छेरछेरा : छत्तीसगढ़ की स्वर्णिम परंपरा का प्रतीक …

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Chherchhera: Symbol of the golden tradition of Chhattisgarh…

रायपुर। छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर में एक अद्वितीय पर्व है छेरछेरा, जिसे पौष माह की पूर्णिमा के दिन बड़े ही उत्साह और परंपरागत रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। यह पर्व न केवल एक धार्मिक महत्ता रखता है, बल्कि छत्तीसगढ़ की गहरी सांस्कृतिक जड़ों और समाज में परस्पर सहयोग की भावना को भी प्रकट करता है।

पौराणिक कथा और पर्व की उत्पत्ति –

पौराणिक मान्यता के अनुसार, यह पर्व भगवान शिव के पार्वती के घर भिक्षा मांगने की घटना का प्रतीक है। कथा कहती है कि शिव ने पार्वती से विवाह से पहले उनकी भक्ति और प्रेम की परीक्षा लेने के लिए नट का रूप धारण किया और नाचते-गाते हुए भिक्षा मांगने पहुंचे। उन्होंने स्वयं अपनी निंदा भी की, ताकि पार्वती उनके बारे में सोचें और निर्णय लें।

इसी प्रसंग का प्रतीक छेरछेरा पर्व है, जिसमें लोग नट बनकर, विभिन्न स्वांग रचकर नाचते-गाते हुए भिक्षाटन करते हैं। यह परंपरा आज भी छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में प्रचलित है।

समाज में उत्साह और सहयोग की भावना –

इस पर्व की एक विशेष बात यह है कि इसमें हर वर्ग, हर आयु के लोग भिक्षाटन करते हैं, और इसे सम्मान के साथ देखा जाता है। कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता। लोग दान देने में गर्व महसूस करते हैं और यह दान सामूहिक कार्यों में उपयोग होता है।

पुराने समय में गांव के स्कूलों में शिक्षक इस दिन बच्चों को पूरे गांव में बैंड-बाजे के साथ भिक्षाटन करवाते थे। जो धन इकट्ठा होता था, उससे स्कूल की खेल सामग्री और अन्य जरूरतों को पूरा किया जाता था।

लोककला और सांस्कृतिक धरोहर –

छेरछेरा का असली आकर्षण नाचते-गाते हुए मांदर, ढोलक और झांझ-मंजीरा की धुन पर झूमते कलाकारों में होता था। कलाकारों की टोलियां लोकनृत्य करते हुए घर-घर जाती थीं। लोग इनका स्वागत करते, और दान देकर अपनी संस्कृति के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते।

एक प्रमुख कला शैली, जिसे कुहकी पारना कहते हैं, इस पर्व का खास हिस्सा है। इसमें कलाकार ताल के साथ मुंह से कुहकी (विशेष आवाज) निकालते हैं।

मूल संस्कृति और पुनर्प्रचार का आह्वान –

छत्तीसगढ़ की यह संस्कृति, जिसे सतयुग की संस्कृति कहा जाता है, आज भी जीवित है, लेकिन इसे बाहरी प्रभावों और गलत व्याख्याओं से खतरा है। छत्तीसगढ़ की मूल पहचान और संस्कृति को बचाने और इसे अपनी वास्तविकता में प्रचारित करने की जिम्मेदारी हम सभी पर है।

छेरछेरा की महत्ता –

छेरछेरा केवल एक पर्व नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ के समाज की आत्मा है। यह परस्पर सहयोग, दान, और सांस्कृतिक धरोहर के प्रति प्रेम का पर्व है। इसकी जड़ों को समझने और इसे आगे बढ़ाने में हर छत्तीसगढ़वासी को अपना योगदान देना चाहिए।

आइए, हम सब इस गौरवशाली परंपरा को सहेजें और आने वाली पीढ़ियों के लिए इसका संरक्षण करें। छेरछेरा की मूल भावना और स्वर्णिम अतीत को जीवित रखने के लिए इसे प्रचारित करने का संकल्प लें।

“छेरछेरा! छेरछेरा! माय, कोठी के धान ला हेरछेरा!”
(कोठी के धान से भरी मुट्ठी दान करने का आह्वान)

छत्तीसगढ़ की इस अद्भुत संस्कृति को नमन। 🌿

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