4 की मामूली व्याख्या से सारी समस्या हल हो सकती है. धारा 4 में यह लिखा गया है कि दो लोग आपस में विवाह कर सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट इतना स्पष्ट कर दे कि 2 लोगों का मतलब सिर्फ स्त्री और पुरुष ही नहीं है, इसमें समलैंगिक भी शामिल हैं.

‘सुप्रीम कोर्ट के पास नहीं है कानून बनाने का अधिकार’ –

संविधान पीठ ने 5 दिनों तक कि याचिकाकर्ताओं की बातों को सहानुभूति पूर्वक सुना. उसके बाद केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जिरह शुरू की. उन्होंने कहा कि भारतीय समाज और उसकी मान्यताएं समलैंगिक विवाह को सही नहीं मानते. कोर्ट को समाज के एक बड़े हिस्से की आवाज को भी सुनना चाहिए. सॉलिसिटर जनरल ने यह भी कहा कि कानून बनाना या उसमें बदलाव करना संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है. सुप्रीम कोर्ट अपनी तरफ से शादी की नई संस्था को मान्यता नहीं दे सकता.

सॉलिसिटर जनरल ने यह भी कहा था कि समलैंगिक शादी का मसला इतना सरल नहीं है. सिर्फ स्पेशल मैरिज एक्ट में हल्का बदलाव करने से बात नहीं बनेगी. समलैंगिक शादी को मान्यता देना बहुत सारी कानूनी जटिलताओं को जन्म दे देगा. इससे 160 दूसरे कानून भी प्रभावित होंगे. परिवार और पारिवारिक मुद्दों से जुड़े इन कानूनों में पति के रूप में पुरुष और पत्नी के रूप में स्त्री को जगह दी गई है.

किसके अधिकार क्षेत्र में आता है कानून बनाने का अधिकार? –

पिछले हफ्ते केंद्र सरकार की दलीलों को सुनने के बाद जजों ने इस बात पर सहमति जताई थी कि यह विषय संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है. उन्होंने यह भी कहा था कि समलैंगिक शादी को कानूनी दर्जा देने से बहुत तरह की जटिलताएं होंगी. जजों ने सरकार से पूछा था कि जो मानवीय समस्याएं समलैंगिक जोड़े लगातार झेलते हैं, क्या उनका हल निकाला जा सकता है? जिस तरह से सरकार में किन्नर वर्ग के लिए ट्रांसजेंडर एक्ट बनाया है, वैसी ही कोई विशेष व्यवस्था क्या समलैंगिकों के लिए भी की जा सकती है? ऐसी व्यवस्था जहां उनकी शादी को कानूनी दर्जा दिए बिना भी उन्हें सामाजिक सुरक्षा दी जा सके, कुछ अधिकार दिए जा सकें.

कोर्ट के सवाल का जवाब देते हुए आज सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार समलैंगिक जोड़ों को कुछ कानूनी अधिकार देने पर विचार करने को तैयार है. चूंकि यह मामला कई मंत्रालयों से जुड़ा है, इसलिए इस पर एक उच्चस्तरीय कमेटी बनाई जाएगी. इसकी अध्यक्षता कैबिनेट सचिव करेंगे. इस पर जजों ने कहा कि याचिकाकर्ता सरकार को अपने सुझाव दें.

याचिकाकर्ता पक्ष के एक वकील ने कहा कि देश के छोटे-छोटे शहरों में भी अब कई युवा ऐसे हैं जो समलैंगिक शादी के पक्ष में हैं. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा, “आप कुछ युवाओं की सोच की बात कर रहे हैं. हम इसे सुनेंगे, तो दूसरा पक्ष हमारे सामने पूरे देश के सोच को रख देगा. हमें संविधान के हिसाब से चलने दीजिए. हम भी चाहते हैं कि आप खाली हाथ न लौटें. फिलहाल कमेटी को विचार करने दिया जाए. बाकी बातों को भविष्य में उठाया जा सकता है.

 

 

Advt_07_002_2024
Advt_07_003_2024
Advt_14june24
july_2024_advt0001
Share This: