लोग पाप भी ईश्वर के डर से नहीं, लोग क्या कहेंगे ये सोचकर छोड़ते हैं: विराग मुनि
रायपुर। जीवन में सारा खेल पाप-पुण्य का है। जैसा उदय होगा, वैसी गति होगी। ये पाठ सहस्रो वर्षों से पढ़ाया जा रहा है। लोग हैं कि समझने को तैयार ही नहीं। लगातार पाप किए जा रहे हैं। कोई अगर पाप छोड़ भी रहा है तो प्रभु के भय से नहीं, बल्कि यह सोचकर कि लोग क्या कहेंगे?
एमजी रोड स्थित श्री जैन दादाबाड़ी में विनय कुशल मुनि महाराज साहब के पावन सानिध्य में चल रहे चातुर्मासिक प्रवचन में विराग मुनि महाराज साहब ने ये बातें कही। उन्होंने कहा कि प्रार्थना करें कि हे प्रभु! हमारे भीतर के दोषों को दूर करें। आपके गुण मेरे भीतर आ जाएं। या फिर आप मुझे ऐसी शक्ति दें जिससे मैं अपने दोषों को खुद दूर कर सकूं। ये सब आप नहीं कर पाते क्योंकि बुद्धि बीच में आ जाती है। धर्म के प्रति श्रद्धा ही नहीं है। अपने भीतर कम से कम इतना विश्वास तो जागृत करें कि हे प्रभु! जीवन की हर परिस्थिति में ईश्वर पर श्रद्धा बनी रहे। आत्मचिंतन करें कि मुझसे क्या पाप हो रहे हैं। मन, वचन, कर्म से कोई पाप न हो, इसका पूरा ध्यान रखें।
दृष्टि राग एवं वचन राग के चलते
नया करने के चक्कर में हमने
धार्मिक क्रियाएं तक बदल दी
मुनिश्री ने कहा, आज हाल ऐसा है कि पुरानी परंपराओं से हटकर कुछ नया करना है, सिर्फ इसीलिए हमने अपनी धार्मिक क्रियाएं तक बदल डाली। संसार में धर्म लाना था। आपने धर्म में संसार ला दिया। परमात्मा कहते हैं कि उत्तम चा रित्र, उत्तम धर्म और उत्तम श्रावक की प्रशंसा करो। उनके गुणों को अपनाओ। आज लोग इन्हीं की निंदा करने से नहीं चूक रहे। आलोचना कर रहे हैं। इससे उनका नहीं, खुद का नुकसान है। दूसरों की निंदा से बेहतर है अपने दुर्गुणों की निंदा करें। प्रायश्चित करें। अरत्मकल्याण करें।
अब तक किए गए पापों की प्रभु या गुरु के सामने आलोचना लेनी चाहिए हर आदमी और हर पंथ अपने को सच्चा और दूसरे को गलत बताने में लगा है आज धर्म के आचरण से राज राग द्वेष को कम होना था लेकिन यह बढ़ता ही जा रहा है और जगत में सद्गुरु मेरी क्रिया मेरी मान्यता सही है और आज तो प्रभु को ही भुला दिया समृद्धि नाम के लिए कैसे-कैसे आचरण होने लग गए हैं प्रमाद में पड़कर चारित्र निष्फल कर दिए
आस्था प्रधान धर्म छोड़कर
इच्छा प्रधान धर्म बना लिया
जिस धर्म का आचरण कर राग-द्वेष से मुक्त होना था, वह घटने की जगह बढ़ते जा रहा है। इसका कारण है तो हमारे मन के परिणाम। मन के भाव जब तक शुद्ध नहीं होंगे, आप आत्मकल्याण के मार्ग पर अग्रसर नहीं हो सकते। हमने आस्था प्रधान धर्म छोड़कर इच्छा प्रधान धर्म बना लिया है। धर्म का स्वरूप बदलने की कोशिश न करें, वरना भावी पीढ़ी तक वास्तविक धर्म कभी पहुंच ही नहीं पाएगा। दुनियाभर को बदलना आपके हाथ में नहीं है। खुद को बदलने का प्रयास करेंं।
महान सिद्धि तप के तपस्वियों के
अनुमोदनार्थ आज भव्य कार्यक्रम
आत्मस्पर्शीय चातुर्मास समिति के अध्यक्ष पारस पारख और महासचिव नरेश बुरड़ ने बताया, चातुर्मास के अंतर्गत समाज में जप-तप, साधना-आराधना की झड़ी लग गई है। इसी कड़ी में जारी महान सिद्धि तप के तपस्वियों के अनुमोदनार्थ सोमवार को श्री जैन दादाबाड़ी में भव्य कार्यक्रम रखा गया है। यहां मुंबई से आए प्रसिद्ध संगीतकार नरेंद्र वाणीगोता द्वारा तपस्वियों के अनुमोदनार्थ सुबह 9 बजे से बोली बोली जाएगी। इसका लाभ उठाकर आप भी तपस्वियों की अनुमोदना कर सकते हैं। मुकेश निमाणी और गौरव गोलछा ने बताया कि दादा गुरुदेव इकतीसा जाप के तहत प्रतिदिन रात 8.30 से 9.30 बजे तक प्रभु भक्ति जारी है।