राज्य स्त्रोत निश्शक्तजन संस्थान घोटाले की जांच की मांग को लेकर दायर याचिका पर हुई सुनवाई
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बिलासपुर। राज्य स्त्रोत निश्शक्तजन संस्थान रायपुर के नाम पर हुए करोड़ों के घोटाले की जांच की मांग को लेकर दायर जनहित पर शुक्रवार को अदालत ने लंबी सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित (ORDER RESERVE) रख लिया है। इससे पहले बता दें कि कोर्ट ने प्रकरण में स्वयं को क्लीन चिट देने वाले अधिकारियों की जानकारी मांगी थी। वहीं शासन ने पिछली सुनवाई के दौरान कहा था कि इस अस्पताल को लेकर कोई गड़बड़ी नहीं हुई है। आज मामले की सुनवाई जस्टिस पीपी साहू और जस्टिस संजय जायसवाल की डिवीजन बेंच द्वारा की गई।
क्या है पूरा मामला ?
दरअसल, रायपुर के रहने वाले कुंदन सिंह ठाकुर की ओर से अधिवक्ता देवर्षि ठाकुर ने 2018 में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। इसमें बताया गया था कि रमन सरकार में राज्य के 6 आईएएस अफसर आलोक शुक्ला, विवेक ढांड, एनके राउत, सुनील कुजूर, बीएल अग्रवाल और पीपी सोती समेत सतीश पांडेय, राजेश तिवारी, अशोक तिवारी, हरमन खलखो, एमएल पांडेय और पंकज वर्मा ने फर्जी संस्थान स्टेट रिसोर्स सेंटर (एसआरसी) (राज्य स्रोत निशक्त जन संस्थान) के नाम पर 630 करोड़ रुपए का घोटाला किया है।
स्टेट रिसोर्स सेंटर का कार्यालय माना रायपुर में बताया गया, जो समाज कल्याण विभाग के अंतर्गत आता है। एसआरसी ने बैंक ऑफ इंडिया के अकाउंट और एसबीआई मोतीबाग के तीन एकाउंट से संस्थान में कार्यरत अलग-अलग लोगों के नाम पर फर्जी आधार कार्ड से खाते खुलवाकर रुपए भी निकाले गए। इस मामले में 5 साल पहले हाइकोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि ऐसी कोई संस्था राज्य में नहीं है। सिर्फ पेपरों में संस्था का गठन किया गया था। राज्य को संस्था के माध्यम से 1000 करोड़ का वित्तीय नुकसान उठाना पड़ा, जो कि 2004 से 2018 के बीच में 10 सालों से ज्यादा समय तक किया गया।
इस मामले में तब (5 साल पहले) जस्टिस प्रशांत मिश्रा और जस्टिस पीपी साहू की डिविजन बेंच में मामले में सीबीआइ जांच के आदेश दे दिए थे। जिससे ब्यूरोक्रेट्स के बीच हड़कंप मच गया था।छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने मामले में उस वक्त प्रमुख सचिव स्कूल शिक्षा आलोक शुक्ला समेत 12 अफसरों के खिलाफ सीबीआई को एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए थे।
हाईकोर्ट ने सीबीआई को दिए थे ये आदेश
सीबीआई 7 दिनों के अंदर प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करे।
15 दिनों के भीतर समाज कल्याण विभाग से समस्त मुख्य दस्तावेजों को सीज करें।
सीबीआई सही तरीके से मामले की जांच करे। जांच पर कोर्ट की निगरानी रहेगी।
जब भी सीबीआई को मार्गदर्शन की जरूरत हो, वह कोर्ट की सहायता ले सकती है।
सुनवाई के दौरान पता चला- राज्य स्रोत निशक्त जन संस्थान नाम की संस्था ही नहीं।
हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान राज्य के उस वक्त के मुख्य सचिव अजय सिंह ने अपना शपथ-पत्र दिया था। इसमें उन्होंने
150-200 करोड़ की गलतियां सामने आने की बात कही थी। जिसपर हाईकोर्ट ने कहा था कि जिसे राज्य के मुख्य सचिव
गलतियां और त्रुटि बता रहे हैं, वह एक संगठित और सुनियोजित अपराध है। मामले में एक पूर्व केंद्रीय मंत्री का भी नाम
सामने आया था। जोकि वर्तमान में विधायक पद संभाल रही हैं।
तत्कालीन महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा ने दी थी कानूनी सलाह
बता दें कि, उस समय हाइकोर्ट के फैसले के बाद IAS अधिकारी दौड़े दौड़े तत्कालीन महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा के दफ्तर पहुंचे थे। उस वक्त सतीश वर्मा ने सभी को कानूनी सलाह दी थी। जिसके बाद सभी के सुप्रीम कोर्ट की ओर रुख किया था।
सुप्रीम कोर्ट जाकर ले लिया था स्टे
बता दें कि, इस मामले में तब अफसरों ने आनन फानन में बड़े बड़े वकीलों के जरिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर हाइकोर्ट के आदेश पर स्टे ले लिया था। हालांकि, मामले में कुछ दिनों बाद एक बार फिर हाइकोर्ट ने अंतिम सुनवाई शुरू की थी।