देश दुनियाTrending Now

Iran Israel War: भारत में नहीं होगी तेल की कमी, इन दो देशों का मिला साथ

Iran Israel War: नई दिल्ली। अगर ईरान द्वारा होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद कर दिया जाता है तो सऊदी अरब और रूस भारत को कच्चे तेल की आपूर्ति के लिए दूसरे रास्ते का विकल्प चुन सकते हैं। भारत सऊदी अरब से अपनी जरूरत के कुल कच्चे तेल का 18-20 प्रतिशत आयात करता है। होर्मुज मार्ग बाधित होने पर सऊदी अरब भारत को कच्चे तेल की आपूर्ति के लिए पेट्रोलाइन-यानबू कारिडोर का इस्तेमाल कर सकता है। भारत के पास इस समय 90 दिनों के लिए कच्चे तेल का भंडार है।

बुनियादी ढांचे का प्रयोग

यस सिक्योरिटीज की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस कॉरिडोर से कच्चा तेल आने पर कुछ लॉजिस्टिक बांधाए और माल ढुलाई की लागत बढ़ सकती है, लेकिन सऊदी अरब द्वारा विविध निर्यात बुनियादी ढांचे का प्रयोग करने से आपूर्ति में तेज कमी की संभावना कम होगी।

आपूर्ति में देरी और माल ढुलाई में वृद्धि

होर्मुज जलडमरूमध्य के जरिये भारत अपनी जरूरत का 35 प्रतिशत से अधिक कच्चे तेल का आयात करता है जबकि 42 प्रतिशत एलएनजी भी इसी रास्ते से आती है। अगर यह रास्ता बंद होता है तो निकट भविष्य में खतरा आपूर्ति में देरी और माल ढुलाई में वृद्धि का रहेगा।

क्रूड की आपूर्ति

जून में भारत ने रूस से प्रतिदिन 22 लाख बैरल प्रतिदिन कच्चे तेल का आयात किया। यह पश्चिम एशिया में स्थित सभी देशों से आने वाले क्रूड की आपूर्ति से भी ज्यादा है। इसके अलावा, भारत अमेरिका, दक्षिण अमेरिका और पश्चिम अफ्रीका से भी तेल का आयात करता है और इन देशों से आने वाला तेल होर्मुज के रास्ते से नहीं आता है।

सबसे ज्यादा आर्थिक नुकसान

इसलिए जानकारों का मानना है कि होर्मुज जलडमरूमध्य का रास्ता बंद होने से भारत की आपूर्ति पर बहु प्रभाव नहीं पड़ेगा। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अगर ईरान होर्मुज वाला रास्ता बंद करता है तो इससे उसे सबसे ज्यादा आर्थिक नुकसान होगा। उसके तेल का सबसे बड़ा खरीदार चीन है।

ईरान जाने वाला एक लाख टन बासमती चावल भारतीय बंदरगाहों पर अटका

ईरान को भेजे जाने वाला लगभग 1,00,000 टन बासमती चावल भारतीय बंदरगाहों पर फंसा हुआ है। अखिल भारतीय चावल निर्यातक संघ के प्रेसिडेंट सतीश गोयल ने कहा कि कुल बासमती चावल निर्यात में ईरान की हिस्सेदारी 18-20 प्रतिशत है। गोयल ने बताया कि गुजरात के कांडला और मुंद्रा बंदरगाहों पर रुके हुए हैं, क्योंकि पश्चिम एशिया में संघर्ष के चलते ईरान जाने वाले माल के लिए न तो जहाज उपलब्ध हैं और न ही बीमा।

बासमती चालव की कीमतें पहले ही चार से पांच रुपये प्रति किलो तक गिर चुकी

उन्होंने बताया कि अंतरराष्ट्रीय संघर्ष आमतौर पर मानक शिपिंग बीमा पालिसियों के तहत कवर नहीं होते हैं। उन्होंने कहा कि शिपमेंट में देरी और भुगतान को लेकर अनिश्चितता गंभीर वित्तीय तनाव पैदा कर सकती है। उन्होंने बताया कि घरेलू बाजार में बासमती चालव की कीमतें पहले ही चार से पांच रुपये प्रति किलो तक गिर चुकी हैं।

संकट पर चर्चा के लिए 30 जून को पीयूष गोयल के साथ बैठक

संघ इस मुद्दे पर कृषि-निर्यात संवर्धन निकाय एपीडा के संपर्क में है। उन्होंने कहा कि संकट पर चर्चा के लिए 30 जून को वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल के साथ बैठक निर्धारित है। सऊदी अरब के बाद ईरान भारत का दूसरा सबसे बड़ा बासमती चावल बाजार है। भारत ने मार्च में समाप्त हुए वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान ईरान को लगभग 10 लाख टन सुगंधित चावल का निर्यात किया था।

 

advt----
advt--0005-april
advt--0007-april
advt-april2025-001
Share This: