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LUMPY SKIN DISEASE : 24 घंटे में तकरीबन 500 गायों की मौत, दफनाने के लिए कम पड़ी जमीन, जानें पूरा मामला

About 500 cows died in 24 hours, there is less land for burial, know the whole matter

बाड़मेर। राजस्थान के बाड़मेर जिले में पशुपालकों के लिए मुश्किलें बढ़ गई है. यहां पिछले 24 घंटे में तकरीबन 500 गायों की मौत इस खतरनाक वायरस से हो गई है. स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि इन्हें दफनाने के लिए अब जमीनें कम पड़ने लगी है.

बिगड़ती स्थिति को देखते हुए राज्य सरकार ने शाम 6 बजे गायों में फैल रहे लम्पी स्किन वायरस को लेकर रिव्यू मीटिंग लेने का फैसला किया है. इस मीटिंग में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बीकानेर हाउस (दिल्ली) से वीसी के माध्यम से जुड़ेंगे.

क्या है इस बीमारी का लक्षण –

भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, बरेली के पशु रोग अनुसंधान और निदान केंद्र के संयुक्त निदेशक डॉ केपी सिंह कहते हैं कि लम्पी स्किन डिसीज होने पर गायों के शरीर पर गांठें बनने लगती हैं. उन्हे तेज बुखार आ जाता है, सिर और गर्दन के हिस्सों में काफी दर्द रहता है. इस दौरान गायों में दूध देने की क्षमता भी कम हो जाती है. गंभीर स्थितियों में इन गायों की मौत हो जाती है.

बाड़मेर में बिगड़े हालात –

आजतक के दिनेश बोहरा की रिपोर्ट के मुताबिक बाड़मेर जिला मुख्यालय से महज 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जिस डंपिंग यार्ड में आमतौर पर दो या तीन मृत गोवंश आते थे. लेकिन पिछले कुछ दिनों से स्थितियां और बिगड़ गई है. अब हालात ये हो गए हैं कि यहां रोजाना 40 से 50 गोवंश आ रहे हैं. यहां आसपास रहने वालों का जीना दुर्गंध से दूभर हो गया है.

बता दें कि गौशालाओं में भी यही हाल है. शहर में ही स्थित गोपाल गोशाला के संचालक के मुताबिक यहां के ढाई सौ गोवंश इस बीमारी से पीड़ित हो गए थे. इनमें से अब तक 150 की मौत हो गई है. अन्य की भी हालात गंभीर बनी हुई है.

बीमारी पर काबू पाने की कोशिश की जा रही है –

बाड़मेर के जिला कलेक्टर लोकबंधु ने बताया प्रशासन पूरी तरीके से बीमारी पर काबू पाने के लिए लगातार काम कर रहा है. 25 से ज्यादा टीमें प्रभावित इलाकों में सर्वे कर पीड़ित गोवंश का इलाज कर रही है. प्रशासन के मुताबिक, अभी तक जिले में 80 हजार गोवंश का सर्वे हुआ है, जिसमें से 16 हजार गोवंश लंपी स्किन बीमारी से पीड़ित हैं. बाड़मेर में 10 लाख के करीब गाय और अन्य गोवंश हैं. यानी कि अब तक कुल गोवंश में से केवल 8 फीसदी का सर्वे किया जा सका है.

अपनाएं ये सावधानी –

पशुधन वैज्ञानिक आनंद सिंह के मुताबिक पशुपालक अगर समय से नहीं चेते तो स्थितियां और भी खराब हो सकती हैं. वह बताते हैं कि ये वायरस मच्छरों और मक्खियों जैसे खून चूसने वाले कीड़ों से फैलता है. दूषित पानी, लार और चारे की वजह से गोवंशों में ये रोग होता है. पशुओं में जब भी इस बीमारी के लक्षण दिखें तो सबसे पहले अपनी बीमार गाय-भैंसों को सबसे अलग कर दें. उनके खाने-पीने की व्यवस्था भी अलग कर दें. इन्हे रखे जाने वाले वाले स्थान पर साफ-सफाई रखें. अगर ऐसा नहीं किया गया तो इस बीमारी से मरने वाले गोवंशो की संख्या और बढ़ सकती है.

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