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तिरछी नजर : महिला आईएएस अफसरों के बीच शीत युद्ध

 

 

छत्तीसगढ़ में इन दिनों दो महिला आईएएस अफसरों के बीच शीत युद्ध की खूब चर्चा हो रही है। पहले जिस जगह पर महिला अफसर पदस्थ थीं वहां अब दूसरी की पोस्टिंग हो गई। पुरानी मैडम सोशल मीडिया में छाई रहती थीं। कामकाज का भी खूब बखान होता था। वहां दूसरी महिला अफसर ने पहुंचते ही पिछले के कार्यों को खंगालना शुरू किया, तो ढोल में पोल नजर आया। हद तो तब हो गई जब पता चला कि पूर्ववर्ती महिला अफसर ने तो प्रधान पाठक को उपअभियंता का प्रभार दे रखा है। जाहिर है कि इसमें बड़ा खेला था। प्रधान पाठक को सस्पेंड किया, तो पूरा मामला सामने आया और एक के बाद एक गड़बडिय़ों की परतें खुलने लगी है। ऐसे में जिनके कार्यकाल में इतना सब कुछ हुआ है, अब उनका परेशान होना स्वाभाविक है।

बीजेपी में आईएएस अफसरों का जलवा

 

बीजेपी में रिटायर्ड आईएएस और कलेक्टरी छोड़ने वाले अफसरों का जलवा दिखाई दे रहा है। केन्द्रीय मंत्रिमंडल में आधा दर्जन से ज्यादा आईएएस अफसरों को जगह मिली है। खास बात यह है कि सभी को अच्छे पोर्टफोलियो के साथ कैबिनेट का दर्जा मिला है। इतना ही नहीं सरकार के साथ संगठन में भी आईएएस अफसरों की पूछ-परख बढ़ी है। कहीं अफसरों को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी मिली है, तो कहीं प्रवक्ता या संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई है। कुल मिलाकर कलेक्टरी छोड़कर सियासी मैदान में उतरे अफसरों के सितारे गर्दिश में नजर आ रहे हैं। छत्तीसगढ़ में भी संगठन में हलचल तेज हो गई है। दिल्ली के बड़े नेता और मोर्चा-प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय नेता छत्तीसगढ़ पर लगातार नजर रखे हुए हैं। यहां आने वाले तमाम नेताओं के समक्ष पार्टी के नेता संगठन को मजबूत करने और लड़ाकू नेता को कमान सौंपने की वकालत कर रहे हैं। ऐसे में अटकलें लगाई जा रही है कि छत्तीसगढ़ बीजेपी में कार्यकारी अध्यक्ष की नियुक्ति की जा सकती है। इस पद के लिए संगठन के भीतर लांबिग भी शुरू हो गई है। आईएएस अफसरों के प्रति राष्ट्रीय स्तर पर बने माहौल को देखते हुए यहां के कई अफसरों की बांछे खिल गई है। रायपुर की कलेक्टरी छोड़कर सीधे सियासी मैदान में उतरने वाले ओपी चौधरी को लोग प्रबल दावेदार मान रहे हैं। जातीय समीकरण में भी वे फिट बैठ रहे हैं। साथ ही वे केन्द्रीय मुद्दे पर सरकार का पक्ष रखने के मामले में भी सक्रिय रहते हैं। सोशल मीडिया में उनके फैन फालोअर्स की संख्या अच्छी-खासी है। हालांकि कार्यकारी अध्यक्ष के लिए कुछ और रिटायर्ड आईएएस और आईपीएस भी जोर लगा रहे हैं, लेकिन किसकी किस्मत चमेगी, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा, परन्तु इतना तो तय है कि अफसरों की पूछ-परख बढ़ने से उनका राजनीति के प्रति मोह बढ़ा है।

खेतान साहब नई भूमिका में !

छत्तीसगढ़ के धाकड़ आईएएस सीके खेतान इस महीने की 31 तारीख को रिटायर हो रहे हैं। सीनियारटी के बाद भी उन्हें सीएस नहीं बनाया गया। मंत्रालय के बाहर पोस्टिंग कर दी गई। मतलब साफ है कि रिटायरमेंट के बाद उन्हें पद मिलने की संभावना नहीं है। खेतान साहब को भी इसका अंदाजा है। तभी तो उन्होंने राज्य विद्युत नियामक आयोग के चेयरमैन का पद के लिए आवेदन नहीं किया। चर्चा है कि खेतान साहब सामाजिक कार्यकर्ता की भूमिका में नजर आ सकते हैं। उनसे जुड़े लोग मानते है कि रिटायरमेंट के बाद सर्विस रूल कंटक्ट लागू नहीं रहेगा, लेकिन जानकार बताते हैं कि रिटायरमेंट के 5 साल बाद तक अफसर-कर्मी सर्विस रूल के दायरे में आएंगे। आरपी बगई सीएस के पद पर थे, तो उन्होंने अपने खिलाफ पुराने शिकायतों को ध्यान नहीं दिया। बारदाने खरीदी के मामले में उन्हें रिटायरमेंट के बाद दुबई से यहां ईओडब्ल्यू का चक्कर काटना पड़ता था। तब के ईओडब्ल्यू प्रमुख आनंद तिवारी उन्हें घंटों बिठाए रखते थे। काफी मशक्कत के बाद प्रकरण का खत्मा हो पाया। अब खेतान साब के खिलाफ कुछ है या नहीं, यह तो पता नहीं। मगर वे निश्चिंत नहीं हो सकते हैं।

मंत्री की फाइल और विवाद

निलंबित आईपीएस अफसर जीपी सिंह के खिलाफ अचानक राज्य सरकार द्वारा कार्यवाही करने के परदे के पीछे की असली कहानी विशेषज्ञ ढूंढ रहे है। जितनी मुंह उतनी कहानी परत दर परत सामने आ रही है। बताया जाता है कि एसीबी चीफ रहते कई महत्वपूर्ण लोगों की फाइल बनाई गई थी इसमें एक दबंग मंत्री के जमीन-जायदाद और संबंधों की फाइल तैयार करने की जानकारी सामने आने के बाद ही विवाद शुरू हुआ। मंत्री को अपने करीबियों से यह भनक लग गई कि उनकी सरकार के जिम्मेदार अधिकारी उनके खिलाफ ही कागज तैयार करने में जुटे हुए हैं। फिर क्या था नाराज मंत्री ने इसकी जानकारी मुख्यमंत्री को देकर कहा कि एसीबी चीफ जीपी सिंह को तुरंत हटाया जाए। मुख्यमंत्री ने मंत्री की बातों को गंभीरता से लेकर तत्काल पद से हटाने के आदेश दिया। सिंह के हटने के बाद की गई जांच पड़ताल में राज खुला कि कई और अफसरों के फाइल तैयार हैं। बकायदा दूसरों से शिकवा-शिकायत भी करा दी गई है। इस मामले में पूर्व सरकार के महत्वपूर्ण लोगों के रूख पर भी लोगों की निगाह है।

बिना समीक्षा के विभाग

मुख्यमंत्री ने सरकार के कामकाज में कसावट लाने और योजनाओं की धरातली स्थिति से वाकिफ होने सभी मंत्रियों के विभागों के कामकाज की समीक्षा की। इस समीक्षा बैठक में कई विभागों के कामकाज से संतुष्ट नहीं होने की खबर है। इसका असर आगामी दिनों होने वाले प्रशासनिक और राजनीतिक फैसलों में दिखने की चर्चा तेज है। कोरोनाकाल में कई विभागों में कामकाज ठप पड़े थे,इनमें सक्रियता लाने की कोशिश समीक्षा से हुई है। कई विभागों के कामकाज की समीक्षा ही नहीं हुई है। जबकि ज्यादातर लोगों को लग रहा कि मुख्यमंत्री ने सभी विभागों की समीक्षा पूर्ण कर ली गई है। जिन विभागों की समीक्षा नहीं हुई है उनके मंत्री और अधिकारियों के माथे पर चिंता की लकीर खींच गई है। अब सवाल प्रशासन व राजनीति के जानकार उठा रहे है कि बाकी विभागों की समीक्षा की जाएगी या कोई और मामला है? मंत्रियों के विभागों में फेरबदल तो नहीं हो रहा है? कुछ प्रभावशाली मंत्रियों के विभागों के भार को कम तो नहीं किया जा रहा है।

प्रमोटी आईएएस पर भरोसे से अविश्वास-ढीला प्रशासन के तमगे का खतरा

कोरोना के असर कम होने के बाद मंत्रालय में कामकाज तो शुरू गया पर प्रशासनिक फैसले और फाइल की रफ्तार अभी भी धीमी है। नौकरशाहों के बीच ही कामकाज का टेम्पो नहीं बन पाने से धमक के साथ काम नहीं होने का दर्द छलक रहा है। ज्यादातर सीनियर और काम करने वाले आईएएस अफसरों को दिल्ली के लिए रिलीव कर दिया गया है। मंत्रालय में जानकार सचिव स्तर के अधिकारियों की कमी बेहद खलने लगी है। गौरव द्विवेदी व सोनमणि बोरा जैसे अफसर बचे भी है, तो नाराजगी के चलते काम नहीं लिया जा रहा है? अफसरों के ही एक वर्ग में चर्चा है कि प्रमोटी आईएएस अफसरों के भरोसे शासन चलाया जा रहा है, जिनके अंदर प्रशासन को नीचे तक ले जाने में हिचक होती है। साहस भरा फैसला लेने का अभाव कई आदेशों में दिखता है। सौम्यता और समन्वय के साथ सरकार चलाने का यह प्रयोग का संदेश कहीं “अविश्वास और ढीला प्रशासन का तमगा ना लगा दें, ऐसी आशंका जताई जा रही है।

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