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POLITICS : बवाल क्यों ? सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस सैयद अब्दुल नजीर को राज्यपाल बनाने पर घमासान

POLITICS: Why the ruckus? Controversy over appointment of former Supreme Court Justice Syed Abdul Nazir as Governor

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस सैयद अब्दुल नजीर को आंध्र प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया है. 39 दिन पहले जस्टिस नजीर रिटायर हुए थे और अब उन्हें आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बना दिया गया है. उनका राज्यपाल बनना कांग्रेस को रास नहीं आ रहा है. सवाल उठाए जा रहे हैं कि न्यायिक व्यवस्था के लोगों को सरकारी पद क्यों दिए जा रहे हैं. कांग्रेस नेता राशिद अल्वी ने इसे लेकर कई सवाल उठा दिए हैं, उन्होंने इसे सही प्रैक्टिस नहीं माना है.

सवाल नैतिकता का, विपक्ष को संविधान का साथ नहीं –

राशिद अल्वी कहते हैं कि जज को सरकारी पद देना दुर्भाग्यपूर्ण है. एक रिपोर्ट के मुताबिक 50 फीसदी रिटायर्ड जज सुप्रीम कोर्ट के हैं, सरकार कहीं ना कहीं उन्हें दूसरे पदों के लिए भेज देती है जिससे लोगों का यकीन न्यायिक व्यवस्था पर कम हो रहा है. जस्टिस गोगोई को अभी तो राज्यसभी दी थी ओर अब आपने जस्टिस नजीर को गवर्नर बना दिया. राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद का सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बहुत लोग सवालिया निशान लगाते चले आ रहे हैं कि सरकार के दबाव में हुआ है. जस्टिस गोगोई के बनने के बाद जस्टिस नजीर को गवर्नर बनाना उन लोगों के शक को और मजबूत करता है. इन्हीं तर्कों के साथ अभिषेक मनु सिंघवी ने भी इस ट्रेंड को गलत माना है. उनकी तरफ से तो स्व. अरुण जेटली के ही एक पुराने बयान को आधार बनाकर सरकार पर निशाना साधा गया है.

उन्होंने कहा कि अरुण जेटली ने ये बोला था कि प्री रिटायरमेंट जजमेंट जो होती हैं, वो पोस्ट रिटायरमेंट जॉब्स से प्रभावित रहती हैं. अब तो ज्यादा ही होने लगा है. सैद्धांतिक तौर पर ये बिल्कुल गलत है. इसी तरह कुछ दूसरे कांग्रेस नेताओं ने भी नजीर के राज्यपाल बनाए जाने पर सवाल खड़े किए हैं. AIMIM नेता वारिस पठान ने तो यहां तक कह दिया है कि जिन जजों ने राम मंदिर को लेकर फैसला दिया था, उन्हें बाद में अच्छे पद मिले हैं. फिर चाहे रंजन गोगई को राज्यसभा सदस्य बनाना हो, अशोक भूषण को NCLAT का चेयरमेन और अब नजीर को राज्यपाल. अब ये सारे वो सवाल हैं जो पहले भी उठाए जा चुके हैं, इन्हीं तर्कों के आधार पर सरकार को कटघरे में खड़ा किया गया है.

कौन बन सकता है राज्यपाल, संविधान क्या कहता है? –

अब सवाल ये उठता है कि आखिर किस आधार पर रिटायर्ड जस्टिस नजीर का राज्यपाल बनना गलत है? क्या सही में किसी रिटायर्ड जज का राज्यपाल बनना न्यायिक व्यवस्था को कमजोर करता है? क्या लोगों का विश्वास न्यायिक प्रक्रिया में कम हो जाता है? अब संविधान ने कभी भी किसी जज को राज्यपाल या दूसरे सरकारी पद संभालने से नहीं रोका है. संविधान में स्पष्ट तौर पर बताया गया है कि कौन राज्यपाल बन सकता है, राज्यपाल के पास क्या शक्तियां रहती हैं. संविधान के आर्टिकल 157 और 158 में राज्यपाल पद को लेकर विस्तार से बताया गया है. संविधान के मुताबिक जो भारत का नागरिक है, जिसकी उम्र 35 या उससे ज्यादा है, जो संसद या विधानमंडल के किसी सदन का सदस्य ना हो, जो किसी भी लाभ वाले पद पर ना रहा हो, जो कुछ समय से राजनीति में सक्रिय नहीं है, उसे राज्यपाल बनाया जा सकता है.

अब संविधान के ये प्रावधान बताते हैं कि रिटायर्ड जस्टिस नजीर का राज्यपाल बनना किसी भी तरह से गलत नहीं है. वे ना राजनीति में सक्रिय हैं, ना उनके पास कोई लाभ वाला पद है और ना ही वे विधानमंडल के सदस्य रहे हैं. ऐसे में वे राज्यपाल बनने के लिए पूरी तरह योग्य हैं. विपक्ष का सवाल सिर्फ ये है कि सरकार न्यायिक प्रक्रिया से जुड़े लोगों को राज्यपाल या दूसरे ऐसे पद क्यों दे रही है. लेकिन विपक्ष के इन सवालों के बीच, ये समझना जरूरी है कि इससे पहले भी रिटायर्ड जजों को राज्यपाल बनाया गया है. ऐसा नहीं है कि मोदी सरकार ने कोई बड़ा फैसला ले लिया हो.

जजों का राज्यपाल बनना पुरानी परंपरा, पहले भी हुए नियुक्त –

इतिहास के पन्नों को टटोला जाए तो पता चलता है कि इससे पहले भी दो मौके आए हैं जब रिटायर्ड सुप्रीम कोर्ट के जजों को राज्यपाल का पद दिया गया था. वो दो नाम हैं पूर्व सीजेआई पी सदाशिवम और रिटायर्ड जस्टिस एम फातिमा बीवी. साल 2014 में पूर्व सीजेआई पी सदाशिवम को केरल का राज्यपाल बनाया गया था. वहीं पूर्व जस्टिस फातिमा बीवी की बात करें तो वे 1997 में तमिलनाडु की राज्यपाल बनाई गई थीं. ऐसे में ये उदाहरण ही बताने के लिए काफी हैं कि सुप्रीम कोर्ट का जज होना किसी को राज्यपाल बनने से नहीं रोक सकता है. अगर वे अपने पद से रिटायर्ड हो चुके हैं और राजनीति में सक्रिय नहीं हैं, तो वे उस पद को संभालने के लिए पूरी तरह तैयार हैं. नैतिकता को लेकर विपक्ष सवाल उठा सकता है, लेकिन संविधान का साथ उसे नहीं मिलेगा.

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