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तिरछी नजर : क्वाटिफायबल डाटा पर सवाल

आरक्षण को लेकर प्रदेशभर में बवाल मचा है। राजभवन व सरकार के बीच टकराहट बढ़ती जा रही है। राजनीतिक दल रोटी सेकने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे है। खबर है कि पिछड़े वर्ग के 127 जातियों को खोजने के लिए बनाई गयी डाटा क्वांटीफायबल आयोग को राज्य सरकार के विधि विभाग ने ही सवाल उठाते हुए खारिज कर दिया है। एक तरफ राज्य के मुखिया सहित पूरे मंत्रीमंडल क्वांटिफायबल डाटा के आधार पर आरक्षण की गुहार लगा रहा है, दूसरी तरफ सरकार के ही विधि विभाग ने जनगणना के लिए उपयुक्त संस्था नहीं मानकर दबे पांव दरकिनार कर दिया है। इस खबर की बाहर आते ही आगामी विधानसभा सत्र में बवाल खड़ा हो सकता है।

पटवारी को लेकर बैठक….

प्रदेश के एक जिलाधीश ने पिछले दिनों अपने मातहत सभी अपर व डिप्टीकलेक्टरों व तहसीलदार को बुलाकर जोरदार लताड़ लगाई। जिलाधीश ने आरोप लगाया कि पटवारियों के तबादले और कार्य विभाजन की फाईल 15 दिन तक कलेक्ट्रेट परिसर में कैसे घुमती रही। इस तरह की फाईल लटकाने से गलत संदेश बाहर जाता है। सीएम के निर्देश के बाद भी राजस्व प्रकरण में लेट लतीफी प्रदेश के कई जिलों में इसी तरह का खेल चल रहा है।

3 सौ सीआर का गोलमाल

विधानसभा आम चुनाव में आठ महीने बाकी रह गए हैं। ऐसे में चुनाव तैयारियों के संसाधन जुटाने के लिए राजनीतिक दलों में प्रबंधन से जुड़े लोग आपस में चर्चा कर रहे हैं। इन्हीं में से एक बड़े दल के अंदरखाने में पुराने हिसाब-किताब में एक बड़ा गोलमाल उजागर हुआ है। बताते हैं कि कोष संभालने वाले ने पार्टी के मुखिया को साफ तौर बता दिया है कि 3 सौ सीआर का हिसाब नहीं मिल रहा है। यह तब सामने आया कि जब भानुप्रतापपुर उपचुनाव चल रहा था और इसके फंड जुटाने पर चर्चा चल रही थी। यह भी कहा गया कि अभी मात्र 50 सीआर ही रह गए हैं जिसमें आम चुनाव निपटाने हैं। पार्टी के मुखिया को पुराने प्रबंधकों पर शक है। क्योंकि सरकार बदलने के बाद भी सेहत में फर्क नहीं पड़ा बल्कि आर्थिक ताकत और बढ़ गई है। मुखिया ने फिलहाल अपने करीबियों को जांच में लगा दिया है। इसके बाद हाईकमान के रिपोर्ट सौंपी जाएगी।

भगवान भरोसे भाजपा

भाजपा की क्या पहचान- बैठक, भोजन और विश्राम। पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच यह नारा इन दिनों दबी आवाज़ में सुनने को मिल जायेगा। असल में ताबड़तोड़ बैठकों से कार्यकर्ता परेशान हो गये हैं। उपर से चार-चार प्रभारी, पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व मंत्रियों की अपनी राजनीति। दफ्तर के बाहर पार्टी नदारत है। फिर बीच-बीच में संगठन और केंद्रीय मंत्रिमंडल में बदलाव की खबरें सारे समीकरण बिगाड़ देती है। ऐसे में आम कार्यकर्ताओं को लगने लगा है कि सत्ता अभी सपना ही है। इनमें वे भी शामिल हैं, जो 15 साल सत्ता की मलाई चाट चुके हैं। साफगोई के लिए मशहूर एक नेता कहते हैं- मेहनत करना फिजूल है। अपन तो आम की छांव तले आराम फरमा रहे हैं। जिस दिन फल पककर गिरेगा उस दिन उसका स्वाद भी चख लेंगे। जाहिर है, पार्टी भगवान भरोसे है। यही कारण है कि पार्टी के नेता चुनावी साल में नेताओं से ज़्यादा बाबाओं के कार्यक्रम करा रहे हैं।

सैलजा के तेवर

कांग्रेस की नई प्रदेश प्रभारी कुमारी सैलजा के हालिया दौरों से साफ हो गया कि वे विशुद्ध रूप से आलाकमान की प्रतिनिधि हैं। बड़े से बड़े दबाव व प्रलोभन उन्हें प्रभावित नहीं कर सकते। इसकी एक झलक तब देखने को मिली जब उनसे मुलाकात करने खुद मुख्यमंत्री को सर्किट हाउस जाना पड़ा। वरना अबतक के प्रभारी सबसे पहले मुख्यमंत्री निवास के मेहमान होते थे। सैलजा ने भोजन भी सर्किट हाउस में किया। एक दफे तो दो-तीन बड़े नेता उनके कक्ष में मौजूद थे। उन्होंने एक बड़े नेता से चर्चा करने के लिए बाकी नेताओं को कक्ष से बाहर जाने का विनम्र आग्रह किया। उनके इस तेवर की पार्टी हलकों में जबरदस्त चर्चा है।

बाबा चुनाव नहीं लड़ेंगे…

स्वास्थ्य मंत्री टी.एस.बाबा चुनाव लड़ेगें या नहीं इसको लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है। बाबा का सरगुजा क्षेत्र में अच्छा प्रभाव है। इस प्रभाव का उपयोग करने की कोशिश हर पार्टी हर चुनाव में करती हैं। इस बार के चुनाव में कौन पार्टी बाबा का क्या उपयोग कर रहीं है इसकी चर्चा राजनीतिक गलियारे में रहती है। बताया जाता है कि टी.एस.बाबा ने राहुल बाबा को मुलाकात के दौरान इस बात का संदेश दे दिया है कि अगला विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा नहीं है। यह बात अभी नहीं दो साल पहले ही बातो बातों में बता दिया था। अब आगामी विधानसभा चुनाव बाबा के भतीजे सरगुजा विधानसभा से चुनाव लड़ सकते हैं। टी.एस.बाबा को संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिल सकती है।

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