SUPREME COURT NOTICE : Supreme Court issues notice to Speaker on Justice Verma case
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका पर लोकसभा और राज्यसभा सचिवालय को नोटिस जारी किया है। यह याचिका लोकसभा स्पीकर द्वारा गठित उस समिति की वैधता को चुनौती देती है, जो जस्टिस वर्मा के खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए बनाई गई थी।
जस्टिस वर्मा का कहना है कि उनके मामले में संवैधानिक और कानूनी प्रक्रिया का ठीक से पालन नहीं किया गया। उन्होंने दलील दी कि जब तक दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव औपचारिक रूप से स्वीकार नहीं हो जाते, तब तक जांच समिति का गठन नहीं किया जा सकता।
मामले की सुनवाई जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ए. जी. मसीह की बेंच ने की। सुप्रीम कोर्ट की कॉज लिस्ट में याचिकाकर्ता की पहचान छिपाते हुए उन्हें केवल ‘एक्स’ नाम से दर्शाया गया है।
क्या है पूरा विवाद?
यह मामला मार्च महीने में उस वक्त सामने आया, जब जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास पर आग लगने की घटना के दौरान बेहिसाब नकदी मिलने की बात सामने आई। इसके बाद लोकसभा अध्यक्ष ने उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए एक समिति का गठन किया था।
जस्टिस वर्मा की दलीलें क्या हैं?
जस्टिस वर्मा की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि इस मामले में लोकसभा और राज्यसभा दोनों में एक ही दिन महाभियोग नोटिस दिए गए थे। ऐसे में जब तक दोनों सदनों में प्रस्ताव स्वीकार नहीं हो जाते, तब तक समिति बनाना कानूनन गलत है। उन्होंने कहा कि जजेज (इन्क्वायरी) एक्ट, 1968 के तहत समिति का गठन लोकसभा स्पीकर और राज्यसभा चेयरमैन की संयुक्त सहमति से होना चाहिए, न कि एकतरफा।
कोर्ट ने क्या सवाल उठाया?
सुनवाई के दौरान जस्टिस दीपांकर दत्ता ने पूछा कि अगर दोनों सदनों में एक ही दिन प्रस्ताव पेश किए गए, तो एक ही दिन उन्हें स्वीकार किए जाने का सवाल कैसे उठता है?
पहले भी हो चुकी है जांच
गौरतलब है कि 14 मार्च को करेंसी नोट्स मिलने के एक हफ्ते बाद तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजय खन्ना ने तीन सदस्यीय इन-हाउस पैनल का गठन किया था। इस पैनल में चीफ जस्टिस शील नागू (पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट), चीफ जस्टिस जी. एस. संधवालय (हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट) और जस्टिस अनु शिवरामन (कर्नाटक हाईकोर्ट) शामिल थीं।
पैनल ने अपनी जांच में जस्टिस वर्मा पर लगे आरोपों को सही पाया। इसके बावजूद उन्होंने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया, जिसके बाद रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजी गई। अब सुप्रीम कोर्ट की इस नोटिस के बाद मामला एक बार फिर संवैधानिक बहस के केंद्र में आ गया है।
