
सूबे के पुराने लोग चंद्रकांत शाह के नाम से वाकिफ तो होंगे, अगर नए लोग वाकिफ नहीं हैं तो हम बता देते हैं कि एक समय में चंद्रकांत शाह का नाम भिलाई के चर्चित उद्योगपतियों में शुमार था। शाह पर मजदूर नेता शंकर गुहा नियोगी की हत्या का आरोप था और जेल जाना पड़ा था। बाद में शाह को बरी कर दिया गया था। इस घटनाक्रम के बाद शाह ने यहां से अपना कारोबार समेट लिया था और बैंगलुरु शिफ्ट हुए। अब आपको लग रहा होगा कि अचानक इतने साल बाद शाद की चर्चा क्यों हो रही है ? आपका ऐसा सोचना स्वाभाविक है। दरअसल, शाह पिछले कुछ समय से रायपुर में सक्रिय हैं। चर्चा है कि वे यहां उद्योग लगाने की तैयारी में हैं। अनौपचारिक चर्चा में शाह इससे इंकार करते हैं। बताते हैं कि चंद्राकांत शाह का उद्योग विभाग के एक अफसर से घरोबा है और वे उनसे ही मिलने रायपुर आए थे। ऐसे में चंद्रकांत शाह की उद्योग अफसर से बंद कमरे में चर्चा से विभाग में हलचल है।
दो बड़े अफसरों की जुगलबंदी
दो बड़े लोगों की जुगलबंदी इन दिनों चर्चा का विषय है। बात रिटायर्ड जज एके सामंत रे और रिटायर्ड आईएएस मुनीश कुमार त्यागी की हो रही है। सामंत रे रमन सरकार में विधि विभाग के प्रमुख सचिव थे। न्यायिक सेवा से रिटायर होने के बाद सरकार ने उन्हें रेवेन्यू ट्रिब्यूनल का चेयरमैन बनाया था। इसी तरह भूपेश सरकार के आने के बाद त्यागी की संविदा नियुक्ति खत्म हो गई। त्यागी, रमन सचिवालय में सचिव के पद पर थे। दोनों ही अफसर नियम प्रक्रियाओं और कानून के गहरे जानकार माने जाते हैं। उनकी छबि भी बहुत अच्छी है। दोनों ने मिलकर हाईकोर्ट में वकालत शुरू कर दी है। एक बड़ा चेंबर भी बनवाया है। त्यागी डायरेक्टर माइनिंग और दो जिले के कलेक्टर भी थे। वे माइनिंग और रेवेन्यू से जुड़ा केस ले रहे हैं, तो सामंत रे घरेलू हिंसा और अन्य तरह के प्रकरणों की पैरवी कर रहे हैं। दोनों किसी परिचय के मोहताज नहीं है। ऐसे में पक्षकार स्वाभाविक रूप से उनकी तरफ खींचे चले जा रहे हैं।
नन्हें को मिला बड़ा झटका
खबर है कि परिवहन में नन्हें का रूतबा खत्म हो गया है। नन्हें की जगह एक डीएसपी ने ले ली है, जो तीसरी बार परिवहन में आए हैं। कुछ दिन पहले ही परिवहन के मामूली कर्मचारी नन्हें के खिलाफ अफसर खुलकर सामने आ गए थे। चूंकि नन्हें जो काम करते आए हैं, वह संवेदनशील होता है, इसलिए विभाग के कर्ताधर्ता किसी और पर भरोसा नहीं कर पा रहे थे। नन्हें रमन सरकार में भी यही सब कुछ संभालते थे और सरकार बदलने के बाद ढाई साल तक वे ही सब कुछ थे। परिवहन में उनका अच्छा दबदबा था। मगर डीएसपी ने विभाग के कर्ताधर्ताओं पर विश्वास हासिल कर नन्हें को किनारे लगा दिया। नन्हें का आम्रपाली में एक दफ्तर भी था। जहां से वे सब कुछ संचालित करते थे। डीएसपी ने सबसे पहले उनका दफ्तर बंद करवा नई जगह शिफ्ट करवा दिया। नन्हें विभाग के राजदार रहे हैं। और डीएसपी द्वारा सारा काम छिन लिए जाने से आहत भी हैं। लोगों की निगाह इस पर टिकी है कि अनुभवी नन्हें का अगला कदम क्या होगा। क्योंकि तीसरी बार परिवहन में आए डीएसपी मालदार तो है ही।
रजत कुमार निकले होशियार
अफसरों व सहकर्मियों से विवाद के कारण सुर्खियों में रहने वाले आईएएस अधिकारी रजत कुमार क्या गुपचुप तरीके से प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली चले गये हैं ? कांग्रेस सरकार बनने के तत्काल बाद छत्तीसगढ़ में ही जनगणना निर्देशक पद पर पदस्थापना से फौरी राहत मिली थी। कोरोना काल के सन्नाटे के दौरान रायपुर से दिल्ली स्थित जनगणना के हेड आफिस में स्थायी तौर पर पदस्थापना मिलने की खबर से अफसर भी अचंभित है। वैसे तो दिल्ली जाने के लिए कई अफसर कतार में हैं महीनों से अनुमति मिल नहीं रही है, इधर रजत कुमार कई महीनों से दिल्ली में पूरी सुविधा व पद के साथ पोस्टिंग पा गए हैं।
एम गीता को फटकार
जल संसाधन विभाग की समीक्षा के दौरान मुख्यमंत्री ने जब प्रमुख सचिव एम गीता से जानकारी मांगी तो मैडम के हाथ पैर फूल गए। दरअसल, मुख्यमंत्री गांव और वहां की स्थिति-परिस्थिति की बारीक जानकारी रखते हैं। उन्होंने जैसे ही मैडम से जानकारी मांगी तो वे कागज पलटने लगीं और अंत कर वो रिपोर्ट नहीं मिली। इसके बाद मुख्यमंत्री का पारा एकदम से चढ़ गया और उन्होंने भरी मीटिंग में मैडम को खूब फटकार लगाई। मुख्यमंत्री की नाराजगी इसलिए भी थी क्योंकि नरवा, गरवा,घुरुवा, बारी उनका ट्रीम प्रोजेक्ट है। इसीमें झोल देखकर उन्होंने पूरा गुस्सा उतार दिया। इसके बाद काफी देर तक वहां किसी के बोलने की हिम्मत नहीं हुई। नाराजगी की खबर बाहर निकलते ही अधिकारी-कर्मचारियों ने चटखारे लगाना शुरू कर दिया।
गिरीश देवांगन ताकतवर बन कर उभरे
निगम-मंडलों में नियुक्ति के बाद वंचित नेता सूची बनाने वाले परदे के पीछे के खिलाड़ियों की पतासाजी में लग गये हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया के बीच सूची को लेकर कई दौर की चर्चा के बाद जारी सूची से खनिज निगम के अध्यक्ष गिरीश देवांगन के प्रभाव का अंदाजा सभी को लगने लगा है। देवांगन को सैकड़ों धन्यवाद मिल रहे हैं और सिफारिश का अनुरोध करने वाले ईद-गिर्द घूमने लगे हैं। प्रभारी महामंत्री रहते हुए संघर्ष के दिनों में साथ देने वाले कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का नाम जुड़वाने में गिरीश देवांगन मुख्यमंत्री व मंत्रियों के बीच समन्वय कर अपने समर्थकों की फौज प्रदेश में तेजी से खड़ा करने में लगे हैं। सूची को अंतिम रूप दिलाने की कवायद में अभी भी सक्रिय हैं। गुटबाजी व जनाधार विहीन नेताओं के दबाव के बीच जातीय व क्षेत्रीय समीकरण बनाने में पूरी तरह सक्रिय हैं।
कमंडल से मंडल की तरफ
हिन्दुत्व के आसरे कमंडल की राजनीति करने वाली संघ व भाजपा में पिछले माह सत्ता व संगठन में हुए परिवर्तन से निष्ठावान पदाधिकारी भी सकते हैं। संघ में ब्राम्हणों का कब्जा वर्षो से रहा है। पहली बार पिछड़ा व जनजाति वर्ग से बड़े पदाधिकारी बनाये गये हैं इसी प्रकार मोदी मंत्रिपरिषद में हटाए गये ज्यादातर मंत्री सामान्य वर्ग के हैं और सामाजिक पहलुओं को देखते हुए नए मंत्री बनाये गये हैं। यही फार्मूला छत्तीसगढ़ में लागू होने की चर्चा है। पुराने चर्चित चेहरों को विदाई का डर सताने लगा है। जातीय संतुलन स्थापित कर छत्तीसगढ़ में चुनाव लड़ने नए चेहरे की तलाश हो रही है।